वर्चस्व की लड़ाई में खून-खराबा की आशंका, चिरकुंडा-मैथन के कारोबारियों में दहशत
Shesh Narayan Singh
Maithan : प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली के व्यवसाय में वर्चस्व की जंग शुरू हो गयी है. धनबाद के गैंगस्टर प्रिंस खान की इंट्री से इस व्यवसाय में खूनी संघर्ष की संभावना भी बढ़ गई है. चिरकुंडा-मैथन क्षेत्र में गैंगस्टर की धमक से वैध-अवैध कारोबारियों में दहशत है. उन्हें डर सताने लगा है कि कहीं प्रिसं खान क्षेत्र के सभी व्यवसायियों को अपना शिकार न बनाने लगे. जानकारों की मानें तो थाई मांगुर मछली के व्यवसाय में करोड़ों रुपये का खेल होता है. गैंगस्टर प्रिंस खान इस खेल का हीरो बनना चाहता है. इसलिए वह इस अवैध कारोबार पर एकाधिकार चाहता है. उसने सबसे पहले रोशन वर्णवाल को इस कारोबार से हट जाने की धमकी दी है.
तीन गुट चला रहे हैं यह अवैध कारोबार
जानकारों का कहना है कि इस अवैध कारोबार में तीन गुट शामिल हैं. तीनों अपना वर्चस्व कायम करने के लिये पैसा, पावर व पहुंच का इस्तेमाल भी करते हैं. एक गुट शिवलीबाड़ी का है, जिसके तार गैंगस्टर प्रिंस खान से जुड़े हैं. यह गुट गैंगस्टर प्रिंस खान के जरिये इस अवैध कारोबार पर अपना सिक्का जमाना चाहता है. प्रिंस खान की धमकी वर्चस्व की लड़ाई का पहला कदम माना जा रहा है. चिरकुंडा-मैथन क्षेत्र में इस व्यवसाय में रोशन वर्णवाल, राजकुमार एवं झामुमो का एक युवा नेता शामिल है.
सभी को सत्ताधारियों व पुलिस का संरक्षण
इन सभी को सताधारी दल के विधायक, मंत्री एवं उच्च पुलिस पदाधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है. सूत्रों के अनुसार रोजाना थाई मांगुर मछली लदा 30–35 ट्रक बंगाल से झारखंड में प्रवेश करता है. प्रत्येक गाड़ी से 15 हजार रुपये वसूला जाता है. अनुमानतः रोजाना पांच लाख रुपये की वसूली होती है. इसलिये लाखों की कमाई को कोई गुट आसानी से छोड़ने वाला नहीं है. तीनों इस धंधे पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. इसीलिए इस व्यवसाय में खूनी संघर्ष की आशंका मंडराने लगी है.
बंगाल के रास्ते आता है झारखंड
बांग्लादेश में थाई मांगुर मछली का उत्पादन ज्यादा होता है. वहां से पश्चिम बंगाल के कोलकाता के वशीरहाट, नैहटी एवं अन्य कई स्थानों पर आता है. वहां से पिकअप या अन्य वाहनों से झारखंड सीमा में प्रवेश करता है, जहां से बिहार, यूपी, दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भेजा जाता है.
क्या है थाई मांगुर
थाई मांगुर का वैज्ञानिक नाम क्लेरियस गेरीपाइंस है. थाईलैंड में विकसित इस मछली की विशेषता यह है कि यह दूषित पानी में तेजी से बढ़ती है. जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती हैं, ये जीवित रहती हैं. थाई मांगुर छोटी मछलियों समेत अन्य जलीय कीड़े-मकोड़ों को खा जाती है. इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब हो जाता है. भारत सरकार ने वर्ष 2000 में थाई मांगुर के खाने और व्यापार करने पर रोक लगा रखी है. इससे स्थानीय मछली की प्रजाति नष्ट होने का खतरा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि यह बड़े बड़े सांप को भी खा जाती है. यह मांसाहारी होती है, जो तीन-चार महीने में ही ढ़ाई से तीन किलो तक की हो जाती है. इसके खाने से कैंसर, डायबिटीज जैसी कई घातक बीमारी होने का खतरा है. थाई मांगुर मछली जहर है, जिसे खाने के बाद लोग असमय मौत के मुंह में जा सकते हैं.
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