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गिरोहबंद पूंजीवाद में निजीकरण का मंत्र - लाभ उनका, नुकसान सरकारी याना हमारा

Mukesh Aseem पीयूष गोयल ने कहा है कि जैसे सड़क पर सबकी गाड़ियां दौड़ती हैं, पर सड़क की जगह तो निजी नहीं होती, वैसे ही रेलवे में भी हो सकता है. अतः भारतीय रेल का निजीकरण कभी नहीं होगा. हंसिये मत, बात सोलह आने सच है. भारतीय रेल का निजीकरण होने से पूंजीपति वर्ग को क्या लाभ ? निजीकरण भारतीय रेल से होने वाली सारी कमाई और मुनाफे का होगा. नुकसान, घाटे का बोझ तो आगे भी जनता पर ही डालना है. उसके लिए भारतीय रेल को तो सार्वजनिक रखना ही होगा. पूंजीवाद में सार्वजनिक-निजी का रिश्ता ऐसे ही चलता है. एक ओर दो बैंक को निजी करने की योजना पर काम चल रहा है. क्योंकि अब ये निजी पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने में सक्षम नहीं रहे. अब इनकी जमीन, इमारत और प्रशिक्षित कर्मचारी निजी क्षेत्र को अधिक लाभ दे सकते हैं. दूसरी ओर 16 मार्च को एक नए सरकारी बैंक अर्थात DFI खोलने का फैसला भी हो गया. इस बैंक में छोटे मोटे लोग जमा भी नहीं कर पायेंगे. जिन पूंजीपतियों के पास अतिरिक्त पूंजी है, जिसे वे कहीं लाभ के काम में निवेश नहीं कर पा रहे, वे ही जमा करेंगे और उन्हें इसके ब्याज पर टैक्स भी नहीं देना पड़ेगा. इस बैंक में जमा पूरी तरह सुरक्षित होगी. रिजर्व बैंक पीएमसी की तरह नहीं बोलेगा. 10 हजार से ज्यादा नहीं निकाल सकते. सिर्फ 5 लाख का ही बीमा है. वगैरह. यहां अमीर लोगों का पैसा जमा होगा, तो फुल गारंटी मांगता है! ये 3 लाख करोड़ रु के लोन बांटेगा पूंजीपतियों को. वो NPA होकर डूब गए तो जनता है चुकाने को. नुकसान सरकार देगी. कहां से जनता से वसूले गये टैक्स में से. जमा करने वालों को तो फुल गारंटी है ही. अर्थात दोनों तरफ से पूंजीपतियों की पौ बारह! ये बैंक इन पूंजीपतियों के लिए विदेशी मुद्रा का लेन-देन करेगा, तो उसमें भी 5000 करोड़ रु तक के नुकसान की ज़िम्मेदारी सरकार ने अपने सिर ले ली है. किसी संपत्ति को इसके जरिये ट्रांसफर किया जायेगा, तो उस पर स्टैंप ड्यूटी भी नहीं लगेगी. असल में कहिए तो आर्थिक संकट ऐसा है कि एक पूंजीपति दूसरे को कर्ज-उधार देने को तैयार नहीं. पता नहीं कहां पैसा डूब जाए. तो सरकार दोनों के बीच में बिचौलिया बनने जा रही है. कर्ज लेने वाला न चुका पाया, तो कर्ज लौटाने की ज़िम्मेदारी सरकार की. अर्थात देश की जनता की! कुछ लोग कहेंगे सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसा, तो फिर निजीकरण का विरोध क्यों करना चाहिए? तो जनाब, सिर्फ निजीकरण का विरोध काफी नहीं. इस आधे-अधूरे निजी पूंजी के लिए चोर दरवाजे वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बजाय पूर्ण समाजीकरण के लिए लड़ना चाहिए. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.

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