Premkumar Mani
एक लोककथा का प्रसंग है कि किसी शक्तिशाली दैत्य को ख़त्म करने के लिए एक राजकुमार बहुत सारे प्रयास करता है, किन्तु हर दफा विफल होता है. अंततः दैत्य की बेटी, जो राजकुमार की प्रेमिका भी थी, ने बताया कि पिता की जान सुदूर अवस्थित ताड़ के लम्बे गाछ पर झूल रहे एक पिंजड़े में बैठे तोते में है. जब तक वह तोता नहीं मरेगा, पिता को कुछ नहीं होने वाला. राजकुमार ने यही किया. उसने ताड़ पेड़ पर से पिंजड़े को उतारा और फिर तोते को मार दिया. उसके मरते ही दैत्य भी मर गया. कुछ ऐसी ही कथा राम की पौराणिक कथा में भी है, जिसके अनुसार रावण की जान उसकी नाभि के पास अवस्थित थी. राम ने छाती नहीं, नाभि को लक्ष्य कर तीर चलाए और रावण मारा गया. भाजपा को पराजित करने की कोशिशों में लगे लोगों को भी यह पता होना चाहिए कि भाजपा की जान अथवा शक्ति केन्द्र आखिर कहां है और उसे कहां लक्ष्य करना चाहिए. मैं नहीं समझता विपक्ष द्वारा ऐसे प्रयास हो रहे हैं. विपक्ष के नेताओं की एक ही कोशिश स्पष्ट तौर पर दिख रही है और वह है अधिक से अधिक भाजपा विरोधी दलों को जोड़ना. मैं पहले भी कह चुका हूं ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली कहावत अधिक चरितार्थ होती है. कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा इकठ्ठा कर भानुमति का कुनबा तो बनाया जा सकता है, सक्षम विपक्ष नहीं.
सबसे पहले हमें उन कारणों की खोज करनी चाहिए, जिनके फलस्वरूप भाजपा मजबूत हुई. 2012 तक उनका करिश्मा पूरी तरह ख़त्म हो चुका था. टू जी और कॉमनवेल्थ खेल घोटाले में घिरे मनमोहन सरकार की घिग्घी बंध गई थी. महंगाई थम नहीं रही थी और जनता की तकलीफें लगातार बढ़ रही थीं. जनता मान चुकी थी कि मनमोहन सिंह के पास वास्तविक राजनीतिक शक्ति नहीं है. पूरे देश में एक चेतना यही जगी कि केंद्र में मजबूत सरकार होनी चाहिए. इस मनोदशा में पड़े देश को नरेंद्र मोदी ने अपने ढंग से लिया. प्रचार की कमान थामी, बूढ़े नेताओं को किनारे लगाया और भाजपा के परंपरागत तौर-तरीकों से अलग होते हुए जात और धर्म का ऐसा कॉकटेल बनाया कि पूरा देश झूम गया. एक हाथ में “गंगा का बेटा” का फूटा ढोल और दूसरे हाथ में पिछड़ी जात का लंगोट लेकर मोदी चुनावी मैदान में कूदे और पुराने खयालों वाले आर्यावर्त की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी. कांग्रेस तो अपनी जगह, लेकिन जात के व्याकरण गढ़ने में माहिर मुलायम, लालू, नीतीश जैसे नेता स्वाहा हो गए. अटल -आडवाणी जैसे नेता जो सोच भी नहीं सके, वह नतीजा मोदी ने लाकर दिखा दिया. भाजपा को अपना स्पष्ट बहुमत पहली बार मिला था.
विपक्ष ने मोदी की सफलता के इस राज-फास की कभी मीमांसा नहीं की. क्या इसकी मीमांसा किए बगैर विपक्ष भविष्य की रणनीति बना सकता है? हम 2019 के चुनावी नतीजे को एक नजर देखना चाहेंगे. भाजपा को हासिल 303 सीटों में से 153 ठेठ हिंदी प्रांतों में मिले हैं. आखिर कौन से कारण थे, जिसके कारण भाजपा उन इलाकों में मजबूत हुई जहां हमारा राष्ट्रीय आंदोलन सबसे अधिक मजबूत था. यही इलाके कभी कांग्रेस और सोशलिस्ट राजनीति के गढ़ होते थे. आखिर ये गढ़ ध्वस्त कैसे हुए और जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण, नरेन्द्रदेव, लोहिया की राजनीतिक शिक्षा और अनेक सोशलिस्ट-कम्युनिस्ट आंदोलनों से पगी-बनी यह धरती आखिर ऐसे कीचड दलदल में कैसे तब्दील हुई कि भगवा और कमल के सिवा सब ख़त्म हो गया. पहले चरण में थोड़े उदार दिखने वाले अटलबिहारी और दूसरे चरण में नरेंद्र मोदी आए. अटलबिहारी चिलमन से छुपे होते थे, नरेंद्र मोदी को इसकी जरूरत नहीं है.
जिस तरह पिछले दिनों संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन हुआ, क्या उससे स्पष्ट नहीं हो गया है कि मुल्क एक नए राजनीतिक मिजाज में पग गया है? क्या 1960 और 1970 के दशक में ऐसा कोई सोच सकता था? लेकिन इस स्थिति को कौन बदलेगा? क्या वे राहुल गांधी, जो भगवा वस्त्र पहन कर अपने को हिन्दू दिखने का स्वांग कर रहे हैं या वे नीतीश कुमार जो मुस्लिम वोट हासिल करने केलिए मजहबी जलसों में शरीक होकर अरबी-तुर्की टोपी पहनते हैं या वे लालू और मुलायम जिन्होंने सामाजिक न्याय का मोर-मुकुट पहनकर राजनीति को परिवारवाद में कैद कर लिया है. यदि इनके मुकाबले जनता भाजपा के हरिकीर्तनवादी हिंदुत्व को पसंद करती है तब दोष हम जनता को कैसे दे सकते हैं. जनता तो वही है, जिसके अनपढ़ या कमपढ़ बाप -दादाओं ने गांधी-नेहरू को पसंद किया था. रेणु के उपन्यास में जयप्रगास जिन्दाबाघ का नारा लगाने वाले लोग कौन थे? कालीचरण की विरासत कहां गुम हो गई? शायद हमें इन जड़ों की तलाश करनी होगी ?
बनाते रहिए गोल और जोड़ते रहिए कुनबा. जब तक विपक्षी दल अपना नैतिक उत्थान सुनिश्चित नहीं करेंगे तब तक भाजपा बनी रहेगी. हथियार और कुनबा सजा कर लोगों ने 1857 की लड़ाई लड़ी थी. सामंतों ने अपने विचार नहीं बदले, तौर -तरीके नहीं बदले, जनता को विश्वास में नहीं लिया और कूद पड़े कम्पनी राज के खिलाफ खुले मैदान में. नतीजा क्या हुआ? पिट गए. तबाह कर दिए गए. आने वाले समय में नेताओं ने स्थितियों को समझा और फिर एक मुकाम पर गांधी आए. किसानों से जुड़े ,नैतिक बल का विकास किया और निहत्थे अपनी आज़ादी के संघर्ष को सार्वजनिक कर दिया. ब्रिटिश राज घुटने टेकने केलिए विवश हुआ. लड़ाई यूं होती है. नेताओं को नहीं, जनता को विश्वास में लीजिए और अपने नैतिक बल को मजबूत कीजिए. जात-बिरादरी नहीं, देश के भविष्य की बात कीजिए. देखिए आपकी भी इज्जत बढ़ेगी और देश की भी. झूठे, चोर ,लम्पट और भ्रष्ट नेताओं की भीड़ आपको विनाश की ओर ही ले जाएगी.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
Leave a Reply