Surjit Singh
Ranchi: वर्ष 2016, वह साल था, जब मीडिया में अब्दुल रहमान उर्फ कटकी का नाम हर चौथे-पांचवें दिन छपता था, अखबारों में पहले पन्ने पर. टीवी चैनलों पर दिनभर कटकी की तस्वीर छायी रहती थी. ओड़िशा के कटक निवासी कटकी को आतंकवादी संगठन अलकायदा का खतरनाक आतंकी बताया गया था. अखबारों में खतरनाक आतंकी कटकी गिरफ्तार, जैसे शीर्षक से खबरें छपती रही.
झारखंड ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी कटकी को जोड़ करके खबरें छपती थी. जिनमें लिखा होता था, कटकी युवाओं को अलकायदा से जोड़ कर देश में कैसे दहशत फैलाना चाहता है. टीवी चैनलों पर एंकर चीख-चीख कर दहशत की योजना की भविष्यवाणी करते रहते थे.
अदालत में पुलिस की झूठ पकड़ी गई और कटकी बेकसूर साबित हुआ है. मीडिया में कटकी को लेकर खबरें करने वालों को शायद शर्म ना आए, पर मुझे (इस स्टोरी को लिखने वाला) शर्म और पछतावा दोनों है. क्योंकि मैं भी (इस स्टोरी को लिखने वाला) पुलिस के बयानों के आधार पर उन खबरों को बनाने वालों में शामिल था.
कल आपने पढ़ा : वो आतंकवादी नहीं था-01
पुलिस ने जांच के बाद कटकी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल किया. जिसमें कटकी को आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने, देशद्रोह सहित अन्य धाराओं में आरोपी माना. ट्रायल के दौरान सरकार की ओर से कुल 15 गवाह पेश किये गये. इनमें से अधिकांश गवाह वैसे पुलिस वाले थे, जो छापेमारी और जांच से जुड़ी गतिविधियों में शामिल रहे.
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बचाव पक्ष की जिरह के दौरान पुलिस के सारे गवाह टूट गये. किसी को घटनास्थल याद नहीं रहा तो किसी ने घटना स्थल के बदले थाना में जब्ती सूची पर दस्तखत करने की बात कही. सुनवाई पूरी हुई. कोर्ट ने कटकी को बरी कर दिया. लेकिन इस लंबी कानूनी प्रक्रिया के दौरान कटकी ने जेल में आठ साल 10 महीना दो दिन गुजारे.
दरअसल, पुलिस ने कटकी को गिरफ्तार करने से लेकर चार्जशीट दाखिल करने तक में जो भी कहा, वह सब मनगढ़ंत बातें थी, जो अदालत में सच साबित नहीं हो सका. पुलिस ने ऐसी-ऐसी धाराएं लगायी, ऐसी कहानी रची कि कटकी इंटरनेशनल न्यूज बन गया. दुनियाभर में उसकी तस्वीर को प्रकाशित कर खबरें की गई.
अब्दुल रहमान उर्फ कटकी को बरी करने का आधार
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सूचना और प्रारंभिक जांच : 22.01.2016 को दिल्ली पुलिस की विशेष टीम से सूचना मिली कि अहमद मसूद अकरम शेख उर्फ मसूद उर्फ मोनू (राज्जाक कॉलोनी, धातकीदीह) आतंकवादी संगठन “अल-कायदा” से जुड़ा हुआ है और वह शहर के अन्य युवाओं को अपने नेटवर्क में जोड़ रहा है. इस सूचना पर बिष्टुपुर थाना के तत्कालीन प्रभारी जितेंद्र कुमार ने उसी दिन को मसूद थाना बुलाकर उससे पूछताछ की और पूछताछ के बाद उसे घर जाने दिया.
अदालत में गवाहों ने जो स्वीकार किया
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पुलिस गवाह हीरा यादव (सदस्य, छापामारी दल) : बचाव पक्ष द्वारा जिरह में यह स्वीकार किया (पैरा-4 से 6) कि वह पुलिस बल के साथ वहां मौजूद थे, लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि क्या हुआ था. आगे की जांच के दौरान कौन सी धारा जोड़ी गई. हालांकि पुलिस के इस गवाह ने जिरह के दौरान यह मानने से इनकार किया कि घटना के सिलसिले में उन्होंने वही बात कही जो उन्हें सिखाया गया था.
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एसएम अताउर रहमान (औपचारिक पुलिस गवाह) : अताउर्रहमान पुलिस के औपचारिक गवाह थे, उन्होंने जब्त हथियार और जब्त की गई सामग्रियों की पुष्टि की. लेकिन यह भी कहा कि हथियार न तो आरोपी के कब्जे से मिली थीं और न ही उनके सामने जब्त की गईं थी. जिरह के दौरान यह भी स्वीकार किया कि उन्हें इस मामले की कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं थी.
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मुनीर खान (सदस्य, छापेमार दल) : इन्होंने छापेमारी और बरामदगी की पुष्टि की, लेकिन स्वीकार किया कि वह आरोपी को केवल अहमद मसूद के कहने पर जानते थे. उन्होंने भी अब्दुल रहमान कटकी के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं दिया. आतंकी संगठन से जुड़े होने की दिल्ली से मिली सूचना को ना तो उन्होंने देखा ना ही पढ़ा.
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जितेंद्र कुमार (सूचक और तत्कालीन बिष्टुपुर थाना प्रभारी) : इस पुलिस अधिकारी ने जिरह के दौरान यह स्वीकार किया कि उन्होंने आरोपी को केवल सूचना के आधार पर पहचाना और उन्हें पहले से आरोपी की पहचान नहीं थी. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि छापेमारी के दौरान घर से मिली तस्वीर और उस पर लिखे नाम के आधार पर अभियुक्त को पहचाना. लेकिन उस तस्वीर को जब्त किये जाने से इनकार किया, जिसके आधार पर अभियुक्त की पहचान की.
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दिलीप कुमार यादव (सदस्य, छापामार दल) : अदालत में जिरह के दौरान इन्होंने माना (पैरा 7 से 11) कि वह अब्दुल रहमान अली खान उर्फ कटकी से आमने-सामने कभी नहीं मिले थे. प्रभारी अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर अब्दुल रहमान अली खान उर्फ कटकी को पहचाना था. उन्हें यह याद नहीं है कि छापा मारने किस जगह गये थे. जब्त सामग्री अदालत में जमा है या नहीं यह भी उन्हें याद नहीं. लेकिन उन्होंने मामले के मनगढ़ंत होने की बात से इनकार किया.
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बंदई उरांव (छापेमार दल के सदस्य) : बचाव पक्ष द्वारा जिरह के दौरान उन्होंने पैरा 3 से 7 के माध्यम से यह बयान दिया कि प्रभारी अधिकारी द्वारा मौखिक सूचना दी गई थी, लेकिन वे छापेमारी स्थल की सीमा नहीं बता सकते, हालांकि छापामारी 22.01.2016 को की गई थी और उन्हें नहीं पता कि उनके साथ कोई स्वतंत्र गवाह था या नहीं. उन्होंने आगे कहा कि वे उर्दू पढ़ना-लिखना नहीं जानते और छापेमारी में गए व्यक्ति ने बताया था कि ये कागजात आतंकवाद से संबंधित हैं और वे यह नहीं बता सकते कि वहां कितने कागजात थे. उन्होंने आगे कहा कि वे यह नहीं बता सकते कि जब्ती सूची कहां तैयार की गई और न ही यह बता सकते हैं कि जब्ती सूची के गवाह कौन थे. उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने थाने में आरोपी की फोटो देखी थी और उक्त व्यक्ति धातकीडीह में मिला था, लेकिन घर का नंबर और उसकी सीमा नहीं बता सकते और अंत में मामले के बारे में कोई जानकारी नहीं होने से इनकार किया और कहा कि वरिष्ठ अधिकारी के निर्देशानुसार साक्ष्य प्रस्तुत किया.
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बिपिन किशोर टेटे (छापामार दल के सदस्य) : अदालत में जिरह के दौरान इन्होंने बताया कि वह साल 2009 से जमशेदपुर पुलिस विभाग में पदस्थापित थे. प्रभारी अधिकारी उन्हें छापेमारी के लिए ले गये थे. वह यह नहीं बता सके कि उनके साथ कितने लोग गये थे. छापेमारी स्थल और अभियुक्त का मकान नंबर भी नहीं बता सकते हैं क्योंकि उन्हें आंशिक विवरण दिया गया था. जब्ती सूची थाने में तैयार किया गया था. जब्त कागजात उन्हें थाने में दिखाया गया था. वह जब्ती सूची के गवाहों के नाम नहीं जानते हैं. उन्हें मामले के बारे में भी जानकारी नहीं है.
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सुमन आनंद (छापेमार दल के सदस्य) : कोर्ट में जिरह के दौरान, इन्होंने (पैरा-5 और 6 ) कहा कि वह कभी भी आरोपी अब्दुल सामी उर्फ शमी के घर नहीं गए थे. उनके सामने अब्दुल सामी का बयान भी दर्ज नहीं किया गया था. अब्दुरहमान अली खान उर्फ कटकी के पास को कोई आपत्तिजनक सामग्री बरामद नहीं हुई थी.
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अनुज उरांव (केस के आइओ) : घटना के समय वह डीएसपी (एसटीएफ) रांची में पदस्थापित थे. डीजीपी के आदेश के आलोक में उन्हें इस केस के जांच की जिम्मेवारी दी गयी. जिरह के दौरान, उन्होंने (पैरा-28 से 30 ) कहा कि वह कभी अब्दुल रहमान उर्फ कटकी के घर नहीं गये थे. जांच के दौरान उन्होंने उसका बयान भी दर्ज नहीं किया था. जिरह के दौरान उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि किसी भी गवाह ने कटकी के खिलाफ कोई स्पेसिफ़िक बात नहीं कही थी. जांच के बाद उन्होंने आरोप पत्र दायर किया. लेकिन उन्होंने जांच के दोषपूर्ण होने की बात से इनकार किया.
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आनंद ज्योति मिंज (केस के आइओ) : जिरह के दौरान आनंद ज्योति मिंज ने कहा कि वह एसटीएफ में डीएसपी के रूप में पदस्थापित थे. उन्होंने मुख्यालय के आदेश से इस मामले की जांच की थी. उन्होंने कटकी को रिमांड पर लिया था. जिरह के दौरान उन्होंने स्वीकार किया कि रिमांड के दौरान कटकी ने 13 मई 2016 को अपना बयान स्वीकारोक्ति बयान दर्ज कराया था. कटकी के बयान के आधार पर कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली थी. इसके बाद उन्होंने इस मामले की जांच नहीं की.
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फूलन नाथ (मानगो के तत्कालीन थाना प्रभारी) : जिरह के दौरान उन्होंने कहा कि अब्दुल रहमान उर्फ कटकी उनके सामने गिरफ्तार नहीं हुआ था. उन्होंने उसकी पहचान भी नहीं की थी.
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कृष्णा प्रसाद मंडल (छापेमार दल का सदस्य) : जिरह के दौरान उन्होंने स्वीकार किया (पैरा-3 व 4) कि अब्दुल रहमान कटकी को उनके सामने गिरफ्तार नहीं किया गया था. कटकी ने उनके सामने कोई बयान नहीं दिया था. उन्होंने उसकी पहचान भी नहीं की थी.
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जसिंता केरक्ट्टा (केस का आइओ): इन्होंने कहा कि वह जमशेदपुर में डीएसपी के रूप में पदस्थापित थी. थाना प्रभारी के आदेश पर उन्हें इस केस (21/2016) के जांच की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी. जिरह के दौरान उन्होंने (पैरा-25) खुद अब्दुल रहमान उर्फ कटकी को गिरफ्तार करने से इंकार किया. उन्होंने कहा कि कटकी को दिल्ली से गिरफ्तार कर लाया गया था. उन्होंने उसके पास से कुछ भी जब्त नहीं किया.
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लक्ष्मी नारायण सिंह व श्रवण सिंह (जब्ती सूची के गवाह) : बचाव पक्ष ने इनके द्वारा दिये गये बयान पर जिरह नहीं किया. इन दोनों ने अहमद मसूद के घर से मिले हथियार और अन्य सामग्रियों के बिंदु पर अपनी गवाही दी थी. बचाव पक्ष ने इन गवाहों के बयान अब्दुल रहमान उर्फ कटकी से संबंधित नहीं होने की वजह से जिरह नहीं किया.