Hazaribagh: यह तसवीर सिस्टम की बदहाली दिखाती है. जहां जीते जी तो मरीज को एंबुलेंस नसीब नहीं हो रहा, मरने के बाद भी शव को ऑटो से ले जाने को परिजन मजबूर दिखते हैं. दरअसल पद्मा प्रखंड निवासी रेशमी देवी को मरने के बाद एक अदद एंबुलेंस भी नसीब नहीं हो पाया. परिजन उनके शव को ऑटो में ले गए. कहने को तो हजारीबाग में शहीद शेख भिखारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल हो गया है लेकिन सुविधा कितनी है इसका अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल से घर तक ले जाने के लिए शव वाहन या एंबुलेंस भी नसीब नहीं होता है. मृतक के परिजन शव को ऑटो रिक्शा में लेकर जाने को विवश हैं.
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बता दें कि रेशमी देवी की हत्या सोमवार की रात उसके पति ने गला दबाकर कर दी थी. पड़ोसियों ने इसकी खबर रेशमी देवी के मायके वालों को दी. मृतका के परिजन पदमा पहुंचे और शव को पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल लेकर आये.
3 से 4 घंटे तक परिजन एंबुलेंस के लिए परेशान होते रहे लेकिन जब एंबुलेंस नहीं मिला तो थक हार कर परिजनों ने शव को एक ऑटो में डालकर ले गए. हजारीबाग के सदर अस्पताल को मेडिकल कॉलेज अस्पताल के रूप में इस्तेमाल करते अब 2 साल होने को हैं, लेकिन सुविधा के नाम पर यहां लोग रोज अपने को ठगा सा महसूस करते हैं. यहां आने वाले लोग कहते हैं इससे तो बेहतर पहले की ही व्यवस्था थी.
आज भले ही 100 से अधिक डॉक्टर मेडिकल अस्पताल में कार्यरत हैं लेकिन इस कोविड-19 के समय कोविड वार्ड में डॉक्टर झांकने तक नहीं जाते. वार्ड पूरी तरह से वार्ड बॉय के हवाले रहता है. पुराने डॉक्टर भी नई व्यवस्था के बाद बहुत अधिक ध्यान नहीं देते. ऐसे में अस्पताल की पूरी प्रबंधन क्षमता चरमराई हुई है. इसका खामियाजा गरीब असहाय लोगों को रोज भुगतना पड़ता है.