alt="हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार का वादा करने वाली सरकार में 2.17 करोड़ ने नौकरी गंवाई" width="600" height="400" /> जॉब ग्राफ[/caption] CMIE कहता है कि देश की श्रम शक्ति में 11% की हिस्सेदार महिलाओं में 52% की नौकरियां छिन गई हैं. वर्ष 2019-20 की तुलना में 40 साल से कम उम्र के 2.17 करोड़ लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं. इसमें भी 30-39 साल के 48% लोगों का रोजगार छिना है. 40 साल से ऊपर के 72 लाख लोगों के पास कोई काम नहीं है. बीते एक साल में 71% नौकरीपेशा लोग बेरोजगार हुए हैं. ग्रेजुएट और पीजी डिग्री वाले 65% लोगों के पास काम नहीं है. CMIE के मुताबिक, यह आंकड़ा 95 लाख है. रोजगार छिनने का मतलब मुंह का निवाला छिन जाना है. क्या मोदी की ब्रांडिंग कर रही मेन स्ट्रीम मीडिया के पास यह सवाल पूछने की हिम्मत है कि अब बीजेपी क्या इन बेरोजगारों के हाथ झंडा पकड़ाकर उनसे मंदिर के लिए चंदा मंगवायेगी? नहीं. अर्नब चैट के बाद तो अब यह भी कह सकते हैं कि मेन स्ट्रीम मीडिया अब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से दलाली कर रही है. किसके लिए? वह अपने उन कॉरपोरेट आकाओं के लिए दलाली कर रही है. जिनकी कमाई कोविड काल में 110% बढ़ गई. क्या इस देश की संसद इस पर बात कर रही है? नहीं. वहां तो ताला लगा है. क्या मोदी सरकार को देश में बेरोजगारी के बारे में पता भी है? शायद नहीं. वह देश में नौकरी पैदा करने वाले संस्थानों को अपने पूंजीपतियों को बेच रही है. वहीं पूंजीपति देश में अनाज की जमाखोरी कर अवाम को भूखे मारने की साज़िश रच चुके हैं. वे खाने के तेल से लेकर हर चीज़ की कीमत बढ़ा रहे हैं. लेकिन अवाम के दिमाग में हिन्दू-मुस्लिम का कीड़ा चल रहा है. पेट में भले रोटी न हो, लेकिन मोदी का कट्टर अल्पसंख्यक विरोधी रवैया उन्हें ठीक लगता है. भारत भूख, बेरोजगारी, मुफलिसी से नहीं, अपने ही देश की 12 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी से लड़ रहा है. उन्हें लड़ाने वाले और कोई नहीं, देश के रहनुमा और उनकी पार्टी हैं. कसूर उनका नहीं, उनके भीतर मौजूद नफरत के जीन्स का है. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.

हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार का वादा करने वाली सरकार में 2.17 करोड़ ने नौकरी गंवाई

Soumitra Roy मोदीनोमिक्स का सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव मध्य और निम्न मध्य वर्ग पर पड़ रहा है. लेकिन साम्प्रदायिकता का जहर उनके दिमाग से नहीं निकल पा रहा है. इन दो तबकों ने मोदी को वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में दो बार जिताया. आज उनकी हालत क्या है? जानना दिलचस्प होगा. CMIE ने रोजगार के सर्वे में पाया है कि बीते एक साल में इन दो तबकों ने 1.7 करोड़ नौकरियां गंवाई हैं. इसमें से 90 लाख नौकरियां तो सितंबर से दिसंबर के बीच गई हैं. इन आंकड़ों को अगर शहर और गांव में बांटें तो पता चलेगा कि युवाओं, महिलाओं और वेतनभोगी नौकरीपेशा लोग सबसे ज़्यादा रोजगार छिनने के शिकार हुए हैं. याद रखें वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी ने हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वायदा फेंका था. किसी के पास इस वायदे के अमल का डेटा है. लोग तो इसकी चर्चा तक भूल गये हैं. [caption id="attachment_18855" align="aligncenter" width="600"]
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alt="हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार का वादा करने वाली सरकार में 2.17 करोड़ ने नौकरी गंवाई" width="600" height="400" /> जॉब ग्राफ[/caption] CMIE कहता है कि देश की श्रम शक्ति में 11% की हिस्सेदार महिलाओं में 52% की नौकरियां छिन गई हैं. वर्ष 2019-20 की तुलना में 40 साल से कम उम्र के 2.17 करोड़ लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं. इसमें भी 30-39 साल के 48% लोगों का रोजगार छिना है. 40 साल से ऊपर के 72 लाख लोगों के पास कोई काम नहीं है. बीते एक साल में 71% नौकरीपेशा लोग बेरोजगार हुए हैं. ग्रेजुएट और पीजी डिग्री वाले 65% लोगों के पास काम नहीं है. CMIE के मुताबिक, यह आंकड़ा 95 लाख है. रोजगार छिनने का मतलब मुंह का निवाला छिन जाना है. क्या मोदी की ब्रांडिंग कर रही मेन स्ट्रीम मीडिया के पास यह सवाल पूछने की हिम्मत है कि अब बीजेपी क्या इन बेरोजगारों के हाथ झंडा पकड़ाकर उनसे मंदिर के लिए चंदा मंगवायेगी? नहीं. अर्नब चैट के बाद तो अब यह भी कह सकते हैं कि मेन स्ट्रीम मीडिया अब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से दलाली कर रही है. किसके लिए? वह अपने उन कॉरपोरेट आकाओं के लिए दलाली कर रही है. जिनकी कमाई कोविड काल में 110% बढ़ गई. क्या इस देश की संसद इस पर बात कर रही है? नहीं. वहां तो ताला लगा है. क्या मोदी सरकार को देश में बेरोजगारी के बारे में पता भी है? शायद नहीं. वह देश में नौकरी पैदा करने वाले संस्थानों को अपने पूंजीपतियों को बेच रही है. वहीं पूंजीपति देश में अनाज की जमाखोरी कर अवाम को भूखे मारने की साज़िश रच चुके हैं. वे खाने के तेल से लेकर हर चीज़ की कीमत बढ़ा रहे हैं. लेकिन अवाम के दिमाग में हिन्दू-मुस्लिम का कीड़ा चल रहा है. पेट में भले रोटी न हो, लेकिन मोदी का कट्टर अल्पसंख्यक विरोधी रवैया उन्हें ठीक लगता है. भारत भूख, बेरोजगारी, मुफलिसी से नहीं, अपने ही देश की 12 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी से लड़ रहा है. उन्हें लड़ाने वाले और कोई नहीं, देश के रहनुमा और उनकी पार्टी हैं. कसूर उनका नहीं, उनके भीतर मौजूद नफरत के जीन्स का है. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.
alt="हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार का वादा करने वाली सरकार में 2.17 करोड़ ने नौकरी गंवाई" width="600" height="400" /> जॉब ग्राफ[/caption] CMIE कहता है कि देश की श्रम शक्ति में 11% की हिस्सेदार महिलाओं में 52% की नौकरियां छिन गई हैं. वर्ष 2019-20 की तुलना में 40 साल से कम उम्र के 2.17 करोड़ लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं. इसमें भी 30-39 साल के 48% लोगों का रोजगार छिना है. 40 साल से ऊपर के 72 लाख लोगों के पास कोई काम नहीं है. बीते एक साल में 71% नौकरीपेशा लोग बेरोजगार हुए हैं. ग्रेजुएट और पीजी डिग्री वाले 65% लोगों के पास काम नहीं है. CMIE के मुताबिक, यह आंकड़ा 95 लाख है. रोजगार छिनने का मतलब मुंह का निवाला छिन जाना है. क्या मोदी की ब्रांडिंग कर रही मेन स्ट्रीम मीडिया के पास यह सवाल पूछने की हिम्मत है कि अब बीजेपी क्या इन बेरोजगारों के हाथ झंडा पकड़ाकर उनसे मंदिर के लिए चंदा मंगवायेगी? नहीं. अर्नब चैट के बाद तो अब यह भी कह सकते हैं कि मेन स्ट्रीम मीडिया अब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से दलाली कर रही है. किसके लिए? वह अपने उन कॉरपोरेट आकाओं के लिए दलाली कर रही है. जिनकी कमाई कोविड काल में 110% बढ़ गई. क्या इस देश की संसद इस पर बात कर रही है? नहीं. वहां तो ताला लगा है. क्या मोदी सरकार को देश में बेरोजगारी के बारे में पता भी है? शायद नहीं. वह देश में नौकरी पैदा करने वाले संस्थानों को अपने पूंजीपतियों को बेच रही है. वहीं पूंजीपति देश में अनाज की जमाखोरी कर अवाम को भूखे मारने की साज़िश रच चुके हैं. वे खाने के तेल से लेकर हर चीज़ की कीमत बढ़ा रहे हैं. लेकिन अवाम के दिमाग में हिन्दू-मुस्लिम का कीड़ा चल रहा है. पेट में भले रोटी न हो, लेकिन मोदी का कट्टर अल्पसंख्यक विरोधी रवैया उन्हें ठीक लगता है. भारत भूख, बेरोजगारी, मुफलिसी से नहीं, अपने ही देश की 12 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी से लड़ रहा है. उन्हें लड़ाने वाले और कोई नहीं, देश के रहनुमा और उनकी पार्टी हैं. कसूर उनका नहीं, उनके भीतर मौजूद नफरत के जीन्स का है. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.