Search

वो आतंकवादी नहीं था - 01

Surjit Singh Ranchi: चार नाम हैं. मौलाना अब्दुल रहमान उर्फ मौलाना कटकी. मौलाना कलीमुद्दीन और अब्दुल सामी और अहमद मसूद अकरम शेख उर्फ मोनू, चारों मुसलमान हैं और इस देश के आम नागरिक. चारों ना आतंकवादी थे और ना आतंकवादी हैं. सरकार, पुलिस, सिस्टम और मीडिया ने इन चारों को आतंकवादी करार दिया. उनकी जिंदगी के आठ साल उससे छीन लिए और जिंदगी को नरक बना दिया.
वो चारों आतंकवादी नहीं थे. सिस्टम ने उन्हें आतंकवादी बताकर जेल में डाल दिया. मीडिया ने उसकी तस्वीर छापी-दिखायी. आतंकवादी बताया. गौरक्षा समिति से जुड़े लोग पुलिस के गवाह बनें. वो चारों जेल में सड़ते रहे और उनके परिवार के लोग बाहर समाज की नफरत झेलते रहे. इन चारों के मान, सम्मान, इज्जत, धन, घर-परिवार सब पर आतंकी होने का ठप्पा लगा दिया गया और अब आठ साल बाद कोर्ट का फैसला आया कि वो तीनों आतंकवादी नहीं हैं. तो पुलिस चुप है.
इस कहानी को समझने के लिए यह वीडियो भी देखें..

मौलाना अब्दुल रहमान उर्फ कटकी ओडिशा के कटक का रहने वाला है. अहमद मसूद, कलीमुद्दीन व अब्दुल सामी जमशेदपुर के रहने वाले हैं. उनकी कहानी शुरु होती है जनवरी 2016 से. देश में हिन्दुत्व का झंडा बुलंद होने लगा था. मुसलमानों के प्रति नफरत को बढ़ाने का दौर चल रहा था. राज्य में भाजपा की सरकार थी. रघुवर दास मुख्यमंत्री थे और गेरूआ वस्त्र पहनकर, गर्दन में सांप लपेट कर खुद को हिन्दुत्व का चेहरा बताने वाले डीके पांडेय राज्य के डीजीपी. अनुसंधान, केस डायरी, पुलिस अधिकारियों व गवाहों के बयान और अदालत के फैसले से अब पता चल रहा है कि कटकी समेत चारों को सिर्फ सुनी-सुनायी बातों के आधार पर आतंकवादी बताकर जेल में ठूंस दिया गया. उन्हें टेरर फंडिंग से जोड़ दिया गया. फर्जी गवाह, झूठे तथ्य के आधार पर तीनों को अलकायदा का आतंकवादी बताया गया और सरकार, पुलिस व सिस्टम ने खूब वाहवाही लूटी. सुनी सुनायी बातों के आधार पर अलकायदा से जोड़ दिया जमशेदपुर निवासी मौलाना कलीमुद्दीन पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने और टेरर फंडिंग के आरोप लगे. जांच के दौरान तीन जांच अधिकारी बदले गये. चौथे जांच अधिकारी अवध कुमार यादव ने मौलाना के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने सहित अन्य आरोपों को सही बताते हुए चार्जशीट दाखिल किया. लेकिन बचाव पक्ष की जिरह में उन्होंने मौलाना के खिलाफ आपराधिक इतिहास नहीं मिलने की बात मान ली.
पुलिस अधिकारी उस इकबालिया बयान पर हस्ताक्षर करने से मुकर गये, जिस बयान के आधार पर मौलाना को आतंकवादी संगठन अलकायदा से जोड़ा गया था. ट्रायल में जिरह के दौरान पुलिस के गवाहों की झूठ पकड़ी गई. पुलिस के गवाहों ने बड़े अफसरों से मौलाना के घर आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी बैठकें होने की बातें सुनने की बात कही.
अदालत में पुलिस के स्वतंत्र गवाह होस्टाईल घोषित कर दिये गये. गवाहों के बयान सहित सभी पहलूओं पर विचार करने के बाद न्यायालय ने मौलाना कलीमुद्दीन को पिछले माह बरी कर दिया. न्यायालय के फैसले से पहले तक उन्होंने जेल की सजा काटी और समाज में बदनाम हुए. इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए जिरह के दौरान गवाहों द्वारा कोर्ट में स्वीकार की गयी बातों को जानना जरुरी है.इन्हीं बयानों के आधार पर न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया. पुलिस की कहानी- कैसे दर्ज हुई थी प्राथमिकी जमशेदपुर पुलिस ने इस मामले में जो प्राथमिकी दर्ज की थी, उसमें एक लंबी-चौड़ी कहानी है. पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, जमशेदपुर के बिष्टुपुर के तत्कालीन थाना प्रभारी जितेंद्र कुमार को दिल्ली की विशेष पुलिस से यह सूचना मिली थी कि रज्जाक कॉलोनी निवासी अहमद मसूद उर्फ अकबर शेख, उर्फ मसूद उर्फ मोनू का संबंध आतंकवादी संगठन अलकायदा से है. 22 जनवरी 2016 को मिली इस सूचना के बाद अहमद मसूद को थाने पर बुलाया गया. पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया.
25 जनवरी को मसूद को दोबारा बुलाया गया. पूछताछ में उसने आतंकी संगठन अलकायदा से संबंध होने की बात स्वीकार की. मसूद ने यह भी स्वीकार किया कि जमशेदपुर जामा मस्जिद में उसकी मुलाकात मौलाना अब्दुल रहमान उर्फ कटकी से हुई. मौलाना कलीमुद्दीन के घर पर बैठकें होती थीं. मसूद ने 2011 में सऊदी अरब में जेहादी ट्रेनिंग ली. इसके बाद अब्दुल सामी से मुलाक़ात की. सामी भी पाकिस्तान से जेहादी ट्रेनिंग लेकर लौटा था.
मसूद ने पुलिस को यह भी बताया कि राजू उर्फ नसीम उन्हें हथियार की सप्लाई करता था. मसूद के बयान पर 25 जनवरी 2016 को बिष्टुपुर थाने में प्राथमिकी (21/2016) दर्ज हुई. कथित आतंकियों की गिरफ्तारी के लिए जो छापामार दल बनाया गया, उसमें आठ पुलिसकर्मी शामिल किये गये थे. मसूद के घर से जापान में बनी 9mm पिस्तौल और गोलियां जब्त की गयी. प्राथमिकी में अहमद मसूद, राजू उर्फ नसीम अख्तर, अब्दुल सामी और मौलाना अब्दुल रहमान उर्फ कटकी को नामज़द अभियुक्त बनाया गया. मौलाना कलीमुद्दीन को अप्राथमिकी अभियुक्त बनाते हुए आतंकवादी संगठन अलकायदा से संबंध होने और टेरर फंडिंग का आरोप लगाया गया. इस मामले की जांच करने वाले चौथे जांच अधिकारी ने कलीमुद्दीन के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने और टेटर फंडिंग के मामले को सही मानते हुए आरोप पत्र दायर किया. पुलिस की ओर से कुल 16 गवाह पेश किये गये. इसमें से आठ छापामार दल के सदस्य थे, जो पुलिसकर्मी थे. चार जांच अधिकारी और दो जप्ती सूची के और दो स्वतंत्र गवाह. ट्रायल में सच आया सामने
  • पुलिस के गवाह दिलीप कुमार यादव : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान, उसने पैरा-6 और 7 में यह बयान दिया कि छापेमारी के दौरान वह मौलाना कलीमुद्दीन के घर नहीं गया था और किसी भी स्वतंत्र गवाह ने उसके सामने मौलाना कलीमुद्दीन के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की है. इस गवाह ने पैरा-8 और 9 में यह भी कहा दिया कि मौलाना कलीमुद्दीन के कब्जे से कोई भी आपत्तिजनक वस्तु बरामद नहीं हुई है और मौलाना कलीमुद्दीन को वह पहले से नहीं जानता था और जब उसे गिरफ्तार करने के बाद पुलिस स्टेशन लाया गया तो उसने उसे पहचान लिया.
  • जितेन्द्र कुमार (तत्कालीन थाना प्रभारी बिष्टुपुर) : इन्हें दिल्ली पुलिस की विशेष टीम द्वारा सूचना दी गई थी कि धातकीडीह के रज्जाक कॉलोनी निवासी मो. अहमद मसूद अकरम शेख उर्फ मसूद उर्फ मोनू का संबंध आतंकवादी संगठन अलकायदा से है और वह शहर के अन्य लोगों को अलकायदा से जोड़ने का प्रयास कर रहा है तथा उक्त सूचना प्राप्त होने के पश्चात उन्होंने सनहा दर्ज कर जांच शुरू की थी.
  • अदालत में जितेंद्र कुमार का बयान : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान उन्होंने यह बयान (पैरा-7) दिया कि अभियुक्त मौलाना कलीमुद्दीन को उन्होंने गिरफ्तार नहीं किया था. उन्हें यह भी याद नहीं है कि वह अभियुक्त मौलाना कलीमुद्दीन के घर गये थे या नहीं. हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि वह एक-दो बार कलीमुद्दीन के घर गये थे और आस पास के लोगों से पूछताछ की थी. लेकिन उन्होंने इस मामले की जांच अधिकारी को उन लोगों का नाम नहीं बताया था, जिनसे पूछताछ की थी. उन्होंने यह भी कहा (पैरा-8) कि उन्होंने मौलाना कलीमुद्दीन के घर पर छापा नहीं मारा था.
  • छापामार दल में शामिल गवाह सिपाही मुनीर खान : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान, उन्होंने कहा (पैरा-5) कि वह आरोपी मौलाना कलीमुद्दीन के घर नहीं गए थे. मौलाना कलीमुद्दीन के घर से कोई भी आपत्तिजनक सामान बरामद नहीं हुआ था.
  • छापामार दल में शामिल गवाह सिपाही बंदई :  बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान यह बयान (पैरा-3 व 4) दिया कि वह कभी भी आरोपी मौलाना कलीमुद्दीन के घर नहीं गये. मौलाना कलीमुद्दीन के आसपास के लोगों ने कभी उनसे मुलाकात नहीं की. उन्हें किसी ने यह नहीं बताया कि मौलाना कलीमुद्दीन के घर पर आतंकवादियों की बैठकें आयोजित की जाती थीं. बंदई उरांव ने यह भी कहा (पैरा-5 व 8) कि यह बात सच है कि उन्होंने पुलिस के समक्ष दिए गए अपने बयान में यह कहा था कि मौलाना कलीमुद्दीन अलकायदा संगठन से जुड़े हुए हैं. उन्होंने पुलिस के समक्ष यह बयान देने से पहले या बाद में मौलाना कलीमुद्दीन से मुलाकात नहीं की थी. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी से सुना था कि मौलाना कलीमुद्दीन के घर पर बैठकें हुआ करती थीं.
  • छापामार दल में शामिल गवाह बिपिन किशोर टेटे : बिपिन टेटे ने अपने बयान (पैरा 3 व 4) में कहा कि वह कभी मौलाना कलीमुद्दीन के घर पर नहीं गये थे ना ही मौलाना के घर के आसपास के लोगों से मुलाकात की थी. उन्हें किसी ने नहीं बताया कि मौलाना कलीमुद्दीन के घर पर आतंकवादियों की बैठकें आयोजित की जाती थीं. उनका बयान जांच अधिकारी द्वारा दर्ज नहीं किया गया (पैरा-5 व 8) था. उन्होंने आज ( 7.8.2024) इस मामले में पहली बार गवाही दी है. वह आरोपी मौलाना कलीमुद्दीन को नहीं जानते हैं. उन्होंने केवल कलीमुद्दीन की तस्वीरें देखी थीं. उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर आरोपी मौलाना कलीमुद्दीन के घर पर आतंकवादियों की बैठक होने की बात कही थी.
  • सोनारी थाना के तत्कालीन प्रभारी सुमन आनंद : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान उन्होंने बयान दिया (पैरा-5) कि वह आरोपी मौलाना कलीमुद्दीन मुजाहरी के घर नहीं गये थे. उन्हें इस मामले के संबंध में मौलाना कलीमुद्दीन से मिलने का कोई मौका भी नहीं मिला था. लेकिन घटना से पहले वह मौलाना कलीमुद्दीन को जानते थे.
  • डीएसपी (एटीएस) अनुज उरांव : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान, उन्होंने बयान दिया कि वह आरोपी मौलाना कलीमुद्दीन के घर गए थे. लेकिन उनके घर की तलाशी नहीं ली गई. घर के सदस्यों से ही पूछताछ की गयी. उन्होंने आरोपी मौलाना कलीमुद्दीन का बयान भी दर्ज नहीं किया. उन्होंने मौलाना के आसपास के लोगों का बयान बयान भी दर्ज नहीं किया. उन्होंने मौलाना कलीमुद्दीन मुजाहरी के खिलाफ कोई आरोप पत्र भी पेश नहीं किया. हालांकि यह मानने से इनकार कर दिया कि जांच दोषपूर्ण है.
  • डीएसपी (एटीएस) आनंद ज्योति मिंज : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान डीएसपी आनंद ज्योति मिंज ने यह बयान (पैरा-5) दिया कि आज उन्होंने पहली बार अदालत में आरोपी मौलाना कलीमुद्दीन से मुलाकात की. इससे पहले उन्हें उनसे मिलने का कोई मौका नहीं मिला था. उन्होंने मौलाना कलीमुद्दीन का बयान दर्ज नहीं किया (पैरा-6) था ना ही उनके घर पर गये थे.
  • मानगो के तत्कालीन थाना प्रभारी फूलन नाथ : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान फूलन नाथ ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने आरोपी अहमद मसूद अकरम शेख उर्फ मसूद उर्फ मोनू के इकबालिया बयान पर हस्ताक्षर नहीं किया था.
  • कृष्णा मंडल (एएसआई) : बचाव पक्ष की जिरह के दौरान कृष्णा मंडल ने कहा ( पैरा-3) कि आरोपी अहमद मसूद अकरम शेख उर्फ मसूद उर्फ मोनू के इकबालिया बयान पर उनका हस्ताक्षर नहीं है.
  • जसिंता केरकेट्टा (डीएसपी) : बचाव पक्ष की जिरह के दौरान कहा (पैरा-25) कि उन्होंने न तो आरोपी मोहम्मद कलीमुद्दीन को गिरफ्तार किया था और न ही उसके घर गई थीं.
  • लक्ष्मी नारायण सिंह (जब्ती सूची के गवाह) : लक्ष्मी नारायण ने अपने बयान में अहमद मसूद के घर से पिस्तौल मिलने और जब्ती सूची पर अपना हस्ताक्षर होने की पुष्टि की. बचाव पक्ष ने इस गवाह का क्रास एक्जामिनेशन नहीं किया.
  • श्रवण सिंह (जब्ती सूची के गवाब) : जब्ती सूची पर अपना बयान होने की पुष्टि की. बचाव पक्ष के गवाह ने क्रॉस एक्जामिनेशन करने से इंकार किया.
  • आसिफ खान उर्फ आसिफ लाला (स्वतंत्र गवाह) : पुलिस के इस स्वतंत्र गवाह ने कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराते हुए कहा कि उसे घटना के सिलसिले में कोई जानकारी नहीं है. पुलिस ने उससे मौलाना कलीमुद्दीन के बारे पूछा था. जवाब में उसने यह कहा था कि मौलाना अच्छा आदमी नहीं है. वह झाड़-फूंक और ताबीज के नाम पर गरीबों को ठगता है. आसिफ ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पुलिस के समक्ष दिये गये बयान से इनकार किया. इसके बाद उसे होस्टाईल घोषित कर दिया गया. बचाव पक्ष के जिरह के दौरान स्वतंत्र गवाह ने कहा कि उसने मौलाना कलीमुद्दीन के मदरसे को नहीं देखा है.
  • मुमताज़ अहमद (स्वतंत्र गवाह) : मुमताज ने अपने बयान में कहा कि वह अपने बच्चे की पढ़ाई के सिलिसिले में मौलाना से मिला था. वह झाड़-फूंक करता था. इसी के नाम पर लोगों से पैसा ऐंठता था. उसने पुलिस के समक्ष धारा 161 के तहत दिये गये बयान से इनकार किया. इसके बाद अभियोजन पक्ष की ओर से इस गवाह को होस्टाईल घोषित कर दिया गया. बचाव पक्ष द्वारा किये गये जिरह के दौरान उन्होंने कहा कि वह मौलाना के मदरसे में सिर्फ एक बार गया है. इसके बाद मदरसे में कभी नहीं गया.
  • अवध कुमार यादव (जांच अधिकारी) : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान जांच अधिकारी ने कहा कि (पैरा-19 व 20) पहली बार अभियुक्त कलीमुद्दीन को बर्मा माइंस थाना क्षेत्र में सुनसुनिया गेट के पास देखा था. वहीं से उसे गिरफ़्तार किया था. गिरफ्तारी के समय मेमो ऑफ अरेस्ट में गिरफ्तारी का कारण नहीं लिखा. मेमो ऑफ अरेस्ट पर सिर्फ थाना का केस नंबर लिखा था. गिरफ्तारी के समय उसके पास से कुछ जब्त नहीं हुआ था. उसका बयान अदालत में दर्ज नहीं कराया गया था. जिरह के दौरान यह भी स्वीकार किया कि जांच के दौरान मौलाना का कोई आपराधिक इतिहास नहीं मिला.
Follow us on WhatsApp