मामला पहुंचा अनुसूचित जाति आयोग, आयोग ने अक्टुबर में ही भुगतान करने दिया था आदेश
स्कूल प्रशासन आयोग के आदेश को कर रहा नजरअंदाज, जनवरी से चार बार नोटिस भेज चुका है आयोग
Ranjeet Kumar
Ranchi : कृष्ण कुमार राम पिछले 15 वर्षों से रांची के बरियातू स्थित DAV नंदराज में कार्यरत थे. स्कूल के कैंपस में ही रहते थे. पिछले साल कोरोना संकट काल में अचानक विद्यालय प्रबंधन ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. बकाया राशि मांगने पर विद्यालय के चेयरमैन ने कहा स्कूल कैंपस खाली करें तुरंत भुगतान हो जाएगा. जब कृष्णा ने कैंपस खाली किया उसके बाद भी उनके पैसे का भुगतान नहीं हुआ, पैसे मांगने पर विद्यालय प्रबंधन बहाना बनाकर टाल देता.
कोरोना के नाम पर सैलरी का कुछ अंश काट लिया
कृष्णा कुमार अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं. उन्होंने बताया कि स्कूल प्रबंधन ने मार्च महीने में कोरोना के नाम पर सैलरी का कुछ अंश काट लिया. अप्रैल और मई में भी करीब 40 प्रतिशत सैलरी की कटौती की गई. इतना ही नहीं, जून महीने में प्रबंधन के द्वारा 6 महीने के अवकाश पर चले जाने का दबाव बनाया गया. धमकी दी गई कि अवकाश में नहीं जाने पर टर्मिनेट कर दिया जाएगा. इस अन्याय के खिलाफ झुकने को तैयार नहीं हुए तो नौकरी से हटा दिया गया.
पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेवारी उनके कंधे पर है
कृष्णा कुमार बताते हैं कि बुजुर्ग माता-पिता सहित पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेवारी उनके कंधे पर है. विगत 15 वर्षों से DAV नंदराज में कार्यरत थे, जिससे परिवार का गुजारा चलता था. कोरोना के इस संकट काल में प्रबंधन ने उनकी नौकरी ले ली. अब उनका और उनके परिवार का क्या होगा. यह बताते हुए उनकी आंखें डबडबा जाती है. गला रुंध जाता है. कोरोना के समय में वैसे ही तनख्वाह काट कर दी जा रही थी. अब तो नौकरी ही चली गई. भविष्य में कोई दूसरी नौकरी मिलेगी, इसकी भी संभावना कम है. एक साल से अधिक समय से बेरोजगार है. परिवार के सामने भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
कृष्णा राम ने अनुसूचित जाति आयोग का दरवाजा खटखटाया
विद्यालय प्रबंधन के रवैयै से थक हार कर कृष्णा राम ने अनुसूचित जाति आयोग का दरवाजा 6 अगस्त 2020 को खटखटाया. दोनों पक्षों को सुनवाई के बाद 7 अक्टुबर 2020 को आयोग के द्वारा विद्यालय प्रबंधन को यह आदेश दिया गया कि कृष्णा राम के सभी बकाया का भुगतान कर दिया जाए. लेकिन विद्यालय प्रबंधन ने आयोग के आदेश को ही धत्ता बताते हुए कृष्णा को ही फर्जी बिजली और पानी के बिल के द्वारा फसाने की कोशिश की. आर्थिक और मानसिक रूप से टुट चुके कृष्णा फिर से आयोग के पास पहुंचे. अनुसूचित आयोग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए विद्यालय प्रबंधन को नोटिस किया. लेकिन आयोग द्वारा निर्धारित तिथी को विद्यालय के प्रतिनिधि अनुपस्थित रहे. इसके बाद आयोग के द्वारा विद्यालय को तीन और नोटिस भेजे जा चुके है. लेकिन ऐसा लगता है विद्यालय अनुसूचित आयोग के नोटिस का जवाब देना जरूरी नही समझता.
विद्यालय द्वारा की गई नाइंसाफी से त्रस्त होकर कृष्णा कई नेताओ के पास अपनी फरियाद कर चुके है. उन्होने शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो से अपनी पीङ़ा बताई थी, शिक्षा मंत्री ने उन्हे मदद का भरोसा दिया था. इसी बीच उन्हे ईलाज के लिए चेन्नई जाना पडा.
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विद्यालय प्रबंधन ने पूरे मामले पर सरकार को ही दोषी ठहराया
इस संबंध में पूछे जाने पर विद्यालय प्रबंधन ने सरकार को दोषी ठहराया. विद्यालय प्रबंधन के अनुसार सरकार की नीतियों की वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस वजह से पिछले 3 महीने में 5 से 6 कर्मचारियों की छंटनी की गई है. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि विद्यालय जब छात्रों से ट्यूशन फीस ले रहा है, तब कर्मचारियों को नौकरी से हटाना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता. इसके बाद भी जिस कर्मचारी को नौकरी से हटाया उसका बकाया राशि को नहीं देना, अमानवीय ही कहा जाएगा. जबकि विद्यालय के चेयरमैन की गिनती राज्य के बङे व्यापारियों में की जाती है. विद्यालय के अतिरिक्त आभूषण और अन्य क्षेत्रों में भी उनका कारोबार फैला हुआ है.
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