Faisal Anurag
क्या केंद्र राज्य संबंध ध्वस्त होने के कगार पर हैं? गैर—भाजपा शासित राज्यों के साथ हो रहे व्यवहार तो कम से कम यही इशारा कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने 24 अक्तूबर से पंजाब जाने वाली तमाम मालगाड़ियों की आवाजाही रोक दिया गया है. हवाला तो कानून व व्यवस्था का दिया गया है, लेकिन इसके राजनैतिक संदेश कुछ और ही हैं. झारखंड को भी इस तरह की उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है. केंद्र ने झारखंड के जीएसटी की हिस्सेदारी का भुगतान नहीं कर यही संकेत दिया है. केंद्र की उपेक्षा का आरोप तो महाराष्ट्र, केरल और बंगाल की राज्य सरकारें भी लगा रही हैं.
पंजाब जाने वाली मालगाड़ियों के आवागमन को रोके जाने की तीखी प्रतिक्रिया पंजाब में हो रही है. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इस कदम को खतरनाक बताया है. यह बेहद तल्ख प्रतिक्रिया है. कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा है कि मालगाड़ियों की आवाजाही का नहीं होना राष्ट्र की सुरक्षा के नजरिये से खतरनाक कदम है. उन्होंने कहा है इसका असर लद्दाख और कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों पर भी पड़ने लगा है क्योंकि आपूर्ति का चेन प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा है कि पंजाब के थर्मल उत्पादन केंद्र कभी भी ठप हो सकते हैं, क्योंकि कोयला का स्टॉक खत्म हो रहा है. किसानों को भी रबी के लिए फर्टलाइजर से वंचित होना पड़ रहा है. पंजाब में कृषि कानूनों के खिलाफ संघर्ष कर रहे किसानों ने रेलवे ट्रैक को कब का खाली कर दिया है, बावजूद केंद्र ने इस तरह का कदम उठाया है.
प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेंद्र मोदी केंद्र राज्यों के बीच संघात्मक ढांचे की मजबूती की बात करते रहे हैं. राज्यों को समान नजरिये से देखने और लोकतांत्रिक विविधता पर भी वे फोकस करते रहे हैं. लेकिन जिस तरह गैर भाजपा शासित राज्यों के आरोप हैं, उन्हें खारिज भी नहीं किया जा सकता है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो 2015 से ही केंद्र की उपेक्षा का आरोप लगती रही हैं. अगले साल बंगाल में विधानसभा चुनाव होंगे. भाजपा बंगाल में जीत के लिए तृणमूल सरकार को परेशान कर रही है. केरल ने भी कोविड,जीएसटी और केंद्रीय मदद के क्षेत्र में उपेक्षा का गंभीर आरोप लगाया है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी केंद्र की उपेक्षा का आरोप लगते रहे हैं.
पंजाब और झारखंड उन राज्यों में शामिल है, जिसने केंद्र सरकार की कई नीतियों का विरोध किया है. दोनों ही सरकारों ने कृषि कानून का तीखा विरोध किया है. पंजाब ने तो केंद्र सरकार की कृषि नीति का विरोध करते हुए एक अलग से कृषि कानून बनाकर किसानों के अधिकारों की गारंटी दी है. इस कानून के अनुसार, तय समर्थन मूल्य से कम पर खरीद करने वालों के लिए तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया है. केंद्रीय कृषि कानून को लेकर किसान संगठनों का दावा है कि इससे न केवल किसानों की तबाही होगी, बल्कि भारत की खेती देर-सबेर बड़ी कंपनियों की मोहताज हो जायेगी.
अनेक किसान संगठनों ने 5 नवंबर को चक्का जाम आंदोलन के माध्यम से केंद्र को चेतावनी दिया दी है.
झारखंड की सोरेन सरकार ने भी कोयला खदानों के बेचे जाने के खिलाफ राज्य के अधिकार और स्थानीय लोगों के हक का सवाल उठाकर तीखा विरोध किया है और सुप्रीम कोर्ट में इस प्रक्रिया को चुनौती भी दिया है. इससे केंद्र की मोदी सरकार की नाराजगी बढ़ी है. झारखंड को जीएसटी की हिस्सेदारी लेने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. झारखंड का केंद्र पर कुल बकाया 3280.34 है. राज्य इससे वंचित है और उसे भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जो बिहार चुनाव प्रचार अभियान से नदारद रहे बंगाल पहुंच गये हैं. उनके भाषणों से केंद्र राज्य संबंधों की तल्खी साफ झलकती है. सवाल यह है कि जब भारत के संविधान एक संघात्मक ढांचे की बुनियाद पर खड़ा है तो फिर कुछ राज्यों को उपेक्षा का सामना क्यों करना पड़ रहा है. दो साल पहले जब केरल में बाढ़ की तबाही आयी थी, तब भी केंद्र ने दिल खोलकर केरल की मदद नहीं की थी.
पूरे कोविड काल में केरल के मुख्यमंत्री विजयन केंद्रीय उपेक्षा का सवाल उठाते रहे हैं और राज्य की हिस्सेदारी को लेकर मुखर रहे हैं. भारत में केंद्र और राज्यों के बीच इस तरह की तल्खी अभूतपूर्व है. 80 और 90 के दशक के बीच केंद्र राज्यों के बीच ज्यादा लोकतांत्रिक संवाद और हिस्सेदारी की बात प्रमुखता से उठी थी और एक सरकारिता आयोग का गठन कर राज्य और केंद्र संबंधों की व्याख्या की गयी थी. लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह सत्ता विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया शिथिल हुई है उसके संकेत बेहद चिंताजनक हैं.