Surjit Singh
देश में रिकॉर्ड बेरोजगारी है. लोगों की कमाई कम हो गई है. महंगाई चरम पर है. ऐसे में दुनिया भर में यह देखा गया है कि कट्टरपंथ तेजी से फैलता है. चाहे वह कट्टरपंथ जाति को लेकर हो, धर्म को लेकर हो, किसी खास विचारधारा को लेकर हो या बाहरी-भीतरी को लेकर हो. बेरोजगारी, महंगाई, बेकारी और फ्रस्टेशन का जो माहौल देश में हैं, वही झारखंड में भी है.
बात देश की नहीं, बल्कि राज्य की. दो दिन से विधायक जयराम महतो चर्चा में हैं. उन्होंने गुरुवार को कहा- सीसीएल के क्वार्टर पर कब्जा करना हमारा मकसद नहीं था. मकसद था यह बतलाना कि क्वार्टरों पर कब्जा है. बाहरी लोगों का कब्जा है.
जयराम महतो का वीडियो भी वायरल है. वह कह रहे हैं- खास के लिए अलग नियम और आम के लिए अलग. स्थानीय भाषा में कहते हैं-ई नाय चलतो. कब्जा हटाने और एलॉटमेंट ऑर्डर साथ में निकालना होगा. हम चले जाएंगे अपने क्षेत्र में.
दरअसल, बात यह है कि जयराम महतो ने डुमरी के विधायक हैं, सीसीएल का ढ़ोरी प्रक्षेत्र इसी विधानसभा में आता है. लेकिन उन्होंने क्वार्टर के लिए आवेदन दिया, बेरमो क्षेत्र के जीएम को. जिस कारण उन्हें क्वार्टर आवंटित नहीं हो पाया. तब उन्होंने क्वार्टर पर कब्जा कर लिया, जिसे प्रशासन की मदद से खाली कराया गया. नियम का तो नहीं पता पर सांसद-विधायकों को उनके क्षेत्र में क्वार्टर देने की परंपरा है.
विधायक बनने के बाद जयराम महतो खासा सक्रिय हैं. रांची से लेकर धनबाद तक कंपनी मालिकों, फैक्टरी मालिकों तक को वह फोन कर रहे हैं. बात तो मजदूरों व स्थानीय लोगों के पक्ष में कर रहे हैं. संभव है कि बात जायज भी हो. लेकिन नीतियों को लागू कराने और जायज बात को मनवाने का यह तरीका क्या सही है.
इससे पहले भी जयराम महतो बाहरी-भीतरी को लेकर बोलते रहे हैं. चुनाव में उन्हें और उनकी पार्टी को इसका फायदा भी मिला. वह आगे भी ऐसा करते-कहते रहेंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए. यह खतरनाक हालात की ओर इशारा करता है. संभव है, वह अपने इन कामों के अंजाम को लेकर अनभिज्ञ हों.
वर्ष 2000 में झारखंड अलग बना. भाजपा की सरकार थी और बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री थे. वर्ष 2001 में उस वक्त सरकारी नौकरी में बाहरी-भीतरी का मुद्दा गरम हुआ. राज्य बंटवारे से पहले से अपने ही राज्य में बसे लोग अचानक से बाहरी बन गए और बाहरी-भीतरी का मुद्दा गरम हो गया. एक दिन में पूरा झारखंड जलने लगा. मारपीट व आगजनी हुई. कई लोगों की मौत हुई.
कई नए नेता उसी दौरान चमके, आगे बढ़े. पर, झारखंड पीछे चला गया. नई कंपनियों ने झारखंड से उस वक्त जो मुंह मोड़ा, आज तक सशंकित ही हैं. राज्य का विकास प्रभावित हुआ. सरकारी पदों पर नियुक्ति का मामला तो फंसता ही रहा, निवेश नहीं आने से स्थानीय लोगों के लिए भी रोजगार के दरवाजे बंद ही हो गये.
समय के साथ जैसे-तैसे स्थिति थोड़ा नॉर्मल हुआ है. लेकिन जयराम महतो जिस तरह एक खास वर्ग में लोकप्रिय हुए हैं, लोग जिस तरह से उनकी बातों को सुनते हैं. जिस तरह वह बोलते हैं, वह लोगों को ना सिर्फ भाता है, बल्कि उनकी सोंच को भी बदलता है.
ऐसे में यह अंदेशा जताया जाने लगा कि उनकी ताजा कोशिशों से कहीं झारखंड में वर्ष 2001 जैसी स्थिति ना पैदा हो जाये. क्योंकि अभी जो माहौल देश में है, उसमें अंदर ही अंदर घुट रहे लोगों को बस एक चिंगारी की ही जरूरत है.
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मुद्दे को भटकाने की कोशिश प्रतीत होती है आपकी यह पत्रकारिता। सरकारी कंपनियों के क्वार्टरों की अवैध कब्जे के विषय को बड़ी साफगोई से आपने धूमिल कर दिया। एक वर्ग विशेष जो निश्चित ही स्थानीय प्रजातियों के हैं, अन्याय भाव से पीड़ित हैं और अन्याय पूर्ण कार्यवाही (जो निश्चित ही सही-गलत से परे है) विद्वेष को बढ़ावा दे रही है। बाहरी-भीतरी के मिथ्या आरोप के पहले इस मूल कारण को समझने की नितांत आवश्यकता है। इस जिम्मेवारी को समझना होगा जो भ्रामक रूप से तथाकथित बाहरी-भीतरी विषयों को पुनर्जीवित करतीं हैं।