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अपनी ही पार्टी से बाहर किये गये नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली, कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता रद्द

 Kathmandu  :  नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में सिरफुटव्वल होने की खबर है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपनी ही पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी से निकाल दिये गये हैं. खबर है कि ओली के विरोधी खेमे की अगुवाई कर रहे पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड गुट ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के बाद यह कार्रवाई की है. पार्टी के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने इस बात पर मुहर लगाते हुए कहा कि  पीएम ओली की सदस्यता रद्द कर दी गयी है. बता दें कि प्रचंड गुट ने यह फैसला पीएम ओली और उनके समर्थकों की गैरमौजूदगी में किया गया है. इसे भी पढ़ें : तो">https://lagatar.in/so-chinese-president-xi-jinping-will-wear-made-in-india-shirt-rahul-suggested-formula/20574/">तो

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फैसले को पीएम ओली मानने से इनकार कर सकते हैं

जानकारी के अनुसार नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के इस बैठक में ओली गुट के नेता शामिल नहीं थे. कहा जा रहा है कि प्रचंड समर्थक नेताओं के इस फैसले को पीएम ओली मानने से इनकार कर सकते हैं. जान लें कि पार्टी में विपक्षी धड़े का नेतृत्व कर रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड पिछले कई महीने से ओली के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. इसे भी पढ़ें : MP">https://lagatar.in/madhya-pradesh-s-protem-speaker-advised-mamta-by-sending-ramayan-stop-opposing-ram-otherwise-jai-shri-ram-will-be-done/20534/">MP

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पार्टी  का गठन 2018 में पीएम ओली और  प्रचंड ने मिलकर किया था

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) का गठन 2018 में पीएम ओली और पूर्व पीएम प्रचंड ने मिलकर किया था. उससे पहले प्रचंड की पार्टी का नाम कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट) जबकि ओली के धड़े वाली पार्टी का नाम कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सिस्ट) था. दोनों दलों ने आपस में विलय कर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी या कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल का गठन किया था. इसे भी पढ़ें :  आतंकी">https://lagatar.in/polices-conditional-permission-to-tractor-parade-of-farmers-amid-inputs-of-terrorist-attack-routes-fixed-by-mutual-consent-in-meeting/20548/">आतंकी

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दोनों दलों के बीच 2020 के मध्य से मतभेद गहरा गये

दोनों दलों के बीच 2020 के मध्य से मतभेद तब गहरा गये, जब प्रचंड ने ओली पर बिना पार्टी के सलाह के सरकार चलाने का आरोप मढा.  बाद में दोनों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद समझौता हो गया. लेकिन, पार्टी में यह शांति ज्यादा दिनों तक नहीं रही.  मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर फिर से सिरफुटव्वल शुरू हो गयी. ओली ने अक्टूबर में बिना प्रचंड की सहमति के अपनी कैबिनेट में फेरबदल किया था. उन्होंने पार्टी के अंदर और बाहर की कई समितियों में अन्य नेताओं से बातचीत किए बगैर ही कई लोगों को नियुक्त किया था. दोनों नेताओं के बीच मंत्रिमंडल में पदों के अलावा, राजदूतों और विभिन्न संवैधानिक और अन्य पदों पर नियुक्ति को लेकर मनमुटाव बना रहा.    
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