Faisal Anurag
फ्री स्पीच और ओपन सोसाइटी का परचम लहराने के बावजूद संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भारत के नये आइटी कानूनों को मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय मानकों के खिलाफ बताया है. लंदन में जी-7 के देशों ने लोकतंत्र के लिए ऑफलाइन और ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को जरूरी शर्त बताया था. भारत ने उत्साह के साथ जी-7 के घोषणापत्र को स्वीकार किया था. घोषणापत्र में कहा गया था- ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों रूपों में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को ऐसी आजादी के रूप में बढ़ावा देता है, जो लोकतंत्र को मजबूत कर सके और लोगों के जीवन को भय तथा उत्पीड़न से मुक्त रखने में मदद कर सके. लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ के रेपोटियर्स ने भारत सरकार को पत्र लिख कर साफ कहा है कि नये आइटी कानून चिंता का विषय हैं, क्योंकि ये मानवाधिकारों के घोषणापत्र के अनुकूल नहीं हैं. हालांकि भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि नये कानून यूजर्स को ज्यादा अधिकार संपन्न बनाते हैं और उनके हितों की रक्षा करते हैं.
नये आइटी कानूनों को लेकर भारत के अनेक समूहों ने चिंता प्रकट की थी. अभी हाल ही में जिस तरह एक ट्वीट को लेकर राहुल गांधी सहित कई नेताओं और पत्रकारों पर मामले दर्ज किये गये हैं, उससे भी ऑनलाइन स्वतंत्रता को लेकर जतायी जा रही चिंताएं लाजिमी हैं. पिछले कुछ सालों से देश के सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरकार की नीतियों का विरोध करने वालों को जिस तरह के मामलों में लंबे समय से जेल में रखा जा रहा है, उससे अभिव्यक्ति की बुनियादी स्वतंत्रता को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है. दिल्ली हाईकोर्ट ने नरवाल, देवांगना और आसिफ को जमानत देते हुए विरोध और आतंकवाद के बीच के बारीक फर्क को लेकर जिस तरह के सवाल उठाये हैं, वह स्वयं में एक गंभीर टिप्प्णी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7 समिट में कहा था कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता भारतीय सभ्यता के आचरण का हिस्सा रहा है. उन्होंने इस बात पर भी चिंता प्रकट की कि ओपन सोसायटी गलत जानकारियों और साइबर अटैक को लेकर विशेष रूप से खतरे में रहती है. प्रधानमंत्री ने नये आइटी कानूनों का समर्थन भी किया था. लोकतंत्र भारत की सभ्यता का अभिन्न हिस्सा है. दुनिया को ओपन सोसायटी बनाने के संकल्प को भारत के समर्थन के बाद से यह सवाल उठने लगा है कि भारत के अंदर राजनीतिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कितनी शेष बची है. भारत के जेलों में बंद सैकड़ो एक्टिविस्ट ओपन सोसायटी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हालात पर एक अलग नजरिया ही प्रस्तुत करते हैं. जी-7 के घोषणापत्र के अनुसार : सभी के लिए मानवाधिकार, ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों, जैसा कि मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा और अन्य मानवाधिकार संस्थाओं द्वारा सुनिश्चित किया गया है. साथ ही किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध ताकि हर कोई समाज में पूरी तरह और समान रूप से भाग ले सके. इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर के बाद भारत को लेकर उठाये गये संयुक्त राष्ट्र संघ के सवाल बेहद अहम हैं.
संयुक्त राष्ट्र संघ के रेपोटियर्स के आठ पेज के पत्र में प्रमुखता से विचारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति, शांतिपूर्ण विरोध, निजी स्वतंत्रता के संदर्भ को गंभीरता से उठाया गया है. प्रथम प्रवर्तक का पता लगाने की क्षमता, मध्यस्थ दायित्व और डिजिटल मीडिया के कार्यकारी निरीक्षण से संबंधित प्रावधान नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय कन्वेशन में निर्धारित है. भारत के नये कानून इस कन्वेशन के तय मनदंडों के अनुकूल नहीं हैं. सोशल मीडिया के प्रथम और इंटरमिडियटरी सोर्स को लेकर भी इस पत्र में विस्तार से लिखा गया है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पारदर्शी प्रावधान का सवाल भी इस पत्र में है.
लोकतंत्र के साथ अभिव्यक्ति और विरोध की स्वतंत्रता को लेकर परस्पर विरोधी बातें भारत के बाहर और दुनिया भर में की जाती रही हैं. लोकतंत्र और मानवाधिकार के वैश्विक मानकों की रेटिंग भारत के लिए पहले से ही चिंता का विषय है.