Chakulia : पूर्वी सिंहभूम के चाकुलिया प्रखंड के दुर्गा प्रसाद हांसदा आदिवासी पारंपरिक वाद्ययंत्र केंदरी को बचाए रखने की मुहिम में जुटे हैं. बर्डीकानपुर-कालापाथर पंचायत के माछकांदना गांव के रहनेवाले दुर्गा संथाल जनजाति से आते हैं. बचपन से ही वाद्ययंत्रों से उनका लगाव रहा है. लेकिन केंदरी जैसे वाद्ययंत्र धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर पहुंचने लगे. यह देख दुर्गा प्रसाद हांसदा ने इसे संरक्षित रखने के लिए इसे बनाने का काम शुरू किया. साथ ही केंदरी और बांसुरी बजाने की शिक्षा बच्चों को भी देनी शुरू की, ताकि यह ये वाद्ययंत्र पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रह सकें.
केंदरी बनाने में नारियल, बकरी चमड़ा का प्रयोग
दुर्गा बताते हैं कि केंदरी को बनाने में नारियल, गम्हार की लकड़ी के साथ ही बकरी का चमड़ा, घोड़ा के बाल का प्रयोग होता है. वे कहते हैं कि अब यह वाद्ययंत्र फिर से प्रचलन में आने लगा है. इसकी आपूर्ति जर्मनी, बांग्लादेश, श्रीलंका, जापान तक में मैंने की है. 19 अगस्त को ही 21 केंदरी की आपूर्ति रांची की एक संस्था के जरिए की गई है. दुर्गा हांसदा बताते हैं कि बड़ा केंदरी का मूल्य 2 हजार रुपए होता है, वहीं छोटे केंदरी का मूल्य डेढ़ हजार रु है. बांसुरी का मूल्य 150 से 200 रुपए के बीच होता है. वे कहते हैं कि आदिवासी संस्कृति को बचाने की इस मुहिम में उन्हें सुकून मिलता है और इसे वह हमेशा जारी रखेंगे, अब यह उनके लिए रोजगार भी है और जीवन भी.
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