
Nishikant Thakur
जिन्होंने गोमुख देखा है, उन्हें याद होगा कि गंगा की मुख्य धारा जहां पर नीचे की ओर गिरती है, वह एक पत्थर हैं. हजारों वर्षों से गंगा की मुख्य धारा उस पत्थर पर गिरती आ रही है, लेकिन इसके बावजूद वह उस तेज प्रवाह से खंडित नहीं हुआ और आज भी जस का तस है. लेकिन, यह भी देखा होगा कि उसी पत्थर पर बार-बार रस्सी को रगड़े जाने से वहां उसका निशान बन जाता है. यानी, पत्थर को घिसना पड़ता है. वह पानी से नहीं, बल्कि उस पर रस्सी के आने जाने से निशान बन जाता है.
ऐसा इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान के जन्म से ही हम उस पर प्रेम की धारा लगातार बहाते रहे, समझाते रहे, पुचकारते रहे, लेकिन वह कुत्ते की दुम की भांति अपनी प्रकृति को बदल नहीं पा रहा है. जब तक उस पत्थर रूपी पड़ोसी देश को ठीक से समझाया नहीं जाएगा, वह पहलगाम और पुलवामा जैसे जघन्य अपराध कहिए या नरसंहार, को अंजाम देने की अपनी कुत्सित मानसिकता से बाज नहीं आएगा. इसलिए उस पत्थर रूपी देश को उसी तरह खींच खींचकर गले पर निशान डालना होगा और बताना होगा कि बहुत हो गया, अब और सहन नहीं करेंगे.
भारत हमारा देश है, हमारे पूर्वजों सहित हम भी भारत की खुशबू में पले बढ़े. जब हम एक जगह पर रहेंगे, तो निश्चित रूप से बर्तनों की तरह आवाजें आती रहेंगी, लेकिन यदि कोई घर में अपने ही जयचंदों के इशारे पर हमारे ऊपर हमला करे, यह कब तक सहन करेंगे? अब यह तो साफ हो गया है कि हमारा पड़ोसी देश हमारे विकास से चिढ़ता ही नहीं है, बल्कि षड्यंत्र रचकर हमारा नुकसान कर रहा है, निर्दोषों के खून की नदियां बहा रहा है.
अब पहलगाम की दर्दनाक घटना के बाद आतंकी संगठन और पाकिस्तान से भी इस बात की स्वीकारोक्ति आ गई है, क्योंकि उसके रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ कहते हैं कि ‘हम 30 सालों से कर रहे हैं आतंकी तैयार करने का गंदा काम.’ सच तो यह है कि तीस सालों से नहीं, बल्कि अपने जन्म काल से ही भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचकर भारत की प्रभुता पर पाकिस्तान हमला करता रहा है. वह तो साफ कहता है कि आप अपनी सुरक्षा में लगे रहें, हम उसे तबाह करते रहेंगे. इतनी सीनाजोरी के बाद भी हम अहिंसा के पुजारी बनकर उसके आतंकी हमले को सह लेते हैं और वह आए दिन बड़ी बड़ी हिंसा को अंजाम देकर अपने बिल में चूहों की तरह छुप जाता है.
वैसे तो हमारे देश के भाग्य निर्माता इस विषय पर गंभीरता से विचार विमर्श कर ही रहे हैं. लेकिन , निर्मम प्रहार से, निहत्थे आनंद उठाने की नीयत से जो पहलगाम घूमने गए उनका जीवन ही समाप्त कर दिया. यहां प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर कैसे वह हमारी सीमा पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों को धता बताकर अंदर घुस जाते हैं और नरसंहार को अंजाम दे देते हैं? इस विषय में कुछ न कुछ हमसे चूक तो हुई ही है.
अब इस गंभीर मामले को लेकर हमारे देश के सर्वोच्च भाग्य निर्माता गहन विचार विमर्श कर ही रहे हैं, लेकिन विचार विमर्श में सबसे पहले यह तय किया गया है कि उस आतंकियों के देश से अपने सारे संबंध तोड़ ले. उसी क्रम में दूतावासों को बंद करना, एक दूसरे देश के नागरिकों को अपने अपने देश वापस लौट जाने के लिए आदेश जारी कर देना शामिल है. लेकिन, ऐसा तो पहले से ही किया जाता रहा है. उसका परिणाम क्या मिला?
वह तो इस तरह का देश हो गया है, जो यह मानने को तैयार ही नहीं है कि भारत में घुसना या किसी देश में बिना वैध कागजात के घुसना अपराध है. अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तानी सीमा से लगे कई लाइन ऑफ कंट्रोल पर हमें जाने का अवसर मिला. एक बार वहां तैनात सुरक्षा रेंजर से पूछा कि भारत की इतनी सुरक्षा व्यवस्था को तार तार करते हुए किस तरह कोई एक दूसरे देश में घुस सकता है, तो रेंजर का उत्तर सुनकर चकित होना पड़ा. उसका कहना था कि यह फेंसिंग हिन्दुस्तान ने अपनी सुरक्षा के लिए लगाया है, पाकिस्तान इसकी रक्षा क्यों करेगा! चूंकि हिंदुस्तान ने इसे अपनी सुरक्षा के लिए लगाया है, इसलिए उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह इसकी सुरक्षा खुद करे.
पाकिस्तान की एक अलग सोच है और वह हर समय युद्ध के लिए भारत को उकसाता रहता है, इसलिए तो सदैव इस तरह के आतंकी संगठन हमारे देश में नरसंहार कर जाते हैं. एक सच पहलगाम हमले के बाद यह भी आया है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने के लिए हमारे ही देश में स्थित उसके स्लीपर सेल काम करते रहते हैं, जो समय समय पर अपने देश के राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करते हुए गुप्त सूचना दूसरे देश को देते हैं और हमारे ही बगल में खड़े होकर हमारे ही पीठ पर छुरा घोंपते हैं.
पहलगाम हमले के बाद यह बात तो तय हो गई है और आतंकियों की पकड़ धकड़ में उनके घर नष्ट कर दिए गए. पर, एक मूल प्रश्न जो अनसुलझा है, वह यह कि आखिर हमारी सीमा में ये आतंकी घुस कैसे आते हैं?
फिलवक्त, उत्तर तो यह दिया जा सकता है कि दोनों देश के बीच इतनी लंबी सीमा रेखा है और इतने भूले भटके स्थान हैं, जहां से यह आतंकी अपनी स्लीपर सेल के माध्यम से पहुंच जाते हैं और नरसंहार को अंजाम दे देते हैं. यह चूक तो हुई ही है कि हमारी लाख कोशिश के बावजूद ऐसे आतंकी कभी सुरंग खोदकर, कभी तार काटकर हमारी सीमा में प्रवेश कर जाते हैं.
यदि आप सीमा पर जाकर देखें, तो यह स्थिति साफ हो जाएगी कि कोई भी व्यक्ति जो इस तरह की ट्रेनिंग लेकर घुसपैठ करने की कोशिश करता है वह किसी न किसी तरह हमारी सीमा में प्रवेश कर हमारी सुरक्षा व्यवस्था को तार-तार कर देता हैं. एक बात जिस पर अभी पूरे देश में चर्चा जोरों पर है, वह यह कि केंद्रीय सरकार भाजपा की, उप राज्यपाल उन्हीं का, पुलिस और सेना के जवान भी केंद्रीय गृहमंत्री के अधीन, पर इतनी बड़ी सुरक्षा के बावजूद यह आतंकी कैसे भेद देते हैं.
यह ठीक है कि पूरा देश शोक में डूबा हुआ है और जिन्होंने अपने निज को बिना अपराध के खोया है, उनकी तो आत्मा व्याकुल होगी ही. उस परिवार के लिए सरकार क्या करेगी? उनकी आत्मा तो कचोटती ही रहेगी और फिर कश्मीर जाने की बात वह कभी सोच भी नहीं सकेंगे? कश्मीर की घाटियां, जिन्हें भारत का स्वर्ग कहा जाता है, क्या फिर से वीरान हो जाएगा?
अभी तो लोगों ने वहां जाना शुरू ही किया था, लेकिन इस नरसंहार के बाद क्या फिर से वह आबाद और जीवंत हो पाएगा? कश्मीर का व्यवसाय ही पर्यटकों से चलता है, उसका क्या होगा? वैसे देश में तरह-तरह की अफवाहें फैली हुई हैं कि हमारा देश ईंट का जवाब पत्थर से देगा. लेकिन कब? इंतजार किस बात का है? इस तरह का निर्णय पूरे देश के भविष्य के लिए लेना है, जो सर्वदलीय बैठक में तय हुआ और इसकी चर्चा और गहन मंथन जारी है, लेकिन जानमाल का जो नुकसान हुआ है और भय का जो माहौल बना है, उसकी भरपाई कैसे होगी?
भारत, पाकिस्तान के प्रति सदैव सदाशयता दिखता रहा है. एक स्थानीय कश्मीरी नागरिक का कहना है कि पाकिस्तान तो स्वयं कंगाल देश है, वह कैसे इन घटनाओं को अंजाम देने के लिए धन खर्च कर सकता है? उसका आरोप तो यह भी था कि आतंकियों को तो अपने ही देश के राजनीतिज्ञ पालते हैं और आतंक को अंजाम देने के लिए दहशतगर्दी को अपनाते हैं.
जो भी हो, यह तो गहन मंथन और जांच का विषय है और चूंकि पूरा देश गहन शोक में डूबा है इसलिए तरह-तरह की बातें की जाएंगी, लेकिन इसका हल शांत मन से ही निकाला जा सकता है और पत्थरों पर निशान बनाने के लिए कुछ कठोर कदम तो देशहित में सरकार को उठाने ही पड़ेंगे, चाहे उसका निपटान युद्ध से ही क्यों न हों. इस बार केवल इतना ही, क्योंकि चूंकि सरकार अभी गहन मंथन कर रही है, इसलिए इस संबंध में अभी कुछ और कहना देशहित में उचित नहीं होगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)