Chennai : ‘हरित क्रांति’ के जनक व प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का आज गुरुवार को निधन हो गया. उन्होंने 98 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली. पिछले कुछ दिनों से एम एस स्वामीनाथन उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे. आखिरकार वो जिंदगी से जंग हार बैठे और दुनिया को अलविदा कह दिया. एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के सूत्रों ने यह जानकारी दी है. (पढ़ें, मॉनसून : 226 जिलों में 20 -60 फीसदी कम, 372 जिलों में सामान्य बारिश, देश में 6 फीसदी कम बारिश)
पीएम मोदी ने स्वामीनाथन के निधन पर शोक व्यक्त किया
स्वामीनाथन के निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि अर्पित की है. उन्होंने एक्स पर लिखा कि डॉ. एमएस स्वामीनाथन जी के निधन से गहरा दुख हुआ. हमारे देश के इतिहास के एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय में, कृषि में उनके अभूतपूर्व कार्य ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया और हमारे देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की.
Deeply saddened by the demise of Dr. MS Swaminathan Ji. At a very critical period in our nation’s history, his groundbreaking work in agriculture transformed the lives of millions and ensured food security for our nation. pic.twitter.com/BjLxHtAjC4
— Narendra Modi (@narendramodi) September 28, 2023
तमिलनाडु के कुम्भकोणम में जन्मे थे स्वामीनाथन
एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुम्भकोणम में हुआ था. उन्होंने जूलॉजी और एग्रीकल्चर दोनों से विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली थी. वे पौधों के जेनेटिक वैज्ञानिक थे. स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में 1972 से 1979 तक और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में 1982 से 88 तक महानिदेशक के रूप में काम किया.
84 बार डॉक्टरेट की उपाधि से हो चुके थे सम्मानित
एमएस स्वामीनाथन को 1967 में ‘पद्म श्री’, 1972 में ‘पद्म भूषण’ और 1989 में ‘पद्म विभूषण’ अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था. इतना ही नहीं उन्हें 84 बार डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था. इसमें से 24 डॉक्टरेट की उपाधियां अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से मिली थीं.
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भारत को अकाल से उबारने में निभायी महत्वपूर्ण भूमिका
1960 के दशक में भारत अकाल के कगार पर था. तब स्वामीनाथन ने अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग व अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके गेहूं की उच्च पैदावारवाली किस्म (HYV) बीज विकसित की थी. ‘हरित क्रांति’ कार्यक्रम के तहत गरीब किसानों ने अपने खेतों में ज्यादा उपज देने वाले गेहूं और चावल के बीज लगाये थे. जिससे खाद्यान्न मामले में भारत आत्मनिर्भर बना था. तब से उन्हें ‘फादर ऑफ ग्रीन रेवोल्यूशन इन इंडिया’ यानी ‘हरित क्रांति का पिता’ भी कहा जाता है.
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