Lagatar Desk : 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला भाषियों पर अथक ज़ुल्म हो रहे थे. ऐसे में वहां के लोगों ने भारत की ओर आशाभरी निगाहों से सहायता के लिए देखा. एक पीड़ित बंगाली चिट्ठी लेकर संसद भवन पहुंच गया था. उसे पता चला कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने समधन की बुआ की बेटी की गोद भराई की रस्म के लिए इटली गई हुई थीं. वह निराश होकर संसद के बाहर पनवाड़ी की दुकान पर बैठ गया.
उसे उदास देखकर एक ओजस्वी युवक उसके पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा “भाई, तुम इतने उदास क्यों हों?” उस युवक को उस स्पर्श में एक अपनापन लगा। उस nasal voice में उसे देववाणी सुनाई देने लगी. उसने छलछलाती आँखों से सारा वाकया बताया.
उस ओजस्वी युवक ने पहले तो उस बंगाली को अपनी “भरी” हुई सिगरेट दी और फिर अपने जेब से एक यंत्र निकाला, (जो बाद में दुनिया ने मोबाइल फ़ोन के नाम से जाना जाने लगा) और उससे तीन चार बार लोगों से बातें की. उस बंगाली युवक को सांत्वना दी और कहा कि घबराने की ज़रूरत नहीं है. मैं सब ठीक कर दूंगा.
इसके बाद उस यंत्र से अपना फ़ोटो भी खिंचवाया. वह बंगाली युवक 4 दिन बाद ढाका पहुंच गया. लेकिन तब तक वह पूर्वी पाकिस्तान में नहीं बल्कि बांग्लादेश में था. ढाका की सड़कों पर वही ओजस्वी नवयुवक जनता के कंधों पर फूल माला से लदे बैठे दिखाई पड़ा. पूछने पर पता चला कि इस युवक ने सारी पाकिस्तानी सेना को अकेले मार गिराया. और अब नया मुल्क बना है, जिसका नामकरण इसी ने बांग्लादेश करके इसने अपना नाता भी जोड़ लिया है. वह जाकर नये आजाद मुल्क में चैन से सो गया.
सुबह उठकर उसने अख़बार देखा तो किसी साज़िश के तहत इन्दिरा गांधी का फ़ोटो छपा था. इस मुक्ति संग्राम की नायिका के तौर पर. उसे बड़ा दुःख हुआ. तभी उसने प्रण लिया कि इसके असली हक़दार को एक न एक दिन वह दुनिया के सामने इसका श्रेय दिलायेगा. मीटरों, आज वह शुभ दिन है. आज उस ओजस्वी युवक ने पूरे साल भर बाद भारत से बाहर अपना जहाज़ निकाला है और आज इतिहास उसके साथ किये गए अन्याय के लिए माफ़ी मांगेगा.
ये इतिहास वामी और कांगियों ने बदल डाला था. बड़ी मुश्किल से ढूंढ कर लाया हूं. इसे इतना शेयर करें कि मरे हुए वामी कांगियों की आत्मा चीत्कार उठे.
डिस्क्लेमरः यह लेख चोरी की है. इसलिए लेखक का नाम नहीं दिया गया है.