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शराब घोटाले के तीन किंगपिन में से एक विधु गुप्ता ने ऐसे किया झारखंड में नकली शराब का खेल

Ranchi : आपको पता भी नहीं चला और आप चार सालों तक सरकारी दुकान बिकने वाले अवैध शराब को पीते रहे.  झारखंड एसीबी ने 2 जुलाई को जिस विधु गुप्ता को गिरफ्तार किया है, वह शराब कारोबार का किंगपिन है. विधु गुप्ता की गिरफ्तारी के बाद यह जानना दिलचस्प है कि तीनों किंगपिन ने मिल कर किस तरह नकली होलोग्राम का इस्तेमाल करके झारखंड में अवैध शराब का कारोबार किया और किस तरह अफसरों को उपकृत किया.  

 

आपको पता भी नहीं चला और आप चार सालों तक सरकारी दुकान बिकने वाले अवैध शराब को पीते रहे. विधु गुप्ता की गिरफ्तारी के बाद यह जानना दिलचस्प है कि तीनों किंगपिन ने मिल कर किस तरह नकली होलोग्राम का इस्तेमाल करके झारखंड में अवैध शराब का कारोबार किया और किस तरह अफसरों को उपकृत किया. 

 

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छत्तीसगढ़ सिंडिकेट द्वारा झारखंड में अंजाम दिये गये शराब घोटाले के तीन किंगपिन में से एक विधु गुप्ता है. उसने नकली होलोग्राम छाप कर शराब कारोबार की सामानांतर व्यवस्था कायम की थी. झारखंड में भी उसे होलोग्राम छापने का ठेका दिया गया था. छत्तीसगढ़ में होलोग्राम का ठेका लेने के लिए उसने 90 लाख रुपये की रिश्वत दी थी. झारखंड में यह रकम करोड़ों में बतायी जाती है.

 

छत्तीसगढ़ शराब घोटाले की जांच के दौरान तीन लोगों को किंगपिन के रूप में चिह्नित किया जाता है. इसमें छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटे( CSMCL) के एमडी अरूणपति त्रिपाठी, मैनपावर सप्लाई करने और शराब बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं. त्रिपाठी ने शराब सिंडिकेट की मर्जी के अनुरूप नीति बनवायी. 

 

सिद्धार्थ सिंघानियां ने मैनपावर सप्लाई करने वाली कंपनियों के सहारे शराब के व्यापार पर एकाधिकार कायम किया और विधु गुप्ता ने नकली होलोग्राम उपलब्ध कराया. छत्तीसगढ़ के इस शराब सिंडिकेट ने प्रति पेटी 50 से 70 रुपये कमीशन वसूल कर अधिकारियों के बीच बांटा.

 

छत्तीसगढ़ शराब घोटाले के किंगपिन

 

छत्तीसगढ़ सिंडिकेट ने झारखंड में सरकार के समानांतरण शराब का अवैध व्यापार चलाने के लिए अपना नया मॉडल लागू करवाया. अरूण त्रिपाठी ने उत्पाद विभाग के अधिकारियों की मदद से झारखंड में उत्पाद नीति बनायी. इसके बदले 1.25 करोड़ फीस लिया. सिद्धार्थ सिंघानियां ने मैनपावर सप्लाई के लिए टेंडर की शर्तों में बदलाव करावाया. इससे छत्तीसगढ़ में मैनपावर सप्लाई के काम लगी कंपनियों को ही झारखंड में काम मिला. 

 

मैनपावर सप्लाई करने वाली इन कंपनियों पर सिंघानिया का अप्रत्यक्ष कब्जा था. सुनियोजित साजिश के तहत नासिक स्थित सरकारी प्रेस से होलोग्राम की छपाई बंद कर विधु गुप्ता की कंपनी प्रिज्म होलोग्राफी एंड फिल्मस सिक्यूरिटीज प्राइवेट लिमिटेड को काम दिया गया.

 

छत्तीसगढ़ सिंडिकेट झारखंड में काबिज

 

राज्य मे नयी नीति लागू कराने के बाद छत्तीसगढ़ सिंडिकेट ने पहले कुछ दिनों तक छत्तीसगढ़ से देशी शराब लाकर झारखंड में बेचा. लेकिन किराये के कारण लागत बढ़ने और मुनाफा कम होने की वजह से झारखंड मे देशी शराब बनाने वाली कंपनियों पर पार्टनशिप के लिए दवाब डाला. 

 

अब तक जांच के दौरान सिंघानियां द्वारा श्रीलैब नामक शराब बनाने वाली कंपनी में निवेश किये जाने की पुष्टि हुई है. श्रीलैब में मेसर्स टॉप सिक्यूरिटी ने पूंजी निवेश किया है. इस कंपनी का संबंध सिंघानियां से है. इसी की वजह से श्रीलैब को दूसरी कंपनियों के मुकाबले अधिक लाभ पहुंचाया गया. 

 

श्रीलैब द्वारा “टंच” के ब्रांड नाम से बनायी जाने वाली देशी शराब की 65 पेटी पलामू और बिहार के बॉर्डर पर पकड़ा गया था. बिहार में शराब बंदी होने की वजह से इसे अवैध तरीके से बिहार भेजे जाने की आशंका जतायी गयी थी. इस मामले में कंपनी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की गयी.

 

ऐसे चलता था सरकार के सामानांतर शराब का अवैध धंधा

 

सरकार के सामानांतर शराब का अवैध व्यापार चलाने के लिए दुकान और होलोग्राम पर नियंत्रण होना जरुरी था. मैनपावर सप्लाई करने वाली कंपनियों के सहारे दुकानों पर सिंडिकेट ने अपना नियंत्रण बनाया. सिंडिकेट के अनुरोध पर विधु गुप्ता की कंपनी ने नकली होलोग्राम छापा और सिंडिकेट को उपलब्ध कराया. इस होलोग्राम का इस्तेमाल कर अवैध शराब के पेटियां दुकानों तक पहुंचा कर बेची गयी. 

 

नकली होलोग्राम के सहारे बेची गयी शराब की पूरी रकम सिंडिकेट की हो जाती थी. क्योंकि इस होलोग्राम का हिसाब बिवरेजेज कॉरपोरेशन के पास नहीं था. कॉरपोरेशन को सिर्फ उतने ही होलोग्राम के सहारे बिक्री का हिसाब पता होता था, जितना होलोग्राम उसके आदेश पर छपा हो. 

 

शराब सिंडिकेट ने शराब बनाने वाली कंपनियों से देशी शराब पर 10 रुपये प्रति पेटी और विदेशी शराब पर 50-70 रुपये पेटी की दर से अवैध वसूली की. आरोप है कि शराब सिंडिकेट ने इसे विभागीय अधिकारियों व अन्य के बीच बांटा गया.

 

नकली शराब बेचने के खेल को ऐसे समझें

 

शराब कारोबार की सरकारी व्यवस्था

सिंडिकेट की सामानांतर व्यवस्था

शराब बनाने वाली कंपनियां कॉरपोरेशन को अपने अलग-अलग ब्रांड के लिए होलोग्राम की जरूरत और उसकी संख्या बताती हैं.

सिंडिकेट अपने ही स्तर से होलोग्राम छापने का आदेश विधु गुप्ता को देता था.

कॉरपोरेशन होलोग्राम छापने का आदेश विधु गुप्ता की कंपनी को देती थी. गुप्ता की कंपनी से होलगोग्राम की आपूर्ति के बाद कॉरपोरेशन उसे शराब कंपनियों को देता था.

गुप्ता की कंपनी से नकली होलोग्राम मिलने के बाद इसे साजिश में शामिल शराब कंपनियों को दिया जाता था.

शराब कंपनियां बोतल पर होलोग्राम लगा कर अलग-अलग ब्रांड की पेटियां थोक विक्रेता को देती थी.

शराब कंपनियां नकली होलोग्राम वाली शराब की पेटियां सरकार द्वारा चुने गये थोक विक्रेता को देती थीं.

थोक विक्रेता इसे खुदर बिक्रेताओं को देता था.

थोक विक्रेता के माध्यम से नकली होलोग्राम वाली शराब की पेटियां दुकानों तक पहुंचती थी.

 

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