Ranchi : नौ अधिकारी डीएसपी से एसपी रैंक में प्रोन्नत नहीं हो पायेंगे. झारखंड हाई कोर्ट ने प्रमोशन पर रोक लगा दी है.
उल्लेखनीय है कि झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की पीठ में डीएसपी से एसपी प्रोन्नति के खिलाफ दाखिल याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई.
सुनवाई के बाद अदालत ने डीएसपी से एसपी में प्रोन्नति देने पर रोक लगा दी. साथ ही राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
अदालत ने यूपीएससी सहित अन्य को अगले आदेश तक प्रोन्नति नहीं देने और इसकी पूरी प्रक्रिया पर रोक लगाने को कहा है.
अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होगी.
इन डीएसपी को आईपीएस बनाने की तैयारी
बता दें कि जिन डीएसपी को आईपीएस बनाने की तैयारी हो रही है, उसमें शिवेंद्र, राधा प्रेम किशोर, मुकेश कुमार महतो, दीपक कुमार-1, मजरूल होदा, राजेश कुमार, अविनाश कुमार, रौशन गुड़िया, श्रीराम समद, निशा मुर्मू, सुरजीत कुमार, वीरेंद्र कुमार चौधरी, राहुल देव बड़ाईक, खीस्टोफर केरकेट्टा, प्रभात रंजन बरवार, अनूप कुमार बड़ाईक व समीर कुमार तिर्की शामिल है.
इन तीन डीएसपी पर दर्ज हैं आपराधिक मामले
इस सूची में उन तीन डीएसपी (शिवेंद्र, राधा प्रेम किशोर, मुकेश महतो) का नाम भी शामिल है, जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. इनके खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है और एजेंसी ने तीनों के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया है.
सरकार ने नौ डीएसपी का नाम प्रोन्नति के लिए भेजा
सरकार ने नौ सीनियर डीएसपी का नाम एसपी में प्रोन्नति देने के लिए भेजा है. इसको लेकर रजतमणि बाखला सहित अन्य ने याचिका दाखिल की है.
प्रार्थियों के अधिवक्ता आकाशदीप और विक्रम सिन्हा ने अदालत को बताया है कि सरकार ने डीएसपी पद पर तैनात नौ अधिकारियों को एसपी में प्रोन्नति देने के लिए जो सूची भेजी है, वह गलत है.
12 साल बाद जांच पूरी कर सीबीआई ने दायर किया गया आरोप पत्र
न्यायिक विवादों की वजह से जेपीएससी-1 की तरह की जेपीएससी-2 की भी जांच 12 साल बाद पूरी हुई. इसके बाद सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया.
सीबीआई ने अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा-420, 120बी, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-13(2) सहपठित धारा-13(1)(डी) के तहत कार्रवाई करने का अनुरोध किया है.
आरोप पत्र में जेपीएससी के तत्कालीन पदाधिकारियों, परीक्षकों और तत्कालीन परीक्षार्थियों पर सुनियोजित साजिश रचकर अयोग्य लोगों को परीक्षा में सफल घोषित करने का आरोप लगाया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि मामले की जांच के दौरान दोषियों को पहचानने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया गया.
इसके तहत परीक्षार्थियों की कॉपियों की फोरेंसिक जांच कराई गई, जिसमें यह पुष्टि हुई कि अयोग्य उम्मीदवारों की कॉपियों में पहले दिये गये नंबरों को काटकर बढ़ाया गया था.
संबंधित विषयों की कॉपियों की जांच करनेवाले व्याख्याताओं ने भी पूछताछ के दौरान इस बात की पुष्टि की.
जांच के दौरान आरोपित परीक्षार्थियों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया. उन्हें समन भेजकर बुलाया गया और उनकी कॉपियों में की गयी काट-छांट और ओवर राइटिंग पर उनका पक्ष सुना गया.
फॉरेंसिक जांच और परीक्षकों के बयानों की समीक्षा के बाद 28 परीक्षार्थियों के खिलाफ जालसाजी का आरोप लगाते हुए आरोप पत्र दायर करने का निर्णय लिया गया.
जालसाजी में मदद करने वाले इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों और 25 परीक्षकों के खिलाफ भी आरोप पत्र दायर किया गया.
जांच में यह भी पाया गया कि आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष, सदस्यों और नेताओं के करीबी रिश्तेदारों को जालसाजी के माध्यम से सफल घोषित किया गया और विभिन्न पदों पर नियुक्ति की अनुशंसा की गयी.
इसके अलावा, परीक्षा के दौरान कंप्यूटर से संबंधित कार्य मेसर्स एनसीसीएफ को दिये गये. एनसीसीएफ के प्रतिनिधि धीरज कुमार ने भी इस जालसाजी में शामिल होकर अपने रिश्तेदार संजीव सिंह को सफल घोषित कराया.