Shesh Narayan Singh
Maithan: एग्यारकुंड प्रखंड क्षेत्र के एग्यारकुंड दक्षिण पंचायत में स्थित मुंडाधौड़ा के आदिवासी टोला का अस्तित्व खतरे में है. इस गांव के मानचित्र से जल्द ही आदिवासी टोला का नाम मिटने वाला है. रेलवे फ्रेट कॉरिडोर निर्माण के लिए पूरे आदिवासी टोला के लोगों को जमीन खाली करने का नोटिस दे चुका है. नोटिस मिलते ही गरीब, मजदूर व भूमिहीन आदिवासियों को सिर से छत छिन जाने डर सताने लगा है. देश के आजादी के पूर्व से बसे 80 परिवार के लगभग तीन सौ लोग आशियाना उजड़ जाने की कल्पना से ही सिहर उठते हैं. इधर आदिवासियों के पुनर्वास को लेकर न झारखंड सरकार को कोई चिंता है और न ही कोई राजनीतिक दल दिलचस्पी लो रहा है.
आदिवासियों ने हक के लिए खुद लड़ने की ठानी
विस्थापन के दर्द से कराहते आदिवासियों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. हालांकि आदिवासियों ने अपने हक के लिए खुद लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस ली है. गांव में बैठक हो रही है व आंदोलन की रणनीति बनाई जा रही है. सभी ने एक स्वर से कहा कि पहले पुनर्वास की व्यवस्था हो, तभी जगह खाली करेंगे. ग्रामीणों ने धनबाद के डीसी संदीप कुमार सिंह को त्राहिमाम पत्र भी भेजा है और पीएम आवास की कॉलोनी बनाकर पुनर्वास की मांग की है. रेलवे का नोटिस जारी होने के एक माह से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी कहीं से कोई सुगबुगाहट देखने को नहीं मिल रही है. ऐसी हालत में जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों के अधिकार की बात भी बेमानी साबित हो रही है.
पहले भी मिला था नोटिस, उठी थी पुनर्वास की मांग
बता दें कि वर्ष 2014 में भी इन आदिवासी परिवारों को नोटिस दिया गया था. उस समय फ्रेट कॉरिडोर निर्माण को लेकर यहां इंडस्ट्रीयल हब बनने की बात थी. तत्कालीन डीसी प्रशांत कुमार के नेतृत्व में टीम ने क्षेत्र का जायजा भी लिया था. लगभग छह सौ एकड़ गैर आबाद जमीन को चिह्नित भी किया गया था. लेकिन कुछ कारणों से इंडस्ट्रीयल हब का प्रोजेक्ट अन्यत्र हस्तानांतरित कर दिया गया. उस समय भी लोगों ने डीसी से पुनर्वास की मांग की थी. अब भी यह मामला अधर में लटका है.
अर्जुन मुंडा ने दी थी कॉलोनी बनाने की स्वीकृति
कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा ने आदिवासी टोला के लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था की पहल की थी. टोला की बगल में खाली पड़ी करीब छह एकड़ गैर आबाद जमीन पर इंदिरा आवास की कॉलोनी बनाने की स्वीकृति भी दी थी. परंतु यह योजना भी धरातल पर नहीं उतर सकी. छह एकड़ का उस भूखंड को फर्जी कागजात के जरिये दबंगों ने प्लाटिंग कर ऊंचे दाम पर बेच दिया. जिस जमीन पर गरीब, मजदूर एवं लाचार आदिवासी परिवार को बसाने की बात थी, वहां रईसों के बंगले बन चुके हैं.
ग्रामीणों की पीड़ा उनकी जुबानी
श्रीराम बारी ने कहा कि आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बावजूद गरीब आदिवासियों की सुनने वाला कोई नहीं है. रेलवे द्वारा हटाये जाने के बाद हम भूमिहीन आदिवासी कहां जाएंगे, यह चिंता दिन-रात सताती रहती है.
जग्गू मुंडा ने कहते हैं कि हमलोगों ने झामुमो जिलाध्यक्ष लखी सोरेन से मिलकर न्याय की गुहार लगाई है. उन्होंने सीएम से मिलकर पुनर्वास की व्यवस्था कराने का भरोसा भी दिया था. उस बात को एक माह से अधिक समय बीत चुका है. किंतु कहीं से भी कोई पहल दिखाई नहीं पड़ रही है.
गांव की महिला सोना बारी कहती हैं कि आजादी के पहले से हमलोग यहां मिट्टी व खपरैल का घर बनाकर रह रहे हैं. कई पीढ़ियां गुजर गई. अब हमलोग कहां जाएंगे. कोई मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहा है.
सुरा सेवइया का कहना है कि वे लोग भूमिहीन हैं. दैनिक मजदूरी कर किसी तरह जीवन यापन करते हैं. ऐसे में जमीन खरीद कर घर बनाना असंभव है. मुखिया, विधायक हो या सांसद किसी को भी उनकी चिंता नहीं है.
चिह्नित की जा रही है जमीन: सीओ
इस संबंध में एग्यारकुंड की अंचलाधिकारी अमृता कुमारी ने कहा कि पुनर्वास के लिए जमीन चिह्नित की जा रही है. सीआई ए्वं राजस्व कर्मचारी को जमीन जांच करने का निर्देश दिया गया है. जांच रिपोर्ट आने के बाद चिह्नित जमीन की बंदोबस्ती आदिवासी परिवारों के नाम की जाएगी, ताकि भविष्य में उनको परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े.
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