Lagatar Desk : साल 2016 में फ्रांस और भारत ने फ्रेंच रक्षा समूह दसॉ (Dassault) द्वारा निर्मित 36 राफेल जेट लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए 7.8 बिलियन यूरो के सौदे पर हस्ताक्षर किये. मीडियापार्ट इस बात का खुलासा कर सकता है कि इस विवादास्पद सौदे के साथ दसॉ ने एक बिचौलिए को एक मिलियन यूरो का भुगतान करने पर सहमति जतायी थी.. इस बिचौलिये पर भारत में एक अन्य रक्षा सौदे के मामले में भी जांच चल रही है.
फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी ‘फ्रांकेइस एंटीकरप्शन (AFA) ने दसॉ की एक नियमित ऑडिट के दौरान दलाली दिये जाने के इस मामले को पकड़ा था. हालांकि, AFA ने अभियोजन अधिकारियों (prosecution authorities) को इस संदिग्ध भुगतान की जानकारी नहीं देने का फैसला किया था. इस राजकीय घोटाले में मीडियापार्ट की जांच का यह पहला अंश है, जो राजसत्ता और न्याय व्यवस्था दोनों पर गंभीर सवाल उठाता है. पढ़ें यान फिलीपीन की रिपोर्ट.
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23 सितंबर 2016 फ्रांसीसी रक्षा उद्योग के लिए एक महान दिन था
यह फ्रांसीसी रक्षा उद्योग के लिए एक महान दिन था. 23 सितंबर, 2016 को नयी दिल्ली में फ्रांस के रक्षा मंत्री जीन-यवेस ली ड्रियन और उनके भारतीय समकक्ष मनोहर पर्रिकर की मौजूदगी में फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन (Dassault Aviation) के सीईओ ट्रेरिक ट्रैपियर ने राफेल विमानों की बिक्री के सौदे पर दस्तखत किये. यह फ्रांस की सरकार के अब तक के सबसे बड़े हथियार सौदों में से एक था. दसॉ द्वारा निर्मित 36 राफेल फाइटर जेट की खरीद की कीमत के रूप में भारत को 7.8 बिलियन यूरो अदा करने थे. यह रकम पश्चिम अफ्रीकी देश बेनिन जैसे कई देशों के कुल जीडीपी के बराबर है.
दसॉ और इसके औद्योगिक साझेदारों की बड़ी जीत थी यह सौदा
यह सौदा दसॉ और इसके औद्योगिक साझेदारों – सफरन, थेल्स और एमबीडीए के साथ-साथ फ्रांस के समाजवादी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के लिए भी बड़ी जीत थी. होती भी क्यों नहीं, वर्ष 2001 में भारत के इन विमानों की खरीद की शुरुआती प्रक्रिया से हाथ खींच लेने के बाद फ्रांस की सरकारों ने इसके लिए 15 साल कोशिश जो की थी.
हालांकि सौदे में कुछ समस्याएं भी थीं, जिन्होंने इस करार को पटरी से लगभग उतार ही दिया था. साल 2018 में इस सौदे में संभावित भ्रष्टाचार और पक्षपात की आशंका जताते हुए कानूनी शिकायतें दर्ज की गयीं. प्रेस में भी इनका खुलासा हुआ. लेकिन अगले साल फ्रांस और भारत, दोनों देशों में प्रारंभिक कार्यवाही खत्म हो गयी और फिर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई.
आधिकारिक रूप से सब कुछ स्पष्ट था और भारतीय राफेल सौदे को लेकर जतायी जा रही आशंकाएं ‘भ्रम’ के सिवा और कुछ भी नहीं थीं.
हालांकि वास्तविकता यह है कि यह एक घोटाला है. मीडियापार्ट “राफेल पेपर्स” के प्रकाशन के साथ तीन कड़ियों में इस मामले में अपनी जांच को सामने ला रहा है. यह जांच बड़ी संख्या में मिले दस्तावेजों और गवाहों के पहले से अप्रकाशित बयानों पर आधारित है.
सच्चाई यह है कि फ्रांसीसी और भारतीय जांचकर्ताओं ने इस सौदे की पीछे छिपी कई तरह की गड़बड़ियों को खोज निकाला था. इनमें गुप्त रूप से दलाली देने, संदिग्ध बिचौलियों की मौजूदगी, गोपनीय दस्तावेजों लीक किये जाने की आशंका और सौदे के करार से भ्रष्टाचार निरोधी शर्तों को हटाये जाने जैसी सूचनाएं शामिल थीं. लेकिन भारत और फ्रांस, दोनों देशों में इस मामले को “दफन” कर दिया गया.

“घुमंतू सेल्समैन” बन गए थे ओलांद
राफेल विवाद ने सरकारों में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों पर कलंक लगने का खतरा पैदा कर दिया. भारत में इसने अति राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- जिन्होंने अप्रैल 2015 में इस सौदे की घोषणा की थी- के बेहद करीबी व्यक्ति को लपेटे में लिया. फ्रांस के दो राष्ट्रपति, फ्रांस्वा ओलांद और उनके उत्तराधिकारी इमैनुएल मैक्रों भी इसके संभावित खतरे की ज़द में आये. निशाने पर जीन-यवेस ले ड्रियन भी थे, जो राष्ट्रपति मैक्रों द्वारा विदेश मंत्री नामित किये जाने के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के रक्षा मंत्री के रूप में राफेल के “घुमंतू सेल्समैन” बन गये थे.
AFA ने सबसे पहले संदिग्ध भुगतान को पकड़ा था
यह तसवीर वायु सेना को लड़ाकू विमानों की आपूर्ति करनेवाली एकमात्र फ्रांसीसी कंपनी दसॉ समूह की चर्चा के बिना पूरी नहीं होगी. रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण यह कंपनी हमेशा यह बताने में तत्पर रही कि लड़ाकू राफेल जेट का उत्पादन 7000 नौकरियों को सुरक्षा प्रदान करता है. दसॉ फ्रांस की सबसे प्रभावशाली कंपनियों में से एक है. 70 से अधिक वर्षों से इसने सरकार के भीतर संपर्कों का विशाल नेटवर्क बना लिया है. इस मामले की नजदीकी जानकारी रखनेवाले सूत्रों ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि दसॉ को लगता है कि उसे कोई “छू भी नहीं सकता”.
अपने “राफेल पेपर्स” जांच के पहले हिस्से में, मीडियापार्ट यह खुलासा कर रहा है कि फ्रांसीसी भ्रष्टाचार-निरोधक एजेंसी ‘एजेंस फ्रांकेइस एंटीकरप्शन’ (AFA) ने सबसे पहले दसॉ द्वारा किये गये एक संदिग्ध भुगतान को पकड़ा था. AFA बजट मंत्रालय और न्याय मंत्रालय दोनों के प्रति जवाबदेह है.

टिप्पणी से कर दिया था इनकार
मीडियापार्ट मानता है कि समूह के एक निर्धारित ऑडिट के दौरान एजेंसी के निरीक्षकों ने पाया कि दसॉ ने 2016 के राफेल लड़ाकू जेट सौदे पर हस्ताक्षर करने के बाद एक बिचौलिये को 1 मिलियन यूरो का भुगतान करने पर सहमति जतायी थी. अब उस बिचौलिये पर भारत में एक अन्य रक्षा सौदे में मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है. कंपनी ने कहा कि इस राशि को राफेल जेट के 50 बड़े प्रतिकृति नमूने (Replica model) बनाने के एवज में भुगतान के लिए उपयोग किया गया था. इसके बावजूद कंपनी ने निरीक्षकों को ऐसा कोई सबूत नहीं दिया जिससे लगे कि ये मॉडल वास्तव में बनाये गये थे. लेकिन इसके बावजूद सभी न्यायसंगत तर्कों के खिलाफ जाकर AFA ने मामले की जानकारी अभियोजकों को नहीं देने का फैसला किया.
मीडियापार्ट की पूछताछ में एक वरिष्ठ फ्रांसीसी मजिस्ट्रेट और AFA के निदेशक, चार्ल्स ड्यूशेन ने इस आधार पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि एजेंसी “पेशेवर गोपनीयता” से बंधी है. इधर, विमानन कंपनी के एक प्रवक्ता ने मीडियापार्ट से कहा – “दसॉ एविएशन कोई टिप्पणी नहीं करेगा.”
एजेंस फ्रेंकाइस एंटीकरप्शन की स्थापना 2017 में हुई थी. इसका उद्देश्य इस बात की जांच करना था कि बड़ी कंपनियों ने फ्रांस के कानून द्वारा स्थापित भ्रष्टाचार विरोधी प्रक्रियाओं को लागू किया है अथवा नहीं. इन प्रक्रियाओं को सैपिन-2 के रूप में जाना जाता है. छह महीने की समय सीमा के अंदर एक-एक कर इन बड़ी कंपनियों का ऑडिट किया जाता है. प्रेस में राफेल सौदे को लेकर कई खुलासे होने के बाद अक्टूबर 2018 में फ्रेंच पब्लिक प्रॉसिक्यूशन सर्विसेज की वित्तीय अपराध शाखा, पैर्केट नेशनल फाइनेंसर (PNF) को राफेल फाइटर जेट्स की भारत में बिक्री पर संभावित “भ्रष्टाचार” से संबंधित अलर्ट मिला. यह वही समय था, जब AFA द्वारा दसॉ का ऑडिट किये जाने की बारी आनेवाली थी.
कई सौ यूरो की लागतवाला महंगा भोजन कराया गया था
2017 के खातों से मिलान करने के बाद AFA निरीक्षकों की भौंहें 508,925 यूरो के एक खर्च पर तनीं. इस खर्च को “ग्राहकों को उपहार” शीर्षक के तहत दर्ज किया गया था. एएफए की ऑडिट रिपोर्ट, जिसे मीडियापार्ट ने देखा है, कहती है कि इस शीर्षक के तहत दर्ज राशि बाकी की अन्य सभी प्रविष्टियों से असंबद्ध नजर आ रही थी”.
यह राशि उपहार देने के लिहाज से बहुत बड़ी है. हालांकि फ्रांसीसी कानून में इसके लिए कोई सटीक सीमा तय नहीं है. लेकिन कानूनी मिसालें यह बताती हैं कि एक घड़ी या कई सौ यूरो की लागतवाला महंगा भोजन कराना भी भ्रष्टाचार का आरोप गठित करने के लिए पर्याप्त वजह है.
सामान्य “उपहार” की तुलना में इस बड़े गिफ्ट को सही ठहराने के लिए दसॉ ने 30 मार्च 2017 को AFA को एक प्रोफार्मा चालान उपलब्ध कराया. इसे डिफसिस सॉल्यूशंस (Defsys Solutions) नामक एक भारतीय कंपनी ने दिया था. AFA की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल ऑर्डर के 50% (1,017,850 यूरो) से संबंधित यह चालान, राफेल-सी के 50 मॉडलों के निर्माण के लिए 20,357 प्रति यूनिट कीमत के साथ था.
AFA निरीक्षकों, जिन्होंने 2018 के मध्य अक्टूबर में इन विवरणों को हासिल किया था, कंपनी से इस बारे में स्पष्टीकरण देने को कहा. आखिर दसॉ ने क्यों एक भारतीय कंपनी को अपने स्वयं के विमानों के मॉडल बनाने का आदेश दिया था? वह भी 20,000 यूरो में एक विमान? इसे व्यय खातों में “ग्राहक को उपहार” के रूप में क्यों दर्ज किया गया था? और क्या एक छोटी कार के आकार के इन मॉडलों को वास्तव में कभी बनाया भी गया था?
मीडियापार्ट की समझ है कि दसॉ समूह AFA को ऐसा एक भी दस्तावेज दिखाने में असमर्थ रहा कि ये मॉडल वास्तव में थे और इनकी आपूर्ति की गयी थी. यहां तक कि वह इनकी एक तस्वीर भी नहीं दिखा पाया. इससे निरीक्षकों को संदेह था कि यह एक फर्जी खरीद थी, जिसे एक गुप्त वित्तीय लेनदेन को छिपाने के लिए गढ़ा गया था.
AFA की इस कार्रवाई से पश्चिम पेरिस के उपनगर सेंट-क्लाउड में स्थित दसॉ समूह के मुख्यालय में चिंता बढ़ रही थी. इस मामले से नजदीक से जुड़े कई स्रोतों के अनुसार समूह ने शिकायत की कि निरीक्षक स्पष्ट रूप से “बहुत नकचढ़े थे और बहुत सारे दस्तावेज मांग रहे थे”.
अगर किसी को दसॉ की चिंताओं को समझना है, तो उसे बस पैसों का पीछा करना होगा. Rafale मॉडल को बेचने वाली कंपनी डिफसिस सॉल्यूशंस (Defsys Solutions) राफेल समझौते में भारत में दसॉ कंपनी के सब-कांट्रैक्टरों में से एक है. हालांकि 170 कर्मचारियों वाली मध्यम आकार की इस कंपनी के पास मॉडल बनाने की विशेषज्ञता नहीं है. इसके बजाय यह विदेशी कंपनियों के लाइसेंस के तहत विमानन उद्योग के लिए फ्लाइट सिमुलेटर, ऑप्टिकल और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम एसेंबल करता है.
डिफसिस सॉल्यूशंस का मालिक गुप्ता परिवार है, जिसके सदस्य तीन पीढ़ियों से वैमानिकी और रक्षा उद्योगों में बिचौलियों के रूप में काम रहे हैं. जनवरी 2019 में भारतीय मीडिया – पहले कोबरापोस्ट और फिर द इकोनॉमिक टाइम्स – ने खुलासा किया कि दसॉ के एजेंट के रूप में काम करनेवाले गुप्ता परिवार के एक सदस्य सुशेन गुप्ता ने राफेल समझौते पर काम किया था. और उसने कथित तौर पर भारत के रक्षा मंत्रालय से गोपनीय दस्तावेज हासिल किये थे.
संयोग से सुशेन गुप्ता ही वह बिचौलिया था, जिसने फ्रांसीसी रक्षा मंत्री ज्यां-यवेस ले ड्रियन और उनके भारतीय समकक्ष मनोहर पर्रिकर द्वारा राफेल सौदे पर हस्ताक्षर करने के छह महीने बाद दसॉ कंपनी को जेट फाइटरों के मॉडल के लिए एक मिलियन-यूरो का चालान भेजा था.
मार्च 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग का पता लगानेवाली ताकतवर भारतीय एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय (इडी) द्वारा सुशेन गुप्ता को गिरफ्तार किया गया था. बाद में तथाकथित ‘चॉपरगेट’ घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना कर रहे गुप्ता को जमानत पर रिहा कर दिया गया. यह घोटाला इतालवी-ब्रिटिश समूह अगस्ता वेस्टलैंड द्वारा भारत में हेलीकॉप्टरों की बिक्री से संबंधित था. किसी भी गलत काम में संलिप्तता को नकारनेवाले सुशेन गुप्ता और उनके आरोपी साथियों पर उस समूह से गुप्त दलाली के रूप में लगभग 50 मिलियन यूरो भुगतान लेने का शक है. इडी को शक है कि उस समय इस पैसे से भारतीय अधिकारियों रिश्वत दी गयी थी. इस बारे में मीडियापार्ट के सवालों का बिचौलिए ने कोई जवाब नहीं दिया.
सुशेन गुप्ता की गिरफ्तारी और भारतीय प्रेस द्वारा किये गये खुलासे एग्रेस फ्रांस्वाइस एंटीकरप्शन (AFA) की जानकारी में आ गये. 2020 तक, जब AFA अपनी दसॉ ऑडिट रिपोर्ट को अंतिम रूप दे रहा था, उसके पास कंपनी को दोषी ठहराने के लिए ठोस जानकारियां थीं. उसके पास इस बात का प्रमाण था कि इस वैमानिकी कंपनी ने एक अन्य मामले में आरोपी भारतीय बिचौलिये को भुगतान किया था. उस बिचौलिये के माध्यम से दसॉ ने एयरक्राफ्ट के मॉडल के लिए अरब-यूरो का ऐसा सौदा किया, जिसका अस्तित्व नहीं भी हो सकता है.
इन सबके बावजूद AFA के निदेशक, चार्ल्स ड्यूशेन ने इस मामले की जानकारी अभियोजन अधिकारियों को नहीं देने का फैसला किया. इसके बजाय AFA ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में विमान मॉडल के मुद्दे का दो छोटे पैराग्राफ में हल्के ढंग से जिक्र किया.
अक्टूबर 2017 में डेसाइडर्स पत्रिका को दिये एक इंटरव्यू में चार्ल्स ड्यूशेन ने दसॉ के इस “असामान्य व्यवहार” को दंडित करने की अपनी इच्छा का संकेत दिया था. उन्होंने पत्रिका को बताया: “आपराधिक कानून प्रक्रिया संहिता का अनुच्छेद-40 किसी लोक सेवक अथवा अधिकारी को कार्य के दौरान जानकारी में आये किसी भी अपराध को संबंधित अभियोजन अधिकारियों को देने के लिए बाध्य करता है. जैसे ही हमारे पास ऐसा करने के लिए पर्याप्त सामग्री होगी, हम इस दायित्व को पूरा करेंगे.
2017 में AFA ने एक अन्य कंपनी के ऑडिट में खुद को ज्यादा आक्रामक दिखाया था. यह ऑडिट एक फ्रांसीसी कंपनी सोनपार में किया गया था, जो विद्युत उत्पादों के वितरण में विश्व में अग्रणी कंपनी है. मीडियापार्ट का मानना है कि इस मामले में AFA ने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के पहले ही अप्रैल, 2018 में पेरिस स्थित अभियोजन अधिकारियों को अपनी चिंताओं से अवगत करा दिया था. इसने एक जज की अनुवाई में विद्युत सामग्री के बाजार में एक संदिग्ध कार्टेल की विशाल जांच का रास्ता खोल दिया था.
चार्ल्स ड्यूशेन द्वारा अभियोजन अधिकारियों को सूचित नहीं करने के फैसले को समझना और भी कठिन है, क्योंकि जिस समय AFA ने राफेल मॉडल के मामले को पकड़ा था, उस समय फ्रेंच पब्लिक प्रॉसीक्यूशन सर्विस का फाइनेंशियल क्राइम ब्रांच “पैर्केट नेशनल फाइनेंसर” (PNF) भी फ्रेंको-इंडियन राफेल मामले को देख रहा था. लेकिन जैसा कि मीडियापार्ट “राफेल पेपर्स” जांच के अगले हिस्से में दिखायेगा, PNF ने भी आगे किसी तरह की कार्रवाई नहीं की.
हिंदी अनुवाद- आनंद कुमार
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