- पांच ने दावा ठोंका, नेता तीन की कर रहे लॉबिंग, धर्मगुरुओं का भी ले रहे सहारा
- एकमात्र महिला प्रत्याशी दयामनी बारला, पर उन्हें किनारे करने में ताकत लगा रहे एक कार्यकारी अध्यक्ष
मुंडा दिशोम खूंटी में कोई ताकतवर मुंडा आदिवासी नेता पैदा न हो
प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के बारे में बताया जा रहा है कि वे खुद को आदिवासियों का बड़ा नेता साबित करने में जुटे हैं. यह सब खेल इसीलिए खेल रहे हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि मुंडा दिशोम खूंटी से कोई ताकतवर मुंडा आदिवासी नेता पैदा हो, ताकि झारखंड में आदिवासियों का वह बड़ा नेता बन जाए. इस खेल में चर्च के पादरियों को भी मोहरा बना रहे हैं.
जानें कांग्रेस के टिकट के लिए कौन-कौन हैं दावेदार
प्रभाकर तिर्की : उरांव जनजाति से हैं. कांग्रेस आदिवासी सेल के अध्यक्ष भी है. झारखंड आंदोलकारी भी रहे हैं. लंबे समय से राजनीति में जगह बनाने की कोशिश में लगे हैं. कांग्रेस में शामिल हुए, तो टिकट की चाहत हुई. अब खूंटी लोकसबा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं. खूंटी संसदीय क्षेत्र मुंडा बहुल इलाका बताया जाता है. लेकिन तिर्की उरांव जनजाति से हैं और ईसाई मिशनरी में भी उनकी गहरी पैठ है.
कालीचरण सिंह मुंडा : कांग्रेस संगठन से लंबे समय से जुड़े रहे हैं. मुंडा समुदाय से हैं, खूंटी संसदीय क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ भी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अर्जुन मुंडा को कड़ी टक्कर दी थी. हालांकि रिकाउंटिंग में कुछ वोटों से हार गये थे. पुराने कांग्रेसी होने के कारण खूंटी इलाके, खास कर मुंडा समुदाय में उनकी अच्छी पकड़ भी है. लंबी अवधि तक कांग्रेस पदाधिकारी के रूप काफी काम किया है.
हाबिल हेंब्रम : सीबीआई के रिटायर्ड अफसर हैं. हाबिल के बारे में खूंटी में चर्चा है कि चर्च के पदाधिकारियों से उनकी अच्छी बनती है. चर्च के पदाधिकारी भी हाबिल को खूंटी से कांग्रेस का टिकट दिलाने की लिए प्रभारी गुलाम अहमद मीर से रांची में मिल कर पैरवी कर चुके हैं. चर्च के पदाधिकारियों को प्रभारी मीर से मिलवाने की व्यवस्था कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ने ही की थी. वैसे कार्यकारी अध्यक्ष इनके नाम की भी पैरवी कर रहे
प्रदीप कुमार बलमुचू : लंबे अरसे तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे प्रदीप कुमार बलमुचू पहले से ही खूंटी लोकसभा से चुनाव लड़ना चाहते हैं. लेकिन खूंटी लोकसभा क्षेत्र में उनका सामाजिक समीकरण नहीं बैठने के कारण कांग्रेस नेतृत्व उनके नाम पर चर्चा नहीं करता. वैसे भी चुनाव लड़ने की चाहत में वे पार्टी छोड़कर आजसू में शामिल हो गये थे. हार गये. काफी दिनों तक भटके, कहीं दाल न गली, तो गिड़गिड़ा कर फिर से कांग्रेस में लौटे. अब चुनाव लड़ना चाहते हैं.
दयामनी बारला : सामाजिक संगठनों से जुड़ी रहीं दयामनी बरला ने हाल ही में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है. 2019 में भी वे खूंटी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मिल कर प्रभावित हुईं. उनकी न्याय यात्रा में शामिल हुईं.अब कांग्रेस से टिकट के लिए अपने संघर्षों के आधार पर टिकट की दावेदारी कर रही हैं. लेकिन उनकी राह में कांग्रेस के एक कार्यकारी अध्यक्ष रोड़े अटका रहे हैं.
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