Ranchi : सुप्रीम कोर्ट ने डीजीपी के पद पर नियुक्ति से संबंधित एक अवमानना याचिका में प्रतिवादी बनाये गये अधिकारियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है. साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए चार-पांच मई की तिथि निर्धारित करने का आदेश दिया है.
बाबूलाल मरांडी ने अपनी याचिका में मुख्य सचिव अलका तिवारी, गृह सचिव वंदना डाडेल, डीजीपी अनुराग गुप्ता, सेवानिवृत न्यायाधीश रतनाकर भेंगरा और नीरज सिन्हा को प्रतिवादी बनाया है.
भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने अनुराग गुप्ता को डीजीपी के पद पर नियुक्ति को “प्रकाश सिंह बनाम केंद्र सरकार” मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन करार देते हुए अवमानना याचिका दायर की थी.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश संजय कुमार और न्यायाधीश के. वी. विश्वनाथन की पीठ में इस मामले की सुनवाई हुई.
मामले से संबंधित मूल याचिका में कई डीजीपी की नियुक्तियों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करने से जुड़ी अनेक याचिकाएं दायर की गयी थीं. हालांकि सभी याचिकाओं को 25 के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया था.
इसलिए न्यायालय ने सभी याचिकाओं को सूचीबद्ध करते हुए चार-पांच मई को अगली सुनवाई की तिथि निर्धारित करने का निर्देश दिया. सुनवाई के दौरान न्यायालय को यह जानकारी दी गयी कि डीजीपी की नियुक्ति के दौरान हर दूसरा-तीसरा राज्य सुप्रीम को निर्देश का उल्लंघन कर रहा है.
बाबूलाल की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि अनुराग गुप्ता को डीजीपी के पद पर नियुक्त करने के दौरान प्रकाश सिंह बनाम केंद्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर दिये गये फैसलों और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया गया है.
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितंबर 2006 को दिये गये अपने आदेश में यह कहा था कि राज्य सरकार डीजीपी के पद पर प्रोन्नत होने वाले अधिकारियों की सूची लोक सेवा आयोग को भेजेगी. आयोग द्वारा तैयार पैनल में से सरकार किसी को डीजीपी के पद पर नियुक्त करेगी.
नियुक्ति की तिथि से डीजीपी का कार्यकाल दो साल के लिए होगा, भले ही उसके सेवानिवृति की तिथि पहले हो. डीजीपी की नियुक्ति पूरी तरह मेरिट के आधार पर होगी. इसमें किसी तरह का दबाव या प्रभाव का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा.
न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि डीजीपी के पद पर नियुक्त अधिकारी को निर्धारित समय सीमा से पहले तभी हटाया जायेगा, जब उसके खिलाफ अखिल भारतीय सेवा नियमावली के तहत किसी कार्रवाई का निर्णय लिया गया हो, या किसी न्यायालय द्वारा उसे किसी आपराधिक या भ्रष्टाचार मामले में दोषी करार दिया गया हो.
ऐसी परिस्थिति में डीजीपी को पद से हटाने के लिए राज्य सुरक्षा आयोग से विचार विमर्श किया जायेगा. न्यायालय ने तीन जुलाई 2018 को दिये गये अपने फैसले में कहा था कि कोई राज्य सरकार कार्यवाहक डीजीपी बनाने के मुद्दे पर नहीं सोचेगा, क्योंकि प्रकाश सिंह बादल बनाम केंद्र सरकार के फैसले में कार्यवाहक डीजीपी की अवधारणा नहीं है.
बाबूलाल की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि अनुराग गुप्ता को डीजीपी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये इन आदेशों का उल्लंघन किया गया. अजय कुमार सिंह के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में लोक सेवा आयोग द्वारा तैयार किये गये पैनल के आधार पर यह नियुक्ति की गयी थी.
लेकिन उन्हें समय से पहले हटा दिया गया, ताकि इस पद पर रिक्ति दिखाई जा सके. पद से हटाने के क्रम में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया गया.
अजय कुमार सिंह को पद से हटाने के बाद अनुराग गुप्ता को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया गया. अजय सिंह को पद से हटाने के बाद लोक सेवा आयोग को अधिकारियों की एक सूची भेजी गयी. इसमें अनुराग गुप्ता का नाम शामिल किया गया.
राज्य में विधानसभा की घोषणा के बाद चुनाव आयोग के निर्देश पर अनुराग गुप्ता को पद से हटाया गया. चुनाव के बाद अनुराग गुप्ता को डीजीपी के पद पर नियुक्त किया गया.
याचिका में न्यायालय से यह अनुरोध किया गया है कि वह अनुराग गुप्ता को पद से हटाने का आदेश पारित करे. साथ ही नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करें.