प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी थी होलिका
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150w" alt="" width="600" height="400" data-pin-no-hover="true" /> होली को लेकर वैसे तो कई कथाएं प्रचलित हैं. लेकिन भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में अत्याचारी हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान पा लिया था. उसने ब्रह्मा से वरदान में मांगा था कि उसे संसार का कोई भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर मार न सके. वरदान पाते ही हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया. हिरण्यकश्यप ने सभी को आदेश दिया कि उसके अलावा किसी अन्य की स्तुति न करे. हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद नहीं माना. क्योंकि वह भगवान विष्णु का परम भक्त था. हिरण्यकश्यप का आदेश का पालन नहीं करने से प्रहलाद का पिता को क्रोध आया और उसने अपने बेटे को जान से मारने का प्रण लिया. हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद को मारने के लिए कई तरीके अपनाये, लेकिन विष्णु का परम भक्त हर बार बच गया. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य अपनी बहन होलिका को सौंपा. होलिका के पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती. होलिका प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी. प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गयी. लेकिन अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. इसके बाद से ही होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने लगा. [wpse_comments_template]