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34वां नेशनल गेम्स घोटाला : हाई कोर्ट ने क्यों दिए CBI जांच के आदेश, पढ़ें HC के डबल बेंच के महत्वपूर्ण ऑब्जर्वेशन

Ranchi : झारखंड हाईकोर्ट ने 34 वें नेशनल गेम्स घोटाले की जांच करने का आदेश CBI को दिया है. नेशनल गेम्स के आयोजन में वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाते हुए प्रार्थी सुशील सिंह (मंटू) और पंकज यादव ने झारखंड हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. साथ ही वर्ष 2010 में खेल कूद की संस्था से जुड़े भोला नाथ सिंह ने भी एक प्राथमिकी दर्ज करवायी थी. क़रीब एक दशक की न्यायिक प्रक्रिया के बाद हाईकोर्ट ने पिछले दिनों राष्ट्रीय खेल घोटाले की जांच का आदेश दिया हैं. CBI अब इस मामले की जांच करेगी और घोटाले की हर परत खुलेगी. अपनी इस खबर के ज़रिए हम हाईकोर्ट द्वारा नेशनल गेम्स घोटाले की जांच के आदेश में जो महत्वपूर्ण ऑब्जर्वेश पाये गये है, उसे प्रकाशित कर रहे हैं.
  1. हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए ऑर्डर शीट में कहा गया है कि दस्तावेजों के अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि 34 वां राष्ट्रीय खेल आयोजन करने के लिए जिस कमेटी को बनाया गया था. उसके हेड तत्कालीन मुख्यमंत्री थे. जो वर्तमान मुख्यमंत्री के भी पिता हैं. कमेटी के सदस्यों की सूची देखने पर पता चलता है कि नौकरशाह इसके सदस्य थे. आज की तारीख में उस कमेटी के सदस्य के रूप में मौजूद नौकरशाह काफी ऊंचे ओहदे पर हैं. क्या ऐसे में किसी कोर्ट के लिए ऐसा करना उचित नहीं है कि लोगों का विश्वास बनाए रखने और सामाजिक न्याय के लिए वह इस मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दें. यह मामला एक बहुत बड़ी राशि से जुड़ा हुआ है. जिसका प्रयोग खेल सामग्री के खरीद के लिए हुआ. इस मामले में चार्ज शीट भी दायर की गई है.
  2. इस मामले में पुलिस और नौकरशाही के बड़े-बड़े अफसरों के साथ-साथ बड़े-बड़े नेताओं की संलिप्तता दिखती है.
  3. कोर्ट का यह मानना है कि आपराधिक मामलों में अनंत काल तक अनुसंधान करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. ऐसे मामलों का अनुसंधान जल्द से जल्द किया जाना चाहिए. मगर इस मामले में कोर्ट के द्वारा आदेश पारित करने के बावजूद भी अनुसंधान चल ही रहा है. यह अनुसंधान करने वाली एजेंसी पर एवं आला पदाधिकारियों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है. कोर्ट को यह जानकारी दी गई है कि निगरानी कांड संख्या 49/2010 की जांच कर रही है. इस मामले में एक वरीय पुलिस पदाधिकारी की भूमिका पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा किया गया है जो निगरानी विभाग के मुखिया भी हैं. कोर्ट को यह भी बताया गया है कि खेल समिति के सदस्य बड़े-बड़े नौकरशाह थे, जिसके कारण जांच में विलंब किया जा रहा है.
  4. राजनीति के शीर्ष पर बैठे लोग और बड़े-बड़े नौकरशाहों ने कोर्ट को यह कह कर ठगने का काम किया है कि मेगा स्पोर्ट्स कंपलेक्स की जांच निगरानी विभाग द्वारा करवायी जा रही है. लेकिन निगरानी के ही पदाधिकारी ही कहते हैं कि उन्हें ऐसा कोई भी जांच करने का आदेश प्राप्त ही नहीं हुआ है.
निष्कर्ष
  1. कोर्ट में नीरज सिन्हा का नाम लिए बगैर मगर उनके पद का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की है. अर्थ स्पष्ट है कि नीरज सिन्हा के रहते हुए जांच निष्पक्ष नहीं हो सकती. इसलिए इसकी जांच सीबीआई को दी जाती है.
  2. कोर्ट में बिना किसी का नाम लिये हुए कहा कि नेशनल गेम ऑर्गेनाइजिंग कमिटी के सदस्यों में नौकरशाह भी शामिल थे. जो आज बहुत बड़े पद पर हैं. निष्कर्ष यह कि ऐसी स्थिति में झारखंड निगरानी मामले की सही तरीके से जांच नहीं कर सकती है. इसलिए इसे सीबीआई को दिया जायेगा.
  3. शिबू सोरेन का परिचय वर्तमान मुख्यमंत्री के पिता के रूप में दिया गया है. निष्कर्ष यह कि कोर्ट इशारों में कुछ कह रहा है.
  4. कोर्ट ने कहा है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेताओं और बड़े नौकरशाहों ने कोर्ट को गुमराह किया है कि मेगा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स की जांच निगरानी कर रही है.
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