Deepak Ambastha
वर्ल्ड ट्रेड टावर 26/11 हमले के बाद काबुल एयरपोर्ट पर ब्लास्ट दूसरा मौका है, जब आतंकियों ने अमेरिका को हिलाकर रख दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को सवालों के जवाब देते नहीं बन रहा है. दोहा समझौता लागू कराने और अफगानिस्तान से बाहर निकलने की जल्दबाजी ने न केवल अमेरिकी राष्ट्रपति की काबिलियत पर सवाल खड़े कर दिये हैं, बल्कि अमेरिकी साख को भी भारी चोट पहुंचायी है.
अमेरिकी वापसी प्रक्रिया के साथ उसके सामने जो चुनौतियां उठ खड़ी हुई हैं, फिलहाल उसका कोई समाधान नजर नहीं आता है. काबुल एयरपोर्ट ब्लास्ट के 36 घंटे के भीतर अमेरिका ने आईएसआईएस खुरासान के नंगरहार ठिकाने पर ड्रोन हमला किया है और दावा कर रहा है कि उसने एयरपोर्ट ब्लास्ट के मास्टरमाइंड को मार डाला है. हालांकि अमेरिकी दावे की अब तक किसी अन्य सूत्र से पुष्टि नहीं हुई है.
एयरपोर्ट ब्लास्ट में 103 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी. मरने वालों में 13 अमेरिकी मरीन सैनिक भी थे. हालांकि आईएसआईएस ने दावा किया था कि उसके हमले में 170 लोग मारे गये हैं. अफगानिस्तान सिर्फ अमेरिका के लिए नहीं पूरी दुनिया के लिए चुनौती है विशेषकर भारत के लिए.
ताजा सूरत ए हाल यह कि एयरपोर्ट ब्लास्ट के तार भारत के केरल राज्य से भी जुड़ रहे हैं और यह सूचना अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसियों की है तो इसे हलके में भी नहीं लिया जा सकता है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार के पतन के बाद तालिबान का जो कब्जा हुआ है, उस कब्जे के पीछे पाकिस्तान खुले रूप से और चीन पाकिस्तान के पीछे खड़ा होकर तालिबान की मदद करता रहा है. अफगानिस्तान में पाकिस्तान आईएसआईएस खुरासान तालिबान अल कायदा और हक्कानी नेटवर्क के साथ गठजोड़ कर भारत के लिए परेशानी खड़ी करने की योजनाएं बना रहा है.
पाकिस्तानी सरकार और वहां के मुल्ला मौलवी खुले रूप से न केवल तालिबान का समर्थन कर रहे हैं बल्कि कश्मीर मसले पर अलकायदा से लेकर हक्कानी और तालिबान सभी के दखल की मांग भी कर रहे हैं. भारत के लिए गंभीर संकट का वक्त है. अफगान संकट और पाकिस्तान की भूमिका को लेकर भारत सरकार दुनिया के विभिन्न देशों के साथ संपर्क में है और कोशिश कर रही है कि पाकिस्तानी चाल को नाकाम किया जाये, पाकिस्तान को बेनकाब किया जाए. इससे अलग हटकर अमेरिका की चुनौती है जिसके सामने अपना दबदबा बनाए रखने की बात उठ खड़ी हुई है. 26/11 की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अमेरिका और आईएसआईएस या अलकायदा एक दूसरे के जानी दुश्मन हैं और अब एयरपोर्ट ब्लास्ट ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सामने उनकी कुर्सी और अमेरिकी प्रभुत्व दोनों के लिए संकट खड़ा कर दिया है.
तालिबान ने अमेरिका को अल्टीमेटम दे रखा है कि 31 अगस्त के बाद अगर अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में रुकती है तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. अमेरिकी सरकार को अभी इससे भी निपटना है.
अमेरिकी जनता अफगानिस्तान से हड़बड़ी में वापसी और अफगानी नागरिकों को बेसहारा छोड़ देने की बाइडेन की योजना से पहले ही नाराज थी और एयरपोर्ट ब्लास्ट के बाद तो वाइडन के प्रति विरोध और भी मुखर हो चुका है अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने यह चुनौती है कि वह अमेरिकी साख और अमेरिकी जनता का भरोसा कैसे बरकरार रखें. यही वजह है कि अमेरिका ने आईएसआईएस के खिलाफ पलटवार किया है शायद जो नुकसान हुआ है उसकी कुछ भरपाई इससे हो लेकिन यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी कि बाइडन के प्रति अमेरिकी जनमानस तत्काल बदल जायेगा.
आज शनिवार से तीसरे दिन अर्थात 31 अगस्त को अमेरिका को अफगानिस्तान से पूरी तरह हट जाने का निर्धारित दिन है और तालिबान फिलहाल जिसकी तरफदारी अमेरिकी प्रशासन भी यह कह कर कर रहा है कि काबुल ब्लास्ट में उसका हाथ नहीं है. उसने अमेरिका को अल्टीमेटम दे रखा है कि 31 अगस्त के बाद अगर अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में रुकती है तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. अमेरिकी सरकार को अभी इससे भी निपटना है.
सवाल यह है कि बाइडेन प्रशासन क्या काबुल एयरपोर्ट ब्लास्ट के बाद 31 अगस्त तक अफगानिस्तान छोड़कर निकल जाने की स्थिति में है? यदि अमेरिका नहीं हटता है तो यह देखना भी दिलचस्प होगा कि तालिबान का रुख क्या रहता है? नाटो संगठन और अमेरिका ने यह चेतावनी जारी की है कि काबुल एयरपोर्ट समेत अन्य स्थानों पर अभी और आतंकी हमले हो सकते हैं. यदि ऐसा हुआ तो क्या अफगानिस्तान में इतनी फजीहत के बाद एक बार फिर नाटो और अमेरिका की अफगानिस्तान में वापसी होगी?
अमेरिकी पत्र-पत्रिकाओं में जो विचार प्रकाशित हो रहे हैं, वह बाइडन प्रशासन के लिए चिंता का विषय हो सकता है. जिस तरह के विचार प्रकट हो रहे हैं, वह तो यही बताता है कि फिलहाल बाइडन प्रशासन ना घर का ना घाट का. जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में राजनीति पढ़ाने वाले स्टीव रॉबर्ट कहते हैं समय आ गया है. बाइडेन प्रशासन समझदार हो जाये, ईमानदार हो जाये. वह हमारे सैनिकों, अमेरिकी नागरिकों के ऋणी हैं. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन का कहना है कि दुनिया भर में सुरक्षा का गारंटर के रूप में अमेरिका की विश्वसनीयता कम हुई है और यह चिंता का विषय है इंडो पेसिफिक क्षेत्र में अमेरिका की पकड़ ढीली हुई है. इस ओर ध्यान देना जरूरी है.
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