Ranchi: कोल कंपनियों समेत दूसरी माइनिंग कंपनियां अब राज्य सरकार का भी खजाना भर रही हैं. रॉयल्टी के रूप में माइनिंग कंपनियों के पास करोड़ों रुपए राज्य सरकार के फंसे हुए हैं. हेमंत सोरेन की सरकार बनने के बाद बार-बार इस राशि को चुकाने की बात सरकार करती रही है. लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ. कोरोना काल में राज्य सरकार के खजाने का हाल किसी से छिपा नहीं है. इस बीच सरकार का एक फैसला फायदे का साबित हो रहा है. हेमंत सोरेन के निर्देश पर अब वन विभाग माइनिंग कंपनियों से परिहन शुल्क वसूल रहा है. सरकार की तरफ से 2019 के सितंबर के महीने में एक कानून बनाया गया था. इस कानून का नाम दिया गया था वनोपज नियमावली 2020. इस कानून को 1 अक्टूबर 2020 से इसे राज्य भर में लागू कर दिया गया. इस कानून के लागू होने से राज्य सरकार को सबसे ज्यादा फायदा कोयले की ढुलाई से हो रही है.
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कोयले की ढुलाई पर अनिवार्य है परिवहन शुल्क
कोयला को छोड़ कर ऐसे माइनिंग मेटेरियल जो वन विभाग के क्षेत्र से माइनिंग होती हैं. उन सभी मिनिरल्स पर यह परिवहन शुल्क लगाया जा रहा है. कोयला को पूरी तरह से वनोपज माना गया है. इसलिए कहीं से भी कोयले की माइनिंग हो रही हो उसपर परिवहन शुलेक लगना अनिवार्य किया गया है. आयरन, मैंग्नीज, लाइम और कोयला जैसी माइनिंग मेरेरियल पर 57 रुपए प्रति मीट्रिक टन परिवहन शुल्क लगना है. वहीं ग्रेनाइट, गिट्टी पत्थर, बालू, मोरम और मिट्टी पर 35 रुपए प्रति घन मीटर परिवहन शुल्क तय किया गया है.
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अबतक वसूले 70 करोड़
वनोपज को वन विभाग की तरफ से काफी कड़ाई से लागू किया जा रहा है. वन विभाग के सचिव एपी सिंह ने लगातार न्यूट नेटवर्क को बताया कि इस बाबत सभी जिले से डीएफओ को सूचित कर दिया गया है. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक कर सभी डीएफओ को बताया गया है कि बिना परिवहन शुल्क दिए कोयले की ढुलाई करने वाले पर विभाग सख्त कार्रवाई करें. उन्होंने बताया कि नियम को सख्ती से लागू करने के बाद सरकार के खजाने में पैसा आ रहा है. अभी तक करीब 70 करोड़ रुपए परिवहन शुल्क के तौर पर वसूले गए हैं. साथ ही रेलवे को भी बता दिया गया है कि बिना परिवहन शुल्क लिए रेलवे कोयले की ढुलाई ना करें.
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