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फादर्स डे स्पेशल : पिता करते थे दिहाड़ी मजदूरी, अभाव में रहकर किया संघर्ष, बने सफल डॉक्टर

Sourabh Shukla मेरे पिता अपना पेट काटकर मुझे हर महीने 76 रुपये भेजा करते थे. इसी पैसे से मैं अपना मेस का चार्ज, हॉस्टल का किराया और पॉकेट का खर्च निकालता था. पिता दिहाड़ी मजदूर थे और उनका सपना था कि मेरा बेटा डॉक्टर बने. अपने पिता की अरमान को पूरा करने के लिए मैंने दिन रात पढ़ाई की और मैट्रिक में अपने जिले का सेकंड टॉपर रहा. पूरी दुनिया 20 जून को फादर्स डे मनाती है. अपने पिता को याद करते हुए रिम्स मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ बी कुमार भावुक हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि अपनी जिंदगी में तंगहाली मैंने देखी है. इसी का परिणाम है कि आज मैं चिकित्सक हूं और लोगों की सेवा में हर रोज समय पर ड्यूटी पहुंच जाता हूं.

देखें वीडियो- 

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ऐसे तय किया जिंदगी का सफर

एक फरवरी 1959 को बिंदे कुमार का जन्म धनबाद जिले में हुआ. इन्होंने धनबाद के मटकुरिया रोड स्थित खालसा हाई स्कूल से 1976 में मैट्रिक की. मैट्रिक में अपने जिले के सेकंड टॉपर रहे. 1978 में पटना के साइंस कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद पटना मेडिकल कॉलेज से 1984 में एमबीबीएस पास किया. फिर पटना मेडिकल कॉलेज से 1989 में एमडी मेडिसिन किया. 1990 में खरसावां के कुचाई पीएचसी में बतौर चिकित्सक डॉ बिंदे ने अपना योगदान दिया. 6 साल तक इस पीएचसी में काम करने के बाद 1996 में रिम्स आ गए. उस वक्त यह आरएमसीएच हुआ करता था और अब रिम्स के मेडिसिन विभाग में बतौर यूनिट इंचार्ज अपनी सेवा दे रहे हैं.

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एक बेटी को बनाया डॉक्टर, दूसरे को इंजीनियर

डॉ बिंदे कुमार की दो बेटी है. बड़ी बेटी शिखांशी लोकमान्य तिलक म्युनिसिपल मेडिकल कॉलेज (SION) मुंबई से ऑब्स गायनी में मास्टर इन सर्जरी की पढ़ाई कर रही हैं, जबकि दूसरी बेटी श्रुति एनआईटी कालीकट केरल से बीटेक करने के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु से एमटेक की पढ़ाई कर रही है. http://lagatar.xprthost.in/wp-content/uploads/2021/06/Fathers-day12-300x200.jpg"

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पिता के संघर्ष से मिलती है प्रेरणा

डॉ बिंदे कुमार की बड़ी बेटी डॉ शिखंशी ने कहा कि मुझे अपने पिता के संघर्ष से प्रेरणा मिलती है. हमें अच्छा करने के लिए हमेशा प्रेरित करते हैं. इसका परिणाम है कि मैं आज एमबीबीएस कंप्लीट कर आगे की पढ़ाई कर रही हूं.

बचपन से मिला मां-पिता का प्यार

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु से एमटेक कर रही छोटी बेटी श्रुति ने कहा कि बचपन से ही माता-पिता का प्यार मिला है. उन्होंने हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित किया है.

ईमानदारी से निभाते हैं अपनी ड्यूटी

वहीं डॉ बिंदे कुमार की पत्नी शिखा कुमार कहती हैं कि मेरे पति हमेशा ईमानदारी से काम करते हैं. वो समय के पक्के हैं. मरीजों की सेवा करते हैं और रविवार को भी मरीजों को देखने के लिए एक बार अस्पताल जरूर जाते हैं. [wpse_comments_template]
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