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Ranchi: कहते हैं भगवान हर जगह नहीं जा सकते, इसलिए उन्होंने मां को बनाया. कोविड काल में कई माएं घर में अपने बच्चों की देखभाल छोड़ हॉस्पिटलों और सड़कों पर बतौर डॉक्टर, नर्स और पुलिसकर्मी भगवान के बच्चों की देखभाल में दिनरात जुटी हैं. जानिए मदर्स डे पर ऐसे ही तीन वॉरियर मां-बेटी की कहानी.
गाइनाकोलॉजिस्ट बेटी को हर दिन हंसते हुए चेहरे के साथ कोविड में ड्यूटी की देती हैं हिम्मत
जब बच्चा गर्भ में ही होता है, तब ही एक औरत मां बन जाती है. कोविड के इस दौर में गर्भवती महिलाओं को संक्रमण का खतरा अधिक होता है. कई तो पॉजिटिव भी होती हैं. रिम्स के गाइनाकोलॉजी विभाग की डॉ शिवानी गुप्ता उन डॉक्टर्स में से एक हैं, जो हर दिन कई कोविड महिलाओं की सफल डिलीवरी करा रहीं है. कोविड में ट्रॉमा सेंटर में भी उन्हें विशेष ड्यूटी दी जाती है. जहां कनफर्म्ड पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी करायी जाती है. डॉ शिवानी का कहना है कि परिस्थितियों को देख डर तो बहुत लगता है, पर ऐसे समय में अगर हम डर गये तो लोगों की मदद कौन करेगा. डॉ शिवानी का परिवार कांके में रहता है. पर लगातार कोविड के दौरान ड्यूटी करने के कारण वे पिछले 1 महीने से घर नहीं गयी हैं.
डॉ शिवानी की कोविड ड्यूटी से उनकी मां रीता देवी काफी डरी रहती हैं. डॉ शिवानी का कहना है कि मां डरती बहुत है, पर मुझे बहुत सपोर्ट करतीं है. हर दिन वीडियो कॉल पर उनका हंसता हुआ चेहरा देख बतौर कोरोना वॉरियर काम करने की हिम्मत मिलती है. वो लगातार मुझे ड्यूटी पर डबल मास्किंग करने, ड्यूटी पर इस्तेमाल हुए मास्क को हॉस्टल रूम में नहीं इस्तेमाल करने, गरारा करने, स्टीम लेने, विटामिन सी लेते रहने और ड्राई फ्रूट्स खाते रहने के लिए कहती रहती हैं. शायद इसलिए मैं अभी तक कोविड से बची हुई भी हूं.
वीडियो कॉल पर राजकिशोरी बाड़ा रख रहीं अपनी दो बेटियों का खयाल
बनहोरा की रहने वाली पुलिसकर्मी राजकिशोरी बाड़ा 8 और 6 वर्ष की दो बेटियों की मां हैं. फिलहाल राजकिशोरी सदर हॉस्पिटल में कोविड की नाइट ड्यूटी कर रहीं है. कोविड ड्यूटी के कारण बीते 17 अप्रैल से वह अपनी घर नहीं गयी. बेटियों से केवल वीडियो कॉल के जरिये मिलती हैं. उनका कहना है बेटियां काफी छोटी हैं. वे अपना ख्याल खुद नहीं रख सकती. उनके पास उनके पिता का अलावा कोई और नहीं है. वह भी बैंक में ड्यूटी करते है. ऐसे में हर आधे घंटे में मैं उन्हें फ़ोन कर उनका हाल-चाल पूछती रहती हूं. पास न होने के कारण उन्हें ठंडा पानी पीने से नहीं रोक पाती, उन्हें स्टीम नहीं दिला पाती न ही गर्म-गर्म खाना खिला पाती हूं. हर समय फ़ोन कर उन्हें बाहर खेलने न जाने, गेट बिल्कुल नहीं खोलने, कोई परिचित आये तो उनसे भी दूरी बनाये रखने, हाथों को धोते रहने, गर्म पानी और खाना खाने को कहती हूं. डर काफी लगता है, पर ड्यूटी भी जरूरी है. वह कहती हैं कि उम्मीद है कि महामारी जल्द खत्म होगी और मैं अपनी बेटियों से जल्दी मिल पाऊंगी.
11 वर्ष का आयुष टेस्टिंग सेंटर में नियुक्त अपनी मां को हर दिन ड्यूटी करने के लिए देता है हिम्मत
अड़गोड़ा की रहने वाली एएनएम सिस्टर मीनू एस्थर हेंब्रम सदर हॉस्पिटल की कोविड टेस्टिंग टीम का हिस्सा हैं. फिलहाल वह हटिया रेलवे स्टेशन के टेस्टिंग कैंप में नियुक्त हैं. इस आपदा की घड़ी में जब लोग घरों से भी निकलने से डरते हैं, मीनू का 11 वर्ष का बेटा अयूब आयुष उन्हें हर दिन ड्यूटी पर जाने की हिम्मत देता है. मीनू का कहना है कि इस समय लोगों को हम स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत है. अगर हम पीछे हट गये, तो इससे लड़ेगा कौन? हमें मिलकर इस महामारी को खत्म करना है और इसके लिए मेरा बेटा मुझे हर दिन हिम्मत देता है. कभी-कभी मुझे जब डर लगता है तो अयूब मुझे बिना डरे लड़ने को कहता है.
मीनू ने बताया कि हर दिन जब वह ड्यूटी से घर जाती हैं, तो उनका बेटा उनके लिए दरवाजे पर इंतज़ार करता है. गेट खोलकर रखता है. नहाने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था करता है. इसके साथ ही मीनू हर दिन स्टीम लें, इसका ध्यान भी अयूब हरदिन रखता है. ड्यूटी से लौटने के बाद खुद को पूरी तरह सैनिटाइज कर दोनों, मां-बेटे परिवार के साथ समय बिताते हैं.