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खतरनाक है भाषाई वैमनस्य, गरमाई देश की राजनीति

Nishikant Thakur

 

बिहार के एक विकृत मानसिकता वाले तथाकथित पत्रकार और नेता ने पिछले वर्ष भारतीय अखंडता को तोड़ने-मरोड़ने और  भड़काने के उद्देश्य से एक नितांत फर्जी वीडियो बनाया कि बिहार से मजदूरी करने गए  व्यक्तियों के साथ दक्षिण भारत के राज्यों  में  उन्हें अपमानित कर उनके साथ मारपीट की जाती है. लेकिन दोनों राज्यों की पुलिस ने जब इसकी जांच की तो वीडियो नितांत फर्जी और दो राज्यों के बीच दुराग्रह पैदा करने वाला पाया गया . कुछ उपद्रवियों ने खुलकर उग्रता का प्रदर्शन किया, लेकिन जब  पानी सिर के ऊपर  से गुजरने लगा तो मामला अदालत पहुंचा. फिर उस तथाकथित अपराधी को सजा भी हुई. पर अब जेल से बाहर निकलकर  वह बिहार में अपनी नेतागिरी शुरू कर चुका है. जातीय और भाषाई दुराग्रह से मारपीट करना और समाज को भड़काना तो कोई इस तरह के व्यक्ति से ही सीखे. यही हाल महाराष्ट्र और विशेष रूप  से मुंबई का पिछले कई वर्षों से कर दिया गया है. केवल भाषाई लड़ाई द्वारा दुनिया भर से अपने रोजगार के लिए आए लोगों को इसलिए डराया, धमकाया जाता है कि वह वहां की भाषा नहीं जानते. इसी प्रकार भाषा नहीं जानने वालों के नाम पर बिहार में भी देश को  बांटने का  तथाकथित नेताओं द्वारा प्रयास  किया जाता रहा है. अब मुंबई से  भी इसी तरह की वारदात के सामने आने  से कटुता बढ़ती नजर आ रही है. भारतीयों की याददाश्त छोटी होती है, लेकिन चाहे वह जो कुछ भूले या याद रखे , दोस्ती और हमदर्दी के इन सलूकों को वह कभी नहीं भूलता. 

 


मुंबई में पिछले दिनों मीरा रोड पर एक दुकानदार के साथ मनसे के कार्यकर्ता द्वारा जो मारपीट की गई, वह तो निंदनीय और शर्मनाक है. इसके लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कहा है कि दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा. इससे समाज में सरकार के प्रति विश्वास तो बढ़ा ही होगा, लेकिन जिस प्रकार घटना के अगले दिन हजारों व्यापारियों के साथ-साथ महिलाओं ने प्रदर्शन किया और नारेबाजी की उसका संदेश देशभर में पहुंच ही गया है. अब तो जो बात सामने आ रही है, उससे  ऐसा कतई नहीं लगता कि यह मामला तत्काल शांत होने वाला है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि भाषा के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जाएगी और उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. दूसरी ओर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए मनसे नेता अविनाश जाधव ने प्रदर्शन को भाजपा प्रायोजित बताया और कहा कि भाजपा इसे तूल  दे रही है. 

 

मराठी-गैरमराठी में झगड़ा करवाकर  वह भाईचारा खराब करना चाहती है. जाधव ने कहा कि हर मनसे कार्यकर्ता प्रत्येक मराठा माणुस के घर पर जाकर मोर्चे में शामिल भाजपा के लोगों की सच्चाई बताएंगे. अच्छी बात है कि सरकार और विपक्ष  मिलकर इस मसले को हल करना चाहती है ,अन्यथा  इसका दूरगामी परिणाम क्या होगा? क्या दूसरे राज्यों से लोगों का महाराष्ट्र आना बंद हो जाएगा?  क्या राज्य के उद्योग धंधे बंद हो जाएंगे? यदि मनसे की सोच इस तरह की आगे भी रही तो  महाराष्ट्र में जो इतना उद्योग विकसित हुआ है, सभी बाहरी लोग  निकाल दिए  जाएंगे ? ऐसा इसलिए कि महाराष्ट्र के किसी भी  उद्योग में यदि आप जाते है तो विभिन्न भाषाओं में बात करने वाले  व्यक्ति  आपको मिल  जाएंगे . मराठा शब्द से ही गौरवमई इतिहास ताजा हो जाता है . इतिहास मराठों की बहादुरी और मानवता की रक्षा से भरा पड़ा है, उन बहादुर और गौरवमई राज्यों के लोग चर्चा में आने के लिए इस तरह अधीर हो जाएंगे ! इस बात पर तत्काल विश्वास नही होता, लेकिन जब सच्चाई धीरे धीरे सामने आने लगती है तो डरना सामान्य व्यक्ति  के लिए स्वाभाविक हो जाता है. 

 

यह उन्हीं वीर मराठाओं  की धरती है, जहां के योद्धाओं ने अहमद शाह अब्दाली से पानीपत का ऐतिहासिक युद्ध किया  था. लेकिन अब उन्हीं वीर मराठाओं की धरती पर भाषाई दुराग्रह से बगावत के नाम पर मानवता को शर्मसार करेंगे ? वैसे कभी भी समाज में कुछ विरले होते हैं जो गन्दगी फैलाकर अपना नाम किसी प्रकार रोशन करना चाहते हैं. सर्वसम्पन राज्य की राजधानी मुंबई है जिसे देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है. जिसने मुगलकाल और अंग्रेजी शासन  काल में भारतीय अस्मिता के लिए सदैव अपने बलिदान को ही चुना , उस प्रदेश की राजधानी में मराठी नहीं जानने वालों के साथ सरेआम मारपीट की जाएगी- इस तरह  सोचना भी उस राज्य का अपमान है. लेकिन ऐसा हुआ है.

भारतीय संविधान प्रत्येक भारतीय को यह अधिकार देता है कि वह अपनी रोजी --रोटी के  लिए अपनी योग्यता के आधार  पर किसी भी राज्य में जाकर  जीविकोपार्जन के लिए आजाद है और यही विश्व की नीति भी है. लेकिन, अब तक तो जो विदेशों में जीविकोपार्जन के लिए गए भारतीयों के साथ किया जाता रहा था, अब देश में भी एक राज्य से दूसरे राज्य में अपने रोजगार के लिए गए लोगों के साथ  इस प्रकार की घटना घटेगी ऐसा सोचना ही मन को विचलित कर देता है. 
पिछले कुछ दिनों से अमेरिका में उच्च शिक्षा के लिए गए भारतीय छात्रों के साथ भेदभाव किया जा रहा है. इससे पहले भी कई देशों में श्वेतों-अश्वेतों के आधार पर भारतीयों के साथ अत्याचार करने की जानकारी आए दिन मिलती रहती थी.  अब सरेआम अपने देश में ही भाषा के नाम पर या हिन्दी गैर हिंदी भाषियों के नाम पर मारपीट की जा रही है. यह किसी भी दशा में उचित नहीं माना जा सकता . लेकिन ऐसा हुआ इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? वैसे सरकार अब सतर्क है और वह इस प्रकार के  गुंडों और मवालियों से निपटने के लिए तैयार है. पर जिस तरह की घटना घटी है वैसी घटना दुबारा न हो इस पर कड़ाई से विचार किया जाना चाहिए, यही भविष्य के लिए और विकसित तथा विकासशील राज्यों के लिए उचित है. 

 

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1948 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश एस के धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग का गठन किया था,  जिसने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की सिफारिश की थी. इसके बाद पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभभाई  पटेल तथा पट्टाभि सीतारमैया की एक जेपीसी बनाई गई. इस समिति का काम राज्यों के  गठन का मुख्य आधार खोजना था. इस समिति ने भी भाषाई आधार पर राज्यों  को बांटने का विरोध किया और आर्थिक  और प्रशासनिक आधार पर सीमांकन करने की सिफारिश  की थी. फिर भी देश में भाषा के आधार पर राज्यों का गठन किया गया. आज देश में  केंद्र शासित राज्यों को मिलकर 28 राज्य हैं. 1951 की जनगणना के मुताबिक, 844 भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन मात्र 91 प्रतिशत लोग 14 भाषाएं ही बोलते हैं.19 दिसंबर 1953 को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया. इस तीन सदस्यीय आयोग में जस्टिस सैय्यद फजल अली, हृदयनाथ कुंजरू और सरदार के. एम. पणिक्कर थे. इस आयोग ने 1955 में अपनी सिफारिशें की थीं. 1956 में आयोग की रिपोर्ट को पारित कर दिया गया, परन्तु आज भी हमारा भारतीय समाज भाषाई दुराग्रह से पीड़ित है और मारपीट व भाषाई विवाद को चुपचाप सहकर अपमानित होते रहते हैं. भविष्य में अब ऐसा न होने पाए इसपर राज्य सरकारों सहित केंद्र सरकार को भी कठोर कानून बनाना चाहिए. यदि इस प्रकार के लोगों पर लगाम नहीं कसी गई, तो इसका बुरा परिणाम देश को भविष्य में देखना पड़ेगा. जिससे फिर सम्भल पाना मुश्किल होगा. ऐसे विवाद देश में गृहयुद्ध भी भड़क सकते हैं.

 

 

डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ट पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं.

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