Vijay Shankar Singh
यह कहना अपनी अक्षमता छुपाना है कि हमारे सामने अदृश्य दुश्मन है. दुश्मन न तो अदृश्य है और न ही उसका पल-पल परिवर्तित वेश ही अदृश्य है. 30 जनवरी 2020 को उस दुश्मन को देख, परख और जान लिया गया था. उसकी फितरत बयां हो गयी थी, पर जनता जहां उस अदृश्य दुश्मन से बचने के लिए हाथ-गोड़ धो रही थी, और मास्क पहन रही थी. सरकार ने आंखे ढंक ली थीं. नमस्ते ट्रम्प का आयोजन कर रही थी और स्वास्थ्य मंत्री 13 मार्च 2020 तक यही कह रहे थे कि स्वास्थ्य मंत्री एक मेडिकल इमर्जेंसी नहीं है. और जब वे यह सब कह रहे थे, कोरोना वायरस बगल में खड़ा भविष्य की योजनाएं बना रहा था.
अदृश्य कोरोना नहीं था अदृश्य सरकार, उसकी प्राथमिकताएं और गवर्नेस थीं और है. जब सरकार को हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करना चाहिए था, लोगों को नकद धन देकर बाजार में मांग और आपूर्ति का संतुलन बनाये रखना चाहिए था तो, सरकार, देश की कृषि संस्कृति को बर्बाद करने के गिरोही पूंजीवादी षडयंत्र में लिप्त थी. कैसे यह तीनों कृषि कानून संसदीय मर्यादाओं को ताक कर रखकर पास करा दिया जाये, इसके जोड़ गांठ में लगी थीं. उसका ध्यान ही महामारी के नियंत्रण और निदान की ओर नहीं था. और आज भी जब वह महामारी नियंत्रण की समीक्षा करने बैठती है तो आपदा की आड़ में आईडीबीआई बैंक को बेचने का अवसर हाथ से नहीं जाने देती है!
जब दुनियाभर के देश कोरोना के बारे में हो रहे शोधों का अध्ययन कर के वैक्सीन पर करोड़ों डॉलर खर्च कर के अपनी जनता के लिए सघन वैक्सिनेशन की योजना बना रहे थे तो, सरकार खुद के चाटुकारों द्वारा वैक्सीन गुरु के अलंकरण पर आत्ममुग्ध हो रही थी. आत्ममुग्धता सबसे पहले विवेक का ही मुंडन करती है.
जब दूसरी लहर आ गयी और इसने देशभर में तबाही मचानी शुरू कर दी, तब भी प्रधानमंत्री जी की चुनावी रैलियां नहीं रुकी. प्रधानमंत्री तो दिखते रहे पर गवर्नेंस अदृश्य हो गयी. वे जब आसनसोल की चुनावी रैली पर प्रसन्न हो रहे थे, तब तक कोरोना महामारी ने लोगों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया था. केवल बंगाल के चुनाव के लिए आयोग ने सरकार के कहने पर 8 चरणों में चुनाव रखा था. यह अलग बात है कि जनादेश टीएमसी के पक्ष में आया.
दुनियाभर के वैज्ञानिक और वायरजोलोजिस्ट इस बात पर सहमत थे कि, इस आपदा की दूसरी लहर आने वाली है. और जब यह दूसरा बवंडर सहन में जोर पकड़ रहा था, तो 23 मार्च 2021 को सरकार कोरोना विजय की घोषणा कर रही थी और इसी जश्न और उन्माद के ठीक एक माह के भीतर वह वायरल तूफान आया कि आज श्मशान में लकड़िया कम पड़ गयी और कब्रिस्तान में जमीन.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.