Girish Malviya
आपने मॉल या बसस्टैंड के आसपास आपने किसी दोपहिया गाड़ी पर छतरी लगाये लोगों को देखा होगा जो आपको एक घंटे में हजारों का लोन ऑफर करने का दावा करते हैं. जिन लोगों ने उनसे सेवा ली होगी, वे जानते हैं कि वे ऐसा आसानी से कर भी देते हैं. दरअसल, लोन की दुनिया में बहुत बड़ा बदलाव आ चुका है. अब बैंक या बड़ी फाइनेंस कंपनियां लोन नहीं देतीं. इस मार्केट में छोटी-छोटी अनेक कंपनियां आ गयी हैं, जिन्हें फिनटेक कंपनियां कहा जाता है.
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बैंक और गैर-वित्तीय कंपनियां (NBFC) कर्ज के लिए काफी पड़ताल और कवायद के बाद कर्ज देती रही हैं, लेकिन एप के जरिये ऑनलाइन कर्ज देने वाली यह कंपनियां सिर्फ 60 मिनट में कर्ज की पेशकश कर 180 से 360 फीसदी तक ब्याज वसूल रही हैं. ये कंपनियां बेहद छोटी अवधि के लिए भी कर्ज देती हैं, जो 15 दिन से एक माह के लिए होता है.
बैंक या एनबीएफसी आपको जो कर्ज देते हैं, उनका ब्याज फीसदी के रूप में तय होता है यानी 10 फीसदी से 14 फीसदी तक. इन नयी फिनटेक कंपनियों पर RBI का कोई कंट्रोल नहीं है, इसलिए इनका ब्याज एक तरह से अनलिमिटेड ही रहता है.फिनेटक की नजर भारत के 45 करोड़ युवा आबादी पर है, जो आसानी से स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं. एप के जरिये कर्ज बांटने वाली यह कंपनियां कॉलेज जाने वाले या नयी नौकरी शुरू करने वाले युवाओं को ज्यादा शिकार बनाती हैं.
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इन कंपनियों को आपके सिविल स्कोर से ज्यादा आपके ऑनलाइन व्यवहार में ज्यादा दिलचस्पी है
ये कंपनियां यूजर के ऑनलाइन प्रोफाइल को देखती हैं. मोबाइल या टेलीफोन बिल चुकाने का इतिहास, ऑनलाइन शॉपिंग का तरीका और इंटरनेट पर बिताये जाने वाले वक्त पर भी नजर रखी जाती है. खर्च करने के तरीके को भी देखा जाता है. अगर प्रोफाइल इन बातों के मुताबिक होता है, तो पैन और आधार कार्ड अपलोड करते ही कर्ज मिल जाता है.
फिनटेक कंपनियां जब कर्ज देती हैं तो उनके एप को डाउनलोड करने की शर्त में यह भी जुड़ा होता है कि वह आपके मोबाइल के डेटा की हर तरह से पड़ताल कर सकती हैं. ऑबजर्बर रिसर्च फाउंडेशन के रिसर्च फेलो के.जे.शशिधर का कहना है कि बस यहीं से वह उपभोक्ता के सभी डेटा पर कब्जा कर लेते हैं. इसके जरिये वह माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के नंबर के साथ दोस्तों का नंबर भी आसानी हासिल कर लेते हैं और धमकी देने लगते हैं.
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ये एक तरह का प्री एप्रूव्ड लोन होता है. ये कंपनियां आपके ऑनलाइन खाते खोलती हैं, जो आईडी और पासवर्ड से संचालित होते हैं. आपकी क्रेडिट सीमा के अनुसार, उसमें कंपनियां राशि पहले से डाल देती हैं. ये कंपनियां अब ई-कॉमर्स से छोटी-मोटी खरीदारी के साथ एप के जरिये खाना मंगाने के लिए भी तुरंत कर्ज की पेशकश कर रही हैं.
इसे कंपनियों ने अभी खर्च करो और बाद में चुकाओ (बाई नाऊ पे लेटर) नाम दे रखा है. यानी, अब आप पिज्जा बर्गर खाने के लिए भी लोन ले सकते हैं.अब इन कंपनियों की सबसे खास बात जान लीजिए कि आखिर इन युवाओं को लोन देने के लिए रकम ये छोटी मोटी कंपनियां लाती कहां से हैं. दरअसल, यह कंपनियां पीयर-टू-पीयर मॉडल पर काम करती है जो मूल रूप से लेंडिंग क्राउड फंडिंग का तरीका है. ये पीयर-टू-पीयर लेंडिंग है, यानी एक व्यक्ति दूसरे से लोन लेता है.
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P2P मॉडल में जिन लोगों को कर्ज की जरूरत होती है, वे उन लोगों से लोन ले लेते हैं, जो कर्ज देकर उस रकम पर ब्याज कमाना चाहते हैं. इस सिस्टम में लोन देने और लोन चाहने वाले, दोनों को फायदा होता है. देने वाला बचत इंस्ट्रूमेंट में पैसा लगाने की जगह कर्ज देकर उस रकम पर ज्यादा ब्याज कमा लेता है और कर्ज लेने वाले को वित्तीय संस्थानों से कम ब्याज दरों पर लोन मिल जाता है.
कंपनी कर्ज देने वालों का पूल बनाकर उससे कई लोगों को कर्ज देती है. लोन का पोर्टफोलियों डायवर्सिफाइड होने से जोखिम कम होता है. इसके तहत कानूनी कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर कर्ज दिया जाता है. इसलिए ही पी2पी प्लेटफॉर्म खराब क्रेडिट स्कोर के बावजूद लोन दे देते हैं. ऊंची दरों के बावजूद लोग यहां से कर्ज लेने को तैयार रहते हैं, क्योंकि उन्हें यहां बैंक जैसी जटिल प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता.
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पिछले कुछ महीनों में इन फिनटेक कंपनियों से लिये गये कर्ज न चुका पाने पर उधार देने वालों के उत्पीड़न और यातनाओं से परेशान होकर सैकड़ों युवा आत्महत्या कर चुके हैं. इनमें टीवी सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा के लेखक अभिषेक मकवाना का नाम भी शामिल है. कोरोना के बाद हुए लॉकडाउन के पीरियड में ऐसे कर्ज की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है.
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