झारखंड : IPS प्रोन्नति के लिए UPSC को भेजे गये नामों में से 31 अफसरों के खिलाफ CBI ने मांगी अभियोजन स्वीकृति
Ranchi : झारखंड में नौ अधिकारियों को आईपीएस में प्रोन्नति दी जायेगी. राज्य सरकार ने 2021, 2022 और 2023 के लिए कुल नौ रिक्तियों के लिए यूपीएससी को अनुशंसा भेजी है. मुख्यमंत्री की स्वीकृति के बाद, यूपीएससी को 17 पुलिस अधिकारियों की एक सूची भेजी गयी है. सूची में शिवेंद्र, राधा प्रेम किशोर, मुकेश कुमार महतो, मजरूल होदा, राजेश कुमार, दीपक कुमार, अविनाश कुमार, रोशन गुड़िया, श्रीराम समद, निशा मुरमू, सुरजीत कुमार, वीरेंद्र चौधरी, राहुल देव बड़ाइक, ख्रीस्टोफर केरकेट्टा, प्रभात रंजन बरवार, अनुप कुमार बडाइक समीर तिर्की व हीरालाल रवि का नाम शामिल है. सीबीआई ने राज्य सरकार से यूपीएससी को भेजे गये नामों की सूची में से दो डीएसपी (मुकेश कुमार और राधाप्रेम किशोर) के अलावा 31 अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी है.
राज्य सरकार से मांगी गयी अभियोजन स्वीकृति
सीबीआई ने जेपीएससी-2 नियुक्ति घोटाले की जांच के बाद 60 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया है. इसमें 28 परीक्षार्थी, जेपीएससी के छह पूर्व अधिकारी, 25 परीक्षक और एक प्रतिनिधि शामिल हैं. आरोपित परीक्षार्थियों की सूची में आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष, सदस्य, विधायक, पूर्व मंत्री और वकील के रिश्तेदारों का नाम भी शामिल है. आरोपित परीक्षार्थियों में से कुछ वर्तमान में एडीएम के पद पर कार्यरत हैं. जबकि डीएसपी के रूप में कार्यरत कुछ अधिकारियों को एसपी के पद पर प्रोन्नति मिल चुकी है. सीबीआई ने राज्य सरकार से 31 अधिकारियों को खिलाफ अभियोजन स्वीकृति देने का अनुरोध भी किया है. इसमें जेपीएससी से संबंधित छह अधिकारी और परीक्षकों रूप में शामिल 25 व्याख्याता शामिल हैं.
12 साल बाद जांच पूरी कर दायर किया गया आरोप पत्र
जेपीएससी-1 की तरह की न्यायिक विवादों की वजह से जेपीएससी-2 की भी जांच 12 साल बाद पूरी हुई. इसके बाद आरोप पत्र दायर किया गया. सीबीआई ने अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा-420, 120बी, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-13(2) सहपठित धारा-13(1)(डी) के तहत कार्रवाई करने का अनुरोध किया है. आरोप पत्र में जेपीएससी के तत्कालीन पदाधिकारियों, परीक्षकों और तत्कालीन परीक्षार्थियों द्वारा सुनियोजित साजिश रचकर अयोग्य लोगों को परीक्षा में सफल घोषित करने का आरोप लगाया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि मामले की जांच के दौरान दोषियों को पहचानने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया गया. इसके तहत परीक्षार्थियों की कॉपियों की फोरेंसिक जांच कराई गई, जिसमें यह पुष्टि हुई कि अयोग्य उम्मीदवारों की कॉपियों में पहले दिये गये नंबरों को काटकर बढ़ाया गया था. संबंधित विषयों की कॉपियों की जांच करनेवाले व्याख्याताओं ने भी पूछताछ के दौरान इस बात की पुष्टि की.
जांच के दौरान आरोपित परीक्षार्थियों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया. उन्हें समन भेजकर बुलाया गया और उनकी कॉपियों में की गयी काट-छांट और ओवर राइटिंग पर उनका पक्ष सुना गया. फॉरेंसिक जांच और परीक्षकों के बयानों की समीक्षा के बाद, 28 परीक्षार्थियों के खिलाफ जालसाजी का आरोप लगाते हुए आरोप पत्र दायर करने का निर्णय लिया गया. जालसाजी में मदद करने वाले इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों और 25 परीक्षकों के खिलाफ भी आरोप पत्र दायर किया गया.
जांच में यह भी पाया गया कि आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष, सदस्यों और नेताओं के करीबी रिश्तेदारों को जालसाजी के माध्यम से सफल घोषित किया गया और विभिन्न पदों पर नियुक्त करने की अनुशंसा की गयी. इसके अलावा, परीक्षा के दौरान कंप्यूटर से संबंधित कार्य मेसर्स एनसीसीएफ को दिये गये. एनसीसीएफ के प्रतिनिधि धीरज कुमार भी इस जालसाजी में शामिल होकर अपने रिश्तेदार संजीव सिंह को सफल घोषित कराया.
आरोपित परीक्षार्थियों की सूची
राधाप्रेम किशोर, विनोद राम, हरिशंकर बड़ाइक, हरिहर सिंह मुंडा, रवि कुमार कुजूर, मुकेश कुमार महतो, कुंदन कुमार सिंह, मौसमी नागेश, राधा गोविंद नागेश, कानू रान नाग, प्रकाश कुमार, संगीता कुमारी, रजनीश कुमार, शिवेंद्र, संतोष कुमार चौधरी, रोहित सिन्हा, शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव, अमित कुमार, राहुल जी आनंद जी, इंद्रजीत सिंह, शिशिर कुमार सिंह, राजीव कुमार सिंह, रामकृष्ण कुमार, प्रमोद राम, अरविंद कुमार सिंह, विकास कुमार, मनोज कुमार, सुदामा कुमार, कुमुद कुमार.