Faisal Anurag
किसानों ने उत्तर प्रदेश का चुनाव एजेंडा तय कर दिया है. नौ महीनों के आंदोलन के बाद पहली बार यूपी और दिल्ली दरबार में बेचैनी है. केंद्रीय मंत्री मंडल में ओबीसी हिस्सेदारी के सहारे यूपी में जो माहोल भारतीय जनता पार्टी बना रही थी उसे भी मुजफ्फरनगर की किसान महापंचयत ने फीका कर दिया है. जब किसान बंगाल के चुनावों में भाजपा को हराने की बात कर रहे थे, तब उसे गंभीरता से नहीं लिया गया था. पहली बार देखा जा रहा है कि भाजपा के भीतर से भी किसानों के समर्थन में आवाज उठ रही है. किसानों ने न केवल चुनावी एजेंडा तय किया बल्कि केंद्र सरकार की कारपोरेटपरस्ती के खिलाफ भी मोर्चा को मजबूत बनाने का एलान कर दिया है. किसान नेताओं ने ””””इंडिया फॉर सेल”””” के खिलाफ व्यापक गोलबंदी करने और 2024 में नरेंद्र मोदी सरकार को बेदखल करने का भी एलान किया है. एक तो साढ़े नौ महीने से जारी ऐतिहासक किसान आंदोलन ने कई मुकाम हासिल किए हैं, लेकिन पहली बार दिख रहा है किसानों ने राजनैतिक दृढ़ता का एक स्वर में परिचय दिया है. यह दृढ़ता भाजपा के लिए सिरदर्द से कम नहीं.
किसान नेता राकेश टिकैत साढ़े 9 माह बाद मुजफ्फरनगर आए लेकिन वे अपने घर नहीं गये. उन्होने स्पष्ट किया जब तक तीनों काले कृषि कानून वापस नहीं हो जाते वे घर नहीं जाएंगे, भले ही दिल्ली में उनकी कब्र खोद दी बन जाए. यह वही मुजफ्फरनगर है जहां 2013 में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए और भारतीय जनता पार्टी की 2014 की जीत की राह सुगम हो गयी. अब किसान नेताओं ने साफ किया कि उस दंगे को सुनियोजित तरीके से सत्ता में पहुंचने के लिए कराया गया था. किसानों ने एलान किया कि अबकि हिंदू मुसलमानों के विभाजन के नाम पर राजनीति नहीं होने दी जाएगी. यही नहीं मंच से महेंद्र सिंह टिकैत के जामने के नारे ””””हरहर महादेव और अल्लह हू अकबर”””” को दुहराया गया. जब तक महेंद्र सिंह जीवित और प्रभावी रहे पश्चिम उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिकता का अखाड़ा नहीं बनने दिया. ऐसा जान पड़ता है कि इस एलान के बाद यूपी की राजनीति बदलेगी. लखनऊ के लिए यह बुरी खबर से कम नहीं है.
लेकिन महेंद्र सिंह टिकैत तो 5 लाख किसानों के साथ ही वोट क्लब को घेर कर राजीव गांधी की सरकार की नींद हराम कर दी थी. इस बार तो 17 राज्यों के 15 लाख से अधिक किसान मुजफ्फरनगर पहुंचे. यूपी के मुख्यमंत्री ने सात महीने पहले कहा था कि किसानो में दम है तो वे यूपी में आकर दिखाएं. किसानों ने न केवल दम दिखाया बल्कि यूपी के चुनावी समीकरण को भी प्रभावित कर दिया. यूपी,उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव है और इन तीनों राज्यों में किसानों ने भाजपा और उसके सहयोगियों को हर कीमत पर हराने का संकल्प लिया है. यही संकल्प बंगाल के चुनाव में भी लिया गया. बंगाल में भाजपा की करारी हार के पीछे जो तीन प्रमुख कारण माने गए उसमें किसान आंदोलन की भूमिका भी एक है.
लेकिन राकेश टिकैत ने ””””इंडिया फॅार सेल”””” के केंद्र के एजेंडे के खिलाफ व्यापक संघर्ष का संकेत दे दिया है. यह पहला अवसर है जब किसानों ने व्यपक आर्थिक सवालों को गंभीरता से उठाया है. राकेश टिकैत ने अडानी अंबानी को सरकारी संपत्तियों को दिए जाने को खतरनाक कदम बताया. एफसीआई के गोदाम, बंदरगाह के बेचे जाने का प्रभाव मछली पालन और नमक के किसान पर होगा. ये पानी भी बेचेंगे, रेल, बिजली, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान, सड़कें प्राइवेट कंपनियों को बेच दिए जा रहे हैं. अब खेती-बाड़ी भी इन कंपनियों को बेचने की तैयारी है. इस के कारण अंबेडकर का संविधान खतरे में हैं. इस सेल के खिलाफ किसान मजदूरों के साथ मिल कर आंदोलन करेंगे और संपत्तियों को बेचने वालों को राजनैतिक सबक देंगे.
एक साथ किसानों ने मिशन यूपी के साथ ही मिशन दिल्ली का भी संकेत दे दिया है. यूपी में कहा जाता है कि मुजफ्फरनगर के जीआइसी कॉलेज जब कभी भरा है लाखनऊ की सत्ता बदली है. अब यूपी के राजनैतिक संघर्ष में आदित्यनाथ के लिए किसानों ने भी चुनौती पेश कर दी है. इस महापंचायत ने यूपी और उत्तराखंड के सतारूढ़ दल के माथे पर शिकन पैदा कर दी है.
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