Ranchi : कोरोना काल में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की कमाई के साधन बंद हो गये थे. हाट-बाजार वीरान थे. जो लोग दैनिक मजदूरी और छोटे-मोटे काम के लिए शहरों पर आश्रित थे, वे घर बैठ गये. ऐसे लोगों के सामने आजीविका का गंभीर संकट खड़ा हो गया. ऐसे में मनरेगा योजना से जुड़े ग्रामीणों के लिए यह एक बड़ा सहारा साबित हुई. इसके जरिये ग्रामीणों को रोजगार तो उपलब्ध हो ही रहा है, साथ ही लाभुकों की व्यक्तिगत संपत्ति भी योजना के तहत तैयार हो रही है. मनरेगा योजना के तहत स्वच्छता, वृक्षारोपण, आंगनबाड़ी, पशुधन, सिंचाई के काम और खेल के मैदान भी भी बनाये जा रहे हैं. मनरेगा योजना के अंतर्गत किये जा रहे कार्यों में पछले 9 माह में औसतन 18 करोड़ से अधिक की राशि का मजदूरी के रूप में भुगतान किया गया है. इसने कोरोना काल में ग्रामीण झारखंड के अर्थतंत्र को मजबूत करने का काम किया है.
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किस माह कितना हुआ मजदूरी का भुगतान
कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए राज्य में तीन नयी योजनाएं भी शुरू की गयीं. ऐसी ही एक योजना है बागवनी योजना. इसके अंतर्गत ग्रामीणों को अपनी व्यक्तिगत भूमि में फलदार वृक्षों को लगाया. इसके लिए उन्हें पेड़ का पैसा, पेड़ लगाने के लिए मजदूरी और सिंचाई सहित पांच साल तक इन पेड़ों की देखरेख के लिए राशि भी दी जाती है. इस योजना के तहत पूरे राज्य में आम के इतने पौधे लगाये गये हैं कि उचत देखरेख हुई, तो झारखंड आम निर्यातक राज्य के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो जायेगा.
किस माह में कितनी मजदूरी का भुगतान (राशि लाख में)
April 1,993.76
May 13,424.07
June 24,746.27
July 23,825.28
August 10,370.79
September 14,314.60
October 28,394.77
November 23,135.98
December 10,516.19
सबसे अधिक मनरेगा मजदूर गिरिडीह में
मनरेगा मजदूरी भुगतान के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल माह में सबसे अधिक मजदूर रांची जिला में थे, जिन्हें 138.30 लाख मजदूरी का भुगतान हुआ. वहीं मई माह में गिरिडीह में सबसे अधिक मजदूरों ने काम किया, जिन्हें 917.06 लाख मजदूरी का भुगतान हुआ. जुलाई माह में सरायकेला खरसावां जिले में सबसे अधिक मजदूरों ने मनरेगा योजना में काम किया. वहीं जुलाई ,अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर माह में सबसे अधिक मनरेगा मजदूर गिरिडीह जिला के काम करनेवाले रहे. मनरेगा योजनाओं में काम उपलब्ध कराने के मामले में भी गिरिडीह जिला अव्वल रहा.
रिपोर्टर की टिप्पणी
मनरेगा एक अनोखा और अलग कार्यक्रम इसलिए है, क्योंकि जिस काल में रोजगार और बुनियादी ढांचे के काम का बेतरतीब निजीकरण किया जा रहा था, उस काल में सामाजिक आंदोलनों और जनपक्षीय राजनीति के दबाव के कारण भारत सरकार ने सभी ग्रामीण परिवारों को 100 दिन के काम का वैधानिक अधिकार दिया. 2005 में बनी यह योजना एक कानून के तहत संचालित होती है. सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर और असमानता बढ़ानेवाली आर्थिक नीतियों के पैरोकार हमेशा से रोजगार के कानूनी अधिकार के खिलाफ रहे हैं. यह कानून कहता है कि 15 दिनों के भीतर रोजगार उपल्बध कराने का काम करता है. काम नहीं मिलने पर 16वें दिन से बेरोजगारी भत्ता पाने का कानूनी अधिकार होता है. मनरेगा पर्यावरण को बेहतर करने का भी एक बेहद महत्वपूर्ण कार्यक्रम रहा है और पानी के विकराल होते संकट के असर को कम करने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. 7 से 15 दिन की अवधि में मजदूरी का भुगतान न होने देरी के लिए भी मजदूर मुआवजा के हकदार होते है.
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