Advertisement

गुजरात साहित्य अकादमी की नजर में गंगा में बहते शवों पर लिखी गयी कविता अराजक, संपादकीय में साहित्यिक नक्सल करार दिया

Ahmedabad :  गुजराती कवयित्री पारुल खक्कर की कविता शववाहिनी गंगा  को गुजरात साहित्य अकादमी ने अराजकता  फैलाने वाला करार दिया है. खबर है कि साहित्य अकादमी के आधिकारिक प्रकाशन शब्दश्रुष्टी  के जून संस्करण के संपादकीय में  पारुल खक्कर की, उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा में तैरते पाये गये संदिग्ध कोविड पीड़ितों के शरीर पर लिखी गयी इस कविता को अराजकता  फैलाने वाला बताया गया है.  इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, संपादकीय में उन लोगों को साहित्यिक नक्सल कहा गया है,  जिन्होंने इस पर चर्चा की या इसे प्रसारित किया. इसे भी पढ़ें : पेट्रोल-डीजल">https://lagatar.in/congress-protests-across-the-country-today-against-the-prices-of-petrol-and-diesel/86509/">पेट्रोल-डीजल

की कीमतों के खिलाफ आज देशभर में कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन, पीएम मोदी सहित केंद्रीय मंत्रियों को साइकिलें भेजीं

अकादमी के अध्यक्ष ने संपादकीय लिखे जाने की पुष्टि की

जान लें कि अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पंड्या ने संपादकीय लिखे जाने की पुष्टि की. हालांकि इसमें विशेष रूप से शववाहिनी गंगा का उल्लेख नहीं है, उन्होंने यह भी पुष्टि की कि उनका मतलब उस कविता से है, जिसकी बहुत प्रशंसा हुई है और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है. संपादकीय में कविता को आंदोलन की स्थिति में व्यक्त व्यर्थ क्रोध के रूप में दर्शाया गया है.  संपादकीय के अनुसार कविता में शब्दों का उन ताकतों द्वारा दुरुपयोग किया गया जो केंद्र और केंद्र की राष्ट्रवादी विचारधारा की  विरोधी हैं. इसे भी पढ़ें : सुबह">https://lagatar.in/morning-news-diary-11-june-jac-10th-12th-exam-canceled-one-death-due-to-thanka-two-jawans-found-intoxicated-suspended-75-kg-opium-recovered/86451/">सुबह

की न्यूज डायरी |11 जून | जैक 10वीं-12वीं की परीक्षा रद्द | ठनका से एक की मौत| नशे में मिले दो जवान निलंबित | 75Kg अफीम बरामद | सुशांत के पिता की अर्जी खारिज | सहित अन्य खबरें व कई वीडियो |

ऐसे लोग भारत में जल्दी से हंगामा मचाना चाहते हैं

कविता का इस्तेमाल ऐसे तत्वों ने गोली चलाने के लिए कंधे के रूप में किया, जिन्होंने एक साजिश शुरू की है, जिनकी प्रतिबद्धता भारत के प्रति नहीं बल्कि किसी और चीज से है, जो वामपंथी, तथाकथित उदारवादी हैं, जिनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता. लिखा गया कि ऐसे लोग भारत में जल्दी से हंगामा मचाना चाहते हैं और अराजकता फैलाना चाहते हैं. वे सभी मोर्चों पर सक्रिय हैं और इसी तरह वे गंदे इरादों से साहित्य में कूद पड़े हैं. इन साहित्यिक नक्सलियों का उद्देश्य उन लोगों के एक वर्ग को प्रभावित करना है जो अपने दुख और सुख को इससे (कविता) जोड़ेंगे.  संपादकीय में कहा गया  कि अकादेमी ने खक्कर के पहले के कार्यों को प्रकाशित किया था और अगर उन्होंने भविष्य में कुछ अच्छी कविताएं लिखीं तो गुजराती पाठकों द्वारा उनका स्वागत किया जायेगा.

शव वाहिनी गंगा काव्य का कोई सार नहीं है

पांड्या ने कहा, इसमें (शव वाहिनी गंगा) काव्य का कोई सार नहीं है और न ही यह कविता को कलमबद्ध करने का उचित तरीका है. यह केवल किसी के गुस्से या हताशा को बाहर निकालने के लिए हो सकता है और इसका उदारवादी, मोदी विरोधी, भाजपा विरोधी और संघ विरोधी (आरएसएस) तत्वों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि खक्कर के खिलाफ उनका कोई व्यक्तिगत द्वेष  नहीं है. लेकिन यह कोई कविता नहीं है और कई तत्व इसे सामाजिक विखंडन के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.

पारुल खक्कर ने कविता शववाहिनी गंगा अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर साझा की थी

बता दें कि पारुल खक्कर ने अपनी कविता शववाहिनी गंगा   11 मई को अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर साझा की थी,. यह गुजराती में लिखा गया एक छोटा मगर बेहद मारक व्यंग्य है, जिसमें प्रधानमंत्री का वर्णन उस राम राज्य पर शासन कर रहे नंगे राजा के तौर पर किया गया है, जिसमें गंगा शववाहिनी का काम करती है. पारुल की  14 पंक्तियों की इस कविता के  के सामने आते ही  छह भाषाओं में इसका अनुवाद हो गया. साथ ही यह कविता उन सभी भारतीयों की आवाज बन गयी, जो महामारी द्वारा लायी गयी त्रासदियों से दुखी थे. [wpse_comments_template]