Hariram Mishra

नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा 74वें गणतंत्र दिवस पर पूर्व रक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया. यह आम धारणा है कि इन पुरस्कारों को सत्तासीन पार्टी द्वारा अपने लोगों, वैचारिक सहयोगियों को ही अमूमन दिया जाता है. लेकिन, मोदी सरकार द्वारा जिस तरह से यह पुरस्कार मुलायम सिंह यादव को दिया गया, उससे कई सवाल पैदा हुए हैं. क्या मुलायम सिंह यादव संघ परिवार के वैचारिक सहयोगी थे और इस सम्मान द्वारा संघ परिवार अपने इस वफादार ‘सहयोगी’ को श्रद्धांजलि दे रहा है? या फिर यह सम्मान 2024 के लोक सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश में पिछड़ों के बीच जातिगत और सियासी समीकरण सेट करने की भाजपा की एक ‘ठोस’ कवायद है?
एक तरह से देखा जाये तो यह दोनों है. भाजपा के पास इस समय उत्तर प्रदेश में 66 लोकसभा सीटें हैं और 2024 में यह प्रदेश में हार चुकी चौदह सीटों को भी जीतने के लिए कमर कस चुकी है. इसके लिए भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा स्वयं इन लोकसभा सीटों पर ‘कैम्प’ कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा का वोट प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले बढ़ गया हो, लेकिन समाजवादी पार्टी ने भी वोट बटोरने में बड़ी कामयाबी हासिल की थी और अपनी स्थापना के बाद, अब तक का सर्वोत्तम प्रदर्शन किया था. चूंकि लोकसभा में संख्या बल के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा प्रतिनिधि देता है, इसलिए भाजपा इस प्रदेश के मतदाताओं पर अपनी मजबूत पकड़ बनाये रखना चाहती है.
उत्तर प्रदेश में लगभग 52 फीसद आबादी पिछड़े समुदाय की है. मुलायम सिंह यादव अपने जीवनकाल में पिछड़ों की एक बड़ी आबादी का आभासी प्रतिनिधित्व करते थे. हालांकि उनके जीवनकाल में ही 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी यह आभासी छवि टूट गई और नरेंद्र मोदी ने अपने को पिछड़ी जाति का नेता बताकर उत्तर प्रदेश के पिछड़ों को अपने साथ कर लिया था. आज पिछड़ों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ खुलकर खड़ा है. प्रदेश के पिछड़ों पर अपनी पकड़ को और पुख्ता करने के लिए मुलायम सिंह यादव जैसे ‘प्रतीक’ को इस सम्मान के लिए चुना गया.
लेकिन, बात इतनी ही नहीं है. यह मामला इससे भी ज्यादा गहरा है. इसे समझने के लिए मुलायम सिंह यादव का सियासी अतीत देखना चाहिए. अपने आरंभिक दिनों में मुलायम सिंह यादव सोशलिस्ट पार्टी की राजनीति किया करते थे. जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के वैचारिक नक्शेकदम पर चलते हुए उन्होंने न केवल उत्तर प्रदेश के पिछड़ों को जातीय अस्मिता के सहारे गोलबंद किया, बल्कि मंडल कमीशन के लागू होने के बाद पिछड़ों की जातिगत अस्मिता को खूब खूब धार दी. इसी जातिगत अस्मिता को हिंदुत्व राजनीति ने प्रयोग करते हुए पिछड़ों के बीच काम करके एक मजबूत स्थान बनाया. अस्मितागत अवसरवाद की बेल उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की ही देन थी, जिसे संघ ने अपने आधार को मजबूत करने में इस्तेमाल किया.
कारसेवको पर गोली चलाने का आदेश देने को अपनी गलती मान चुके मुलायम सिंह यादव इस देश में जय प्रकाश नारायण और लोहिया की ‘गैर कांग्रेस’ वाद की राजनैतिक ट्रेनिंग वाले नेता थे. लिहाजा यह बहुत स्वाभाविक है कि वह भाजपा के पसंदीदा वैचारिक सहयोगी थे. संसद के भीतर मोदी जी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना करना इसी ट्रेनिंग की एक सहज ‘इच्छा’ और अपने जातीय आधार को आगे कहां रहना है इसका ठोस इशारा थी. अब सत्ता अपने इस वैचारिक शुभेच्छु को इस सम्मान से नवाज रही है तो यह बहुत स्वाभाविक बात है. मुलायम सिंह यादव वैचारिक तौर पर संघ परिवार के निकट थे, इसका सुबूत इस तथ्य से थी मिलता है कि उनका जातीय समर्थक संघ की हिन्दूराष्ट्र की संकल्पना के खिलाफ कभी अभियान नहीं चलाता. उसे बस ठेका, पट्टा और सरकार के भ्रष्टाचार में भागीदारी और प्रतिनिधित्व चाहिए. संघ यह सब दे सकता है. यही लाइन संघ परिवार के हिंदुत्व दर्शन के लिए इस समुदाय में जगह बनाती है. इसका आधार मुलायम सिंह यादव ने ही उत्तर प्रदेश में तैयार किया था.
मुलायम सिंह यादव को दिए गए इस सम्मान के बाद, उत्तर प्रदेश में इसका सियासी असर क्या होगा यह भी बहुत स्पष्ट है. समाजवादी पार्टी का जातिगत अस्मितावादी समर्थक संघ परिवार, भाजपा या फिर उसके हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा का सैद्धान्तिक विरोधी नहीं है. विरोधी नहीं होने का यह आधार भी मुलायम सिंह यादव की देन है. वह नरेंद्र मोदी और उनकी राजनीति का समर्थक है. बस उसकी शिकायत भाजपा और संघ परिवार से इतनी ही है कि उन्हें भी देश के संसाधनों के बंटवारे में हिस्सा मिलना चाहिए. बाकी संघ परिवार की पूरी राजनीति से उसे कोई सैद्धान्तिक शिकायत नहीं है. संघ प्रतीकात्मक तौर पर ही सही हिस्सा दे सकता है.
दरअसल, अपने इस फैसले के मार्फ़त भाजपा उत्तर प्रदेश के सपा समर्थक यादवों और उन सभी अस्मितावादियों को, जो मुलायम सिंह यादव को अपना आदर्श मानते हैं- एक सन्देश देना चाहती है कि उसके नेता को अगर वह सम्मान दे सकती है तो उन्हें भी इससे महरूम नहीं करेगी. जो लोग आज भी मुलायम सिंह यादव को अपना नेता मानते हैं और अखिलेश यादव के अड़ियल स्वाभाव से पीड़ित होकर सपा में किनारे लगा दिए गए हैं, उन सबके लिए इस पार्टी के भीतर सम्मानजनक ‘जगह’ उपलब्ध है- ऐसा सन्देश चला गया है. भाजपा की इस पूरी कवायद का सीधा मतलब यह है कि अखिलेश यादव की राजनीति से निराश अस्मितावादियों के लिए भाजपा के दरवाजे खुले हुए हैं. इस फैसले के सहारे भाजपा इस समुदाय के बीच यह सन्देश देना चाहती है कि वह पिछड़े समाज की ‘विभूतियों’ का सम्मान करती है और उसके हिंदुत्व दर्शन में पिछड़ों के लिए भी एक सम्मानजनक जगह है.
वैसे भी, अब अखिलेश यादव मुलायम सिंह की विरासत नहीं बचा पाएंगे, इसलिए उन्हें आदर्श मानने वाले लोग भाजपा के साथ आयें. इस सम्मान का यही मतलब है और भाजपा को इस फैसले से फायदा ही होगा, क्योंकि सत्ता अस्मिताओं को खुद जगह देने के लिए हाथ फैलाये खड़ी है और अस्मिताएं इस मौके का फायदा जरूर उठाना चाहेंगी. वैसे भी भाजपा की तरफ़ पिछड़ों की शिफ्टिंग रोकने की अयोग्यता अखिलेश यादव पहिले ही दिखा चुके हैं. भाजपा को इस घोषणा का फायदा मिलेगा.

डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.

