Surjit Singh
इलेक्ट्रॉल बॉण्ड के कुछ तथ्य
दवा बनाने वाली 35 कंपनियों ने 945 करोड़ रुपये का राजनीतिक चंदा दिया.
22 कंपनियों ने राज्यों में जिस दल की सरकार है, उसे चंदा दिया है.
फार्मा कंपनियों ने भाजपा को 394 करोड़, टीआरएस को 328 करोड़ और कांग्रेस को 115 करोड़ रुपये का चंदा दिया.
अब अपनी स्थिति को समझिए
पिछले कुछ सालों में खून जांच, शुगर जांच आदि की फीस दोगुनी हुई है या नहीं.
बुखार, गैस, शुगर, कैंसर, पेन कीलर की दवाओं की कीमतें दो से तीन गुनी बढ़ी या नहीं.
अस्पतालों में बेड चार्ज, आईसीयू चार्ज, डॉक्टर की फीस दो से तीन गुनी बढ़ी या नहीं.
अब जरा सोचिए
आपको महंगी दवाईयां मिल रही हैं. अस्पताल का खर्च बढ़ गया है. किसी परिवार का कोई व्यक्ति गंभीर रुप से बीमार हो गया तो उस परिवार का कर्ज के दलदल में फंसना तय. महंगी दवाईयों के कारण घर के खर्चे कम करने पड़ रहे. बच्चों की पढ़ाई में दिक्कत आ रही है. क्या यह बात हमारी-आपकी सरकारों को नहीं पता? या वो सब कुछ जान करके चुप रहें ! कंपनियों को रोका क्यों नहीं जाता! मनमानी कीमत तय करने से किसके फायदा मिल रहा? आम लोगों को दवाईयों की महंगाई से बचाने की जिम्मेदारी किसकी है? क्या इलेक्ट्रॉल बॉण्ड के रुप में करोड़ों रुपये लेकर कंपनियों को इस बात की छूट दे दी गई कि आम जनता को लूट लो. आम जनता के शरीर से लहू की आखिरी बुंद तक. आखिर कंपनियों के पास चंदा देने के लिए इतना पैसा कहां से आ रहा था ? हमसे-आपसे ही लूट करके, हमारी-आपकी खून चूस करके ही तो कंपनियां करोड़ों रुपये चंदा के रुप में दे रही थी. चंदे के बदले कंपनियों को हर तरह से लूटने की छूट दे दी गई. सवाल यह उठता है कि जिम्मेदार कौन है ?
आम लोगों से लूटे गए पैसे में से कंपनियों ने जो चंदा दिया है, उसमें सबसे अधिक 328 करोड़ रुपया का चंदा भाजपा को मिला है, लेकिन बाकी दलों को भी मिला है. किसी दल ने चंदा लेने से इंकार नहीं किया. यह ठीक है कि भाजपा अभी केंद्रीय सत्ता में है, इलेक्ट्रॉल बॉण्ड का कानून भाजपा सरकार ही लायी, जिसे सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक बता चुकी है, खत्म कर चुकी है. यह भी सच है कि केंद्र में भाजपा की सरकार रहते स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इलेक्ट्रॉल बॉण्ड से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक ना करना पड़े, इसके लिए बहाने बनाए. इसलिए कह सकते हैं कि जिम्मेदारी भाजपा की सबसे अधिक है. लेकिन चंदा लेने वाले बाकी दल भी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते. क्या आम लोगों को यह जानने का अधिकार नहीं है कि चंदा के बदले राजनीतिक दलों ने किस कंपनी को कितना लाभ पहुंचाया है. इन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या जनता वोट मांगने वालों से यह सवाल पूछेगी ?