Soumitra Roy
सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ आदर पूनावाला के ब्रिटेन जाने और वहां वैक्सीन बनाने की योजना के पीछे बिल गेट्स का दिमाग बताया जा रहा है. दो दिन पहले पॉलिटिक्स पर नजर रखने वाले गिरीश मालवीय से इस अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र पर बात हो रही थी और आज इसके प्रमाण सामने हैं.
ये मोदी सरकार की बड़ी विफलता है कि वह वैक्सीन की साज़िश को नहीं समझ पायी या फिर अपने फायदे के लिए जानबूझकर इसे बढ़ावा दे रही है.
इसे यूं समझें- सीरम इंस्टीच्यूट का कहना है कि उसने भारत सरकार के साथ 150 रुपये प्रति डोज़ की दर पर सिर्फ 10 करोड़ वैक्सीन देने का समझौता किया था. चूंकि समझौता खत्म हो चुका है, इसलिए उसने अगले उत्पादन के दाम दोगुने-चौगुने कर दिए.
लेकिन सीरम को विश्व स्वास्थ्य संगठन, यानी WHO से कई गुना ज्यादा का ऑर्डर मिला था और वह भी एडवांस में.
कोविशिल्ड के पीछे एस्ट्राजेनेका सिर्फ एक आड़ की तरह है. असल में गूगल और गेट्स फाउंडेशन इस वैक्सीन के पीछे की प्रमुख डेवलपर कंपनियां हैं. दोनों का मकसद भारत के फार्मा उद्योग पर कब्ज़ा जमाना है और कोविशिल्ड इसकी पहली कड़ी है.
पहला ग्राफ देखें तो पता चलेगा कि जनवरी से मई 2020 के बीच नदी में बहुत पानी बहा है.
दूसरा ग्राफ मई के बाद की डील्स को बताता है कि कैसे GAVI-CEPI सामने आए और एस्ट्राजेनेका ने जून में किस तरह सीरम को 1 बिलियन डोज़ का ऑर्डर दिया.
इसी जून 2020 में भारत को ग्लोबल साउथ इनिशिएटिव के माध्यम से 10 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर सीरम को मिला. बीच में मोदी सरकार से डील कब और कैसे हुई, यह बड़ा सवाल है.
सीरम में कोवैक्सीन का भी पैसा लगा है. अब इस पूरे परिदृश्य को देखकर यह साफ हो जाता है कि सीरम ने इतना तो कमा ही लिया है कि पूनावाला ब्रिटेन में पैसा लगा सकें. BREXIT के बाद ब्रिटिश सरकार को पूनावाला जैसे निवेशकों की तलाश है. वहां प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की छवि कोविड कुप्रबंधन के कारण बहुत खराब है.
ऐसे में उनके लिए पूनावाला में दिलचस्पी जायज़ है. दूसरी बात- सीरम के पास वैक्सीन उत्पादन का फ्री लाइसेंस है. वह कहीं भी वैक्सीन बना सकता है.आपको याद होगा कि महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने पिछले दिनों भारत बायोटेक को 94 करोड़ से ज़्यादा देकर होफकिन्स इंस्टिट्यूट को कोवैक्सीन की तकनीक देने को कहा था. मोदी ने जो चूक की, वह उद्धव ने नहीं की.
आपको यह भी याद होगा कि सीरम के पुणे में 100 एकड़ वाले कैंपस में पिछले साल आग लगी थी. आग लगी थी, या लगवाई गयी थी- ये सवाल आप आज मज़बूती से पूछ सकते हैं.
कुल मिलाकर भारत वैक्सीन के अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र में गहरे फंस चुका है. लगता है, देश की बाकी 110 करोड़ अवाम को वैक्सीन के लिए और परेशान होना है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.