Ranchi : झारखंड की राजनीति में इन दिनों आदिवासियों के हिंदू होने या नहीं होने का विवाद काफी गरमा गया है. सत्तारूढ़ हेमंत सरकार का मानना है कि आदिवासी कभी हिंदू नहीं थे. इसलिए केंद्र सरकार को अगली जनगणना में इनकी गिनती के लिए अलग से कॉलम की व्यवस्था करनी चाहिए. वहीं प्रदेश भाजपा सरकार पर हमलावर है. भाजपा नेता कह रहे हैं कि खुद को हिंदू नहीं मानने वाले आदिवासी लोगों की जनजाति लाभ समाप्त कर दिया जाना चाहिए.
इस बीच हेमंत सरकार ने अब सदन में भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि झारखंड के 32 जनजाति समुदाय की पूजा पद्धति, रीति रिवाज, जन्म एवं मृत्यु संस्कार, पर्व- त्यौहार व अन्य धर्मावलंबियों से भिन्न है. सदन में जेएमएम महासचिव सह जामा विधायक सीता सोरेन के पूछे एक सवाल के जवाब में गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग ने यह जानकारी दी है.
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आदिवासी कभी भी हिंदू नहीं थे ना ही अब वे हिंदू हैं : हेमंत
बता दें कि बीते 21 फरवरी को हार्वर्ड इंडिया कांन्फ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जब पूछा गया था कि क्या आदिवासी हिंदू नहीं हैं. इस पर उन्होंने कहा था कि इस पर कोई भ्रम नहीं है. आदिवासी कभी भी हिंदू नहीं थे, न ही अब वे हिंदू हैं. आदिवासी प्रकृति के उपासक हैं. इनके रीति-रिवाज भी अलग हैं.
सदियों से आदिवासी समाज को दबाया जाता रहा है. कभी इंडिजिनस, कभी ट्राइबल तो कभी अन्य तरह से पहचान होती रही है. मुख्यमंत्री ने कहा था कि झारखंड विधानसभा ने पिछले साल नवंबर में सर्वसम्मति से आदिवासियों के लिए एक सरना आदिवासी धार्मिक कोड का प्रस्ताव केंद्र को भेजा है, ताकि जनगणना कोड में आदिवासियों के अलग कालम की व्यवस्था हो.
खुद को हिंदू नहीं मानने वाले आदिवासियों के जनजाति लाभ समाप्त करने की भाजपा की मांग. वही भाजपा नेता सह पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि आदिवासी संवैधानिक के साथ व्यवहारिक तौर पर जन्म से ही हिंदू है.वैसे आदिवासी जिन्होंने अपनी परंपरा, संस्कृति, पूजा पाठ छोड़ दी है, उन्हें मिलने वाला जनजाति लाभ समाप्त कर दिया जाना चाहिए.
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विशेष धार्मिक ग्रंथ से संचालित नहीं होते आदिवासी, किसी मसीहा, पैगंबर या अवतार की भी कल्पना नहीं.
जेएमएम नेता के सदन में पूछे सवाल के जवाब में कहां गया है कि आदिवासियों को किसी अन्य धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता. आदिवासी के देवता किसी विशाल भवन में निवास नहीं करते. आदिवासियों के सारे समुदाय विशेष धार्मिक ग्रंथ से संचालित नहीं होते. यहां किसी मसीहा, पैगंबर या अवतार की कल्पना भी नहीं की गई है.
यहां जन्म पर आधारित कोई ऐसा पुजारी या पुरोहित भी नहीं है. प्राकृतिक अभिमुख की सांस्कृतिक विशेषताओं ने इन्हें अद्भुत रूप से समतावादी बना दिया है. इसीलिए इनके यहां वर्ण-जाति के भेदभाव वाली सामाजिक व्यवस्था का अभाव है. स्वर्ग नरक की अवधारणा का अभाव, आत्मा की अपनी विशिष्ट परिकल्पना, तथा पर्व त्यौहार इत्यादि अन्य धर्मों से अलग है. जवाब में कहा गया है कि इनकी पूजा आराधना का केंद्र प्रकृति है.
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