Ranchi : आरएसएस-बीजेपी की डीलिस्टिंग रैली और आदिवासियों का ध्रुवीकरण करने के विरोध में रांची के मोरहाबादी मैदान में 4 फरवरी को आदिवासी एकता महारैली निकाली जायेगी. लेकिन आदिवासी महासभा के संयोजक देव कुमार धान ने आदिवासी समाज को इस रैली में भाग नहीं लेने की अपील की है. धान का कहना है कि आदिवासी एकता महारैली ईसाइयों द्वारा प्रयोजित है. बंधु तिर्की ने इस रैली को बुलाया है.
बंधु तिर्की सरना धर्म विरोधी कार्य करते हैं
देव कुमार धान ने आरोप लगाया कि 4 फ़रवरी को आयोजित आदिवासी एकता महारैली के आयोजन के पीछे चर्च का हाथ है, इसलिए आदिवासी समाज इस रैली में भाग ना ले. कहा कि 2004 में आदिवासियों के जाति प्रमाण पत्र में सरना धर्म लिखने का प्रावधान था जिसे 2006 मे बंधु तिर्की (ईसाई) के द्वारा हटा दिया गया था. बंधु तिर्की एक तरफ खुद को सरना धर्म का बहुत बड़ा समर्थक और हितैषी कहते हैं, दूसरी ओर वे सरना धर्म विरोधी कार्य करते हैं. बड़ा पर्व और गुडफ़्राईडे के दिन वह खुद को ईसाई मसीही समुदाय का होने का दावा करते हैं.
ईसाईयों के स्कूल या कॉलेज के नाम आदिवासी वीर शहीदों के नाम पर नहीं
देव कुमार धान ने कहा कि ईसाईयों द्वारा संचालित एक भी स्कूल या कॉलेज के नाम आदिवासी वीर शहीदों तिलका मांझी, वीर बुधु भगत, बिरसा मुंडा, सिद्धू कान्हो के नाम से नहीं हैं, इसलिए जो लोग ईसाई धर्म में धर्मांतरित हो गये हैं. वे आदिवासी नहीं है, ईसाई और आदिवासी समाज मे बहुत अंतर है. आदिवासियों के बच्चे के जन्म के बाद छठी किया जाता है , जबकि ईसाईयो के बच्चों के जन्म पर आशीष जल दिया जाता है.
आदिवासी रीति रिवाज और ईसाई रीति रिवाज में बड़ा अंतर
उन्होंने कहा कि आदिवासी धर्म में बच्चों का मुंडन एवं कानबेदी किया जाता है. ईसाई धर्म में बच्चों का मुंडन एवं कानवेदी नहीं किया जाता है . बच्चों का दृढ़ीकरण होता है. आदिवासियों में बच्चे का नामकरण पंचों के द्वारा किया जाता है. ईसाई धर्म में बच्चों का नामकरण फादर के द्वारा किया जाता है. आदिवासी धर्म में मडवा में विवाह किया जाता है .ईसाई धर्म में विवाह चर्च में होता है. आदिवासी धर्म में विवाह ग्रामीणों के द्वारा कराया जाता है. ईसाई धर्म में विवाह पादरी के द्वारा कराया जाता है. आदिवासी धर्म में विवाह में कडसा का उपयोग होता है. ईसाई धर्म में कड्सा उपयोग नहीं होता है आदिवासी धर्म में विवाह को पंच मान्यता देता है. ईसाई धर्म में विवाह को पादरी मान्यता देता है.
आदिवासी धर्म में विवाह का कार्य करम पर्व के बाद शुरू होता है. पूस माह में विवाह वर्जित होता है. ईसाई धर्म में विवाह का कार्य बड़ा पर्व क्रिसमस के बाद शुरू होता है. पूस माह में भी विवाह किया जाता है.आदिवासी धर्म में विवाह की तिथि चांद दिखने के अनुसार तय किया जाता है. ईसाई धर्म में विवाह की तिथि फादर द्वारा ईसाई परंपरा के अनुसार तय की जाती है.
आदिवासी धर्म में समान जाति में विवाह होता है
धान ने कहा कि आदिवासी धर्म में समान जाति में विवाह होता है. ईसाई धर्म में किसी भी जाति में विवाह हो जाता है, केवल ईसाई होना चाहिए आदिवासी धर्म में समान गोत्र में विवाह नहीं होता है. ईसाई धर्म में एक समान गोत्र में विवाह होता है. आदिवासी धर्म का पवित्र स्थल सरना है. ईसाई धर्म का पवित्र स्थल गिरजाघर है.
आदिवासी समाज में मुर्गा की बलि देने की प्रथा है…
उन्होंने कहा कि आदिवासियों के सरना स्थल में मुर्गा की बलि दी जाती है. गिरजाघर में मुर्गा की बलि नहीं दी जाती. आदिवासियों के हर शुभ कार्य में डंडा कटना किया जाता है. ईसाइयों में आशीष जल का उपयोग होता है आदिवासी प्रकृति पूजक हैं .निराकार धर्म बाबा की पूजा करते हैं. ईसाई धर्म में ईसा मसीह की मूर्ति की पूजा की जाती है. आदिवासियों का लिखित धार्मिक ग्रंथ नहीं है. प्रथागत कानून है . ईसाई धर्म में धार्मिक ग्रंथ बाइबिल है.
आदिवासियों का मुख्य पर्व सरहुल सोहराय एवं करम पर्व है. आदिवासी धर्म में गाय बैल पशुधन की सोहराय में पूजा की जाती है . ईसाई धर्म में सोहराय पूजा नहीं की जाती. आदिवासियों का शुभ दिन बृहस्पतिवार है ईसाइयों का शुभ दिन रविवार है. आदिवासियों में अतिथियों को लोटा पानी दिया जाता है. ईसाई धर्म वाले वेटिकन सिटी के दिशा निर्देशों का पालन करते हैं.
अंतिम संस्कार का नियम आदिवासी और चर्च में अलग-अलग
आदिवासी धर्म में मृत शरीर को दक्षिण -उत्तर दिशा में दफनाते हैं .ईसाई धर्म में मृत शरीर को पूर्व -पश्चिम दिशा में दफनाते हैं . आदिवासी धर्म मानने वालों का ईसाई स्कूल में नामांकन नहीं होता है. ईसाई धर्म मानने वालों का ईसाई स्कूलों में प्राथमिकता के आधार पर सबसे पहले नामांकन होता है. ईसाइयों के सामाजिक शैक्षणिक आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से कार्डिनल एवं पादरी हैं. आदिवासी धर्म मानने वाला लड़का यदि ईसाई धर्म मानने वाली स्व जातीय लड़की से विवाह करना चाहता है तो उस पर यह शर्त लगाई जाती है कि वह पहले ईसाई धर्म स्वीकार करे. तभी दोनों का विवाह किया जायेगा.
देवकुमार धान ने कहा कि आदिवासियों और ईसाईयो मे इतने अन्तर होने के बाद भी ईसाई धर्म में धर्मांतरित लोग खुद को आदिवासी कहते हैं, जो कि गलत है . ईसाई धर्म एवं हिंदू धर्म में धर्मान्तरित लोगों का आदिवासी धर्म से कोई वास्ता नहीं है .
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