Ranchi: झारखंड जनाधिकार महासभा ने पत्थलगड़ी मामले में स्थिति की समीक्षा और झारखंड में हो रहे मानवाधिकार हनन की घटनाओं पर सेमिनार का आयोजन किया. इसमें अनेक जन संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया. पत्थलगड़ी मामलों के कई पीड़ितों और पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के चिरियाबेरा गांव के पुलिस या CRPF से प्रताड़ित ग्रामीणों ने भी सेमिनार में भाग लेकर अपनी आपबीती सहभागियों के साथ साझा की.
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रघुवर काल में हुई थी दमनात्मक कार्रवाई
बैठक में कहा गया कि रघुवर दास की भाजपा सरकार ने पत्थलगड़ी आन्दोलन के खिलाफ बड़े पैमाने पर पुलिसिया हिंसा और दमनात्मक कार्रवाई की थी. हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद, 29 दिसम्बर 2019 को पत्थलगड़ी से संबंधित सभी पुलिस केस को वापस लेने की घोषणा की थी. पुलिस ने लगभग 200 नामज़द लोगों और 10000 से भी अधिक अज्ञात लोगों पर कई आरोप दर्ज किए थे. लेकिन हेमंत सोरेन की घोषणा करने के एक साल बाद भी पुलिस केस वापस नहीं लिए गये हैं. अभी भी कई आदिवासी और ग्राम प्रधान जेलों में ही हैं.
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आरटीआई से मिली जानकारी भी चौकाने वाली
आरटीआई के माध्यम से जो जानकारी मिली है,वो चौंकाने वाले हैं. पत्थलगड़ी सम्बंधित जिलेवार एफआईआर की बात की जाए तो खूँटी में 23, सराइकेला-खरसाँवा में 5 और पश्चिमी सिंघभूम में 2 यानी कुल मिलाकर 30 मामले हैं. लेकिन जिला स्तर की समिति जिसमें डीसी, एसपी और सार्वजनिक उपभोक्ता सदस्य होते हैं, उन्होंने सिर्फ 60 मामलों की वापसी की अनुशंसा की है. इन सारी सूची में कोचांग सामूहिक रेप का मामला है ही नहीं. खूंटी ज़िला समिती ने सात मामलों में सिर्फ़ धारा 124A/120A/B को हटाने की अनुशंसा की है. कहा गया कि सरकार की घोषणा के बाद भी यह देखना निराशाजनक है.
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गर्भवती महिला को पीटा गया
बैठक में कहा गया कि पिछली सरकार के समय में पत्थलगड़ी का बहाना कर घाघरा गांव की गर्भवती महिला असृता मुंडू को सुरक्षा बलों ने पीटा था. जिसके बाद बच्ची विकलांग पैदा हुई थी. पत्थलगड़ी आन्दोलन से जुड़े कई लोगों जैसे पारंपरिक ग्राम प्रधान और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे अमित टोपनो, सुखराम मुंडा और रामजी मुंडा की हत्या कर दी गयी. लेकिन अभी तक स्थानीय पुलिस ने दोषियों पर कार्रवाई नहीं की है.
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झारखंड सरकार से महासभा की प्रमुख मांगें
- पत्थलगड़ी से सम्बंधित मामलों को अविलम्ब वापस लिया जाए. खूंटी के मानवाधिकार हनन के मामलों में कार्रवाई की जाए और पीड़ितों को मुआवजा मिले.
- चिरियाबेरा घटना की न्यायिक जांच हो. दोषी CRPF पुलिस और प्रशासनिक कर्मियों पर हिंसा करने के लिए कार्रवाई हो और पीड़ितों को उचित मुआवज़ा दिया जाए.
- स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को स्पष्ट निर्देश मिले कि वे किसी भी तरह से आदिवासियों का शोषण न करें. मानव अधिकारों के उल्लंघन की सभी घटनाओं से सख्ती से निपटा जाए. नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बल लोगों को परेशान न करें. मानवाधिकार हनन के मामलों को सख़्ती से निपटाया जाए. आम जनता को नक्सल-विरोधी अभियान के नाम पर बेमतलब परेशान न किया जाए.
- स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाय और संवेदनशील बनाया जाए.
- मॉब लिंचिंग से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू किया जाए. दोषियों को बचाने वाले पुलिस और अधिकारियों पर कार्यवाही हो. पीड़ितों को मुआवज़ा मिले और लिंचिंग के विरुद्ध कठोर क़ानून बनाया जाए.
- निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग को पुनर्जीवित किया जाए. मानवाधिकार उल्लंघन मामलों के लिए स्वतंत्र शिकायत निवारण तंत्र बनाया जाए.
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