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मधुपुर उपचुनाव : जामताड़ा बना भाजपा नेताओं का ठिकाना, दलित परिवार के आंदोलन में कर रहे शिरकत

Jamtara : भले ही उपचुनाव मधुपुर विधानसभा के लिए होना है. लेकिन चुनाव की बिसात जामताड़ा में बिछ रही है. इन दिनों भाजपा के विधायक,सांसद व नेता मधुपुर विधानसभा उपचुनाव के प्रचार में जाने से पूर्व जामताड़ा आना नहीं भूल रहे है.

यहां आकर पीड़ित, दलित परिवार के आंदोलन में शिरकत करते है. जमकर बयानबाजी होती है. इसके बाद ही मधुपुर के चुनाव प्रचार के लिए रूख करते है. लिहाजा अब तक भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, सांसद सुनील सोरेन, विधायक मनीष जायसवाल, अमर बाउरी व अनंत ओझा पीड़ित दलित परिवार से मिलने पहुंचे है.

भाजपा के कार्यकर्ता चिरूडीह के लिए कूच करेंगे- बाबूलाल

जहां पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने जिला प्रशासन और राज्य की सरकार को चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि अगर सरकार व प्रशासन इन गरीबों का जमीन व घर वैधानिक तरीके से वापस नहीं दिलवाती है तो भाजपा के कार्यकर्ता चिरूडीह के लिए कूच करेंगे. इसके बाद इन परिवारों को गांव में ले जाकर बसाने का कार्य करेगी. इस दौरान किसी भी तरह का अप्रिय घटना होता है, तो इसके लिए प्रशासन जिम्मेवार होंगे. वहीं सांसद सुनील सोरेन ने पीड़ित दलित परिवार के लिए चक्का जाम करने की चेतावनी तक दे डाली.

दस दिनों से चल रहा है धरना-प्रदर्शन

बता दें कि पिछले 10 दिनों से नारायणपुर थाना क्षेत्र के चिरूडीह गांव का पांच दलित परिवार अनुमंडल कार्यालय के समक्ष धरना- प्रदर्शन कर रहे है. वह अपनी रैयती जमीन को दबंगों के कब्जे से मुक्त कराने की मांग कर रहे है. दरअसल भाजपा पीड़ित दलित परिवार के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है.

भाजपा पीड़ित दलित परिवार को भुनाने का प्रयास कर रही- इरफान अंसारी

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के विधायक डॉ इरफान अंसारी का आरोप है कि भाजपा पीड़ित दलित परिवार के जमीन विवाद को सुलझाने की मंशा नही रखती है. बल्कि केवल मधुपुर विधानसभा उपचुनाव में पीड़ित दलित परिवार को भुनाने का प्रयास करना चाहती है. इधर जिला प्रशासन भी उक्त मामले को लेकर यह कहती रही है कि चिरूडीह गांव के दो परिवारों के बीच साल 2004 में जमीन की अदला-बदली हुई थी. परंतु साल 2014 में जमीन विवाद हुआ और उस जमीन पर सीआरपीसी की धारा 144 लगी हुई थी.

मधुपुर की चुनावी फिजां मे भी दलित परिवार का जमीन विवाद बना है चुनावी मुद्दा

अब आंदोलन का फलसफां क्या निकलता है. यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा. लेकिन जिस तरह से राजनीतिक बयानबाजी और नेताओं का जमावड़ा लग रहा है. उससे यह स्पष्ट है कि पीड़ित दलित परिवार का जमीन विवाद को भुनाने में राजनीतिक दल कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहते है. इस जमीन विवाद की गूंज मधुपुर की राजनीतिक फिजां मे भी चर्चा का विषय बनता जा रहा है.

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