गौशाला न्यास समिति के अजब-गजब कारनामे
Rajan Bobby
Ranchi: गोशाला न्यास समिति के ट्रस्टी और पदाधिकारियों के एक ही मोख्तार हैं. और वे हैं रतन जालान. इनका पद भी ऐसा वैसा नहीं है. साहब ट्रस्टी चेयरमैन हैं. इनकी अनुमति के बिना गोशाला में पत्ता भी नहीं हिल सकता. उनके आगे अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष की भला क्या बिसात. ज्यादातर ट्रस्टी और सदस्य इनके पक्षधर हैं. चेयरमैन साहब के रुआब के क्या कहने. गोशाला की जमीन बेचनी हो या फिर कोई कानूनी अड़चन आ जाये, तो रतन जालान महोदय साफ कह देते हैं, हम करवा लेंगे. जमीन तो झट से बेचवा देंगे, लेकिन वर्षों से हरमू रोड स्थित गोशाला की जमीन का म्यूटेशन (दाखिल-खारिज) नहीं करा सके. खाली कहेंगे कि हम करा लेंगे. जानकारी मिली है कि यह जमीन भी सीएनटी जमीन है, जिस कारण 120 साल बीतने के बावजूद इसका म्यूटेशन नहीं हो पाया है. हुटुप और सुकुरहुटू गोशाला की भी दर्जनों समस्याएं अबतक लंबित हैं. सदस्य बना कर भी मान्यता नहीं दिए जाने से आक्रोशित सदस्य ही नहीं, मेंबर और कई ट्रस्टी भी ऐसे ढेरों आरोप चेयरमैन रतम जालान पर लगा रहे हैं. सभी एक ही बात कहते हैं कि सारे विवाद की जड़ रतन ही हैं. वर्चस्व बनाये रखने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. यही कारण है कि आजीवन सदस्य कुछ भी बोलने से डरते हैं.
सामने आकर सवाल खड़ा करने से डरते हैं सदस्य
सदस्यों का साफ-साफ कहना है कि सामने आकर कुछ नहीं कह सकता. उनके पास बहुमत है, जो चाहे वह कर दें. जालान बाबू के सामने हमारी बिसात ही क्या है. भैया इसी कारण सबकुछ जानते-समझते हुए भी हमलोग चुप्पी साध लेते हैं. हालांकि बेनी प्रसाद प्रसाद अग्रवाल, स्नेह पोद्दार, अनिल अग्रवाल, मोहक जैन जैसे कई सदस्यों ने माननीयों के हिटलरशाही व्यवस्था को चुनौती देते हुए न्यायालय तक का दरवाजा खटखटा दिया है. उनका कहना है कि अब ताे अदालत पर ही भरोसा है. जो भी सही-गलत होगा न्यायालय में साफ हो जाएगा.
जांच हो तो कारगुजारियां उजागर हो जाएंगी
एक सदस्य नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि यदि सही तरीक से किसी जांच एजेंसी से गोशाला समिति के कार्यकलापों की जांच करा दी जाए, तो माननीयों की सारी कारगुजारियां उजागर हो जाएंगी. उन्होंने 28 फरवरी को हुई आम सभा का हवाला देते हुए बताया कि कोषाध्यक्ष दीपक पोद्दार ने गोशाला के आय-व्यय से संबंधित ब्योरा की प्रति दो-चार लोगों के बीच दिखावे के रूप में बांटवा तो दी, लेकिन फंसने के डर से यह कहते हुए बांटी गयी प्रति भी वापस ले ली गयी कि इसकी फोटोकॉपी नहीं करायी जा सकी है. आखिर इसका क्या अर्थ है. इतने ही राफ-साफ हैं, तो सारी बातें आम सदस्यों के बीच क्यों नहीं रखी जाती. जमीन बेचना हो या फिर सदस्यों की सदस्यात की मान्यता का मामला, सबसे सहमति बना कर ही फैसला लिया जाना चाहिए.
बेबुनियाद-निराधार हैं सारे आरोप : ओम प्रकाश छापडि़या
गोशाला के ट्रस्टी ओम प्रकाश छापड़िया बताते हैं कि सारे आरोप बेबुनियाद और निराधार हैं. सब ट्रस्टी मिलकर ही ट्रस्टी चेयरमैन चुनते हैं, जो सब से सलाह-मशविरा कर के ही कोई भी निर्णय लेते हैं. सदस्यों को मान्यता न दिए जाने का मामला सलटाना हो या फिर जमीन बेचने का फैसला, सारे ट्रस्टी और पदाधिकारी की सहमति से ही लिए जाते हैं. किसी एक ट्रस्टी के फैसले से 135 लोगों को एक साथ किसी भी तरह से सदस्यता नहीं दी जा सकती. वैसे तो हर ट्रस्टी और पदाधिकारी सदस्य बनाता फिरेगा. सदस्य बनाने की प्रक्रिया होती है, जो 135 सदस्यों ने पूरी नहीं की थी, इसी कारण उन्हें मान्यता नहीं दी जा रही है. हाल में ट्रस्ट बोर्ड ने 50 लाेगों को सदस्य बनाने का निर्णय लिया था, तो 135 में से 25 लोगों को सदस्य बना दिया गया. भविष्य में औरों को भी मौका मिलेगा. इसके लिए हाय-तैबा मचाने की जरूरत ही क्या है. गोशाला में सेवा देने के लिए ही तो सदस्य बन रहे हैं, तो सेवा वैसे भी कर सकते हैं. किसी ने इसके लिए रोका थोड़े न है.
मेरे अकेले का नहीं, 110 लोगों का मामला है : बेनी प्रसाद
बेनी प्रसाद अग्रवाल कहते हैं कि सदस्य बना कर भी मान्यता नहीं दिए जाने का मामला सिर्फ मेरे अकेले का नहीं, बल्कि 110 लोगों के मान-सम्मान से जुड़ा मसला है, जिनसे डोनेशन और सदस्यता शुल्क लेकर भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. ट्रस्टी चेयरमैन की मनमानी से आहत बेनी प्रसाद बताते हैं कि उम्र के अंतिम पड़ाव में क्या झूठ बोलेंगे. मुझसे भी 21 हजार रुपये डोनेशन के नाम पर और 11 सौ रुपये सदस्यता शुल्क के नाम पर लिया गया. फिर सदस्यता प्रमाण पत्र भी दे दिया गया. अब नये बने ट्रस्टी चैयरमैन इसे गलत बता रहे हैं. मारवाड़ी समाज के होकर भी इतना गलत कैसे कर सकते हैं, सोच भी नहीं सकता. मेरे अकेले की बात होती तो पीछे हट जाता, लेकिन अन्य लोगों को भी ठगा गया है. इसके लिए जहां तक लड़ना पड़े, कानूनी लड़ाई लड़ता रहूंगा.