Lagatar Desk: स्त्री और पुरुष इन्हीं दो शब्दों से हम समाज को बांध देते हैं, लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि कुछ लोग ऐसे हैं जो समाज के बनाये इन दायरों में नहीं आते, जिन्हें हम ट्रांसजेंडर या किन्नर भी कहते हैं. एक ट्रांस महिला वह होती है जो पुरुष के रूप में पैदा तो होती है, लेकिन महिला के रूप में पहचानी जाती है. वैसे ही एक ट्रांस पुरुष वह होता है जो महिला के रूप में पैदा होता है, लेकिन पुरुष के रूप में पहचाना जाता है. ऐसे लोगों को समाज में तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी गयी है. भारत में हाल के दिनों में इस समुदाय को कई तरह की मान्यताएं दी गयी हैं, लेकिन कई ट्रांसजेंडर आज भी समाज में हीन भावना का सामना कर रहे हैं.
समाज के साथ-साथ घर वाले भी करते हैं बुरा बर्ताव – बेबो किन्नर
झारखंड के जमशेदपुर स्थित गोलमुरी की रहने वाली बेबो किन्नर ने बताया कि आज भी लोग उनका इस्तेमाल अपने फायदे के लिये करते हैं. जब लोगों को हमसे 1 रुपये का सिक्का चाहिए होता है, तो वो हमारे पास आते हैं, वे हरे कपड़े में लपेटकर सिक्का ले जाते है. लेकिन जब हम लोगों के पास मदद के लिये जाते है तो वो हमारी मदद नहीं करते. कई बार पुलिस थाने में भी हमारे साथ अलग तरह का व्यवहार किया जाता है और हमेशा ये अहसास कराया जाता है कि हम समाज से अलग है. बेको किन्नर ने बताया कि हम किन्नरों को समाज में हमेशा से भेदभाव का सामना करना पड़ा है. समाज के साथ-साथ ये भेदभाव घर से शुरू होता है. तभी तो किन्नर समुदाय के लोग छोटी उम्र में ही घर से भाग जाते हैं. बाहरी दुनिया का बुरा बर्ताव, हिंसा और घरवालों की अनदेखी हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर डालती हैं. इस वजह से हम अपने ही घर में पराया सा महसूस करते हैं. बेबो किन्नर ने बताया कि यह भेदभाव इस कदर है कि आज भी इस समुदाय के लिए स्कूल, कॉलेज, स्वास्थ्य सुविधा नहीं है. इसके अलावा हमे सार्वजनिक स्थल पर जाना, घर खरीदना या किराए पर लेना, सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल, नौकरियों और नागरिक के तौर पर जरूरी दस्तावेज लेने का हकदार नहीं माना जाता.
संजना किन्नर अपने समुदाय के लिए कर रही काम
जमशेदपुर के कदमा की रहने वाली संजना किन्नर समाज में हीन भावना का सामना करते हुए अपने समुदाय के लोगों के लिए कई तरह का सामाजिक काम करती हैं. कोरोना काल के दौरान भी उन्होंने किन्नर समुदाय तक राशन पहुंचाने और मास्क का वितरण करने का काम किया था.
ट्रांसजेंडर और कानून
भारत में हाल के दिनों में अब कई लोग सामने आये हैं, जो इस समुदाय के अधिकारों के लिए खुलकर आवाज उठाने लगे हैं. वर्तमान मय में भारत में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए कानूनी अधिकारों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है. भारत में ट्रांसजेंडर लोग अब महिला, पुरुष या ट्रांसजेंडर के रूप में अपनी पहचान कायम रख सकते हैं. अपने आधिकारिक दस्तावेजों में भी इसका उल्लेख करने की मान्यता उन्हें प्राप्त है. साल 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर के रूप में पहचान की मान्यता प्रदान की थी. इनके साथ शिक्षा, काम, स्वास्थ्य देखभाल, आवास और अन्य मूलभूत अधिकारों को प्राप्त करने में उत्पन्न होने वाली परेशानियों के समाधान के लिए कदम आगे बढ़ाया था.
राजनीतिक पार्टियों के मेनिफेस्टों में इस समुदाय का जिक्र नहीं
साल 2013 में ट्रांसजेंडर समुदाय को पहली बार अपनी अलग पहचान मिली और इनके हक और अधिकार की भी बात की गई. 2019 में ट्रांसजेंडर पर्सन (अधिकार संरक्षण) कानून बना, 2020 में ट्रांसजेंडर काउंसिल का गठन किया गया. इन सभी कानून और नीतियों ने ट्रांसजेंडर समुदाय को उनका हक, अधिकार और सेवाएं मिले इसका माहौल पैदा किया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर आज भी कई ऐसी ट्रांसजेडर महिलाएं हैं जिन्हें इन कानूनों की न तो जानकारी है और न ही समझ. साथ ही इस समुदाय की तादाद भी काफी कम है . यही वजह है कि आज भी राजनीतिक पार्टियों के मेनिफेस्टों में इस समुदाय के लिए कुछ नहीं होता. चूंकि समाज में इनके वोटर काफी कम हैं.
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