Deoghar : जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तपोवन पहाड़ में हनुमान मंदिर की अपनी अलग पहचान है. रावण की तपस्या भंग करने के लिए यहां हनुमान जी पहाड़ चीर कर प्रकट हुए थे. इसके अवशेष आज भी मौजूद है. तपोवन में भक्तों ने खास तरीके से रामनवमी मनाई. जिन भक्तों की मनोकामना पूरी हुई वे यहां आकर बजरंगवली को ध्वज चढ़ाए. मंदिर तक जाने में भक्तों को काफी कष्ट झेलना पड़ता है. मंदिर पहाड़ के बीचो-बीच है. पत्थर भरे संकीर्ण रास्ते से होकर भक्त मंदिर दर्शन करने पहुंचते हैं.
तपोवन में रामनवमी के अवसर पर ध्वज चढ़ाने की प्राचीन परंपरा आज तक कायम है. महावीर मानव सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष विनय कुमार यादव ने बताया कि रावण कैलाश पर्वत से शिवलिंग को लेकर लंका लौट रहे थे. इसी दरम्यान उन्हें लघुशंका लगी. वे शिवलिंग बैजू ग्वाला के हाथों सौंपकर लघुशंका करने लगे. बैजू ग्वाला ने शिवलिंग जमीन पर रख दी. भगवान शिव रावण को पहले बता चुके थे कि शिवलिंग को जमीन से स्पर्श कराने पर दुबारा नहीं उठाया जा सकेगा.
रावण ने तपोवन पहाड़ में की तपस्या
उसी समय से शिवलिंग देवघर में स्थापित है. दुबारा शिवलिंग नहीं उठने पर रावण ने तपोवन पहाड़ में तपस्या शुरू की. उसी दरम्यान बजरंगबली पहाड़ को चीर कर प्रकट हुए और रावण की तपस्या भंग कर दी. देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ मनोकामना ज्योतिर्लिंग भी माना जाता है. तपोवन स्थि बजरंगबली को मनोकामना बजरंगबली के नाम से जाना जाता है.
महावीर मानव सेवा ट्रस्ट के सचिव संतोष कुमार ने बताया कि यहां पर दूर-दूर से बजरंगबली के भक्त पूजा करने आते हैं. भक्तों को विश्वास है कि बजरंगबली के मंदिर में जो भी मनोकामना की जाती है उसे हनुमान पूरा करते हैं. मनोकामना पूरा होने के बाद रामनवमी के दिन बजरंगबली को ध्वज चढ़ाने की परंपरा है. जिन भक्तों की मनोकामना पूरी होती है वे ध्वज चढ़ाते हैं.
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