आवास की कमी बनी सबसे बड़ी बाधा
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कुछ सूत्रों ने बताया कि कल्याण विभाग द्वारा संचालित आदिवासी छात्रावासों में पर्याप्त स्थान उपलब्ध नहीं है. विशेषकर सिमडेगा, गुमला, खूंटी और संथाल परगना जैसे सुदूर जिलों से आने वाले छात्र, जो रांची में पढ़ाई करना चाहते हैं. लेकिन वहां रहने की सुविधा न मिलने के कारण लौटने पर मजबूर हो जाते हैं.आरक्षण और सीट वितरण को लेकर भी सवाल
झारखंड में 32 मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजातियां हैं. लेकिन जनजातीय भाषाओं में अध्ययन करने वाले छात्रों को छात्रावासों में समान रूप से सीटें नहीं मिल रही हैं. कुछ विशिष्ट भाषाओं के छात्रों को प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे अन्य जनजातियों से आने वाले छात्र हाशिए पर चले जा रहे हैं. इस गिरावट और असमानता को लेकर अब शैक्षणिक संस्थानों और कल्याण विभाग की नीतियों पर प्रश्न उठने लगे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल्द उचित नीतिगत सुधार नहीं किए गए, तो आदिवासी भाषाओं के संरक्षण की दिशा में यह एक गंभीर बाधा बन सकता है. इसे भी पढ़ें -JPSC">https://lagatar.in/student-satyanarayan-ends-his-hunger-strike-over-jpsc-mains-result-warns-the-government/">JPSCमेंस रिजल्ट को लेकर छात्र सत्यनारायण का अनशन समाप्त, सरकार को दी चेतावनी