Faisal Anurag
मीडिया सरकार बहादुर के हुक्म पर डंका बजाने लगे हैं. किसी भी चैनल को देख लीजिए. केंद्र सरकार, नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नाम का उल्लेख कोविड की बदइंतजामी संदर्भ में नहीं किया जा रहा है. इसकी जगह सिस्टम को जिम्मेदार बताया जा रहा है. यह सिस्टम है क्या. ? सिस्टम किन तत्वों को लेकर निर्मित होता है. क्या केंद्र सरकार उसमें शामिल नहीं होती . इस सवाल की परवाह किए बगैर मीडिया के केंद्र से मिले सख्त निर्देश किए बगैर अमूर्त सिस्टम को दोषी करार दिया जा रहा है. यह वही मीडिया है जो नरेंद्र मोदी के साथ मिल कर तमाम समस्याओं के लिए 70 साल दोषी है, नेहरू दोषी है, इंदिरा गांधी दोषी है और अंत में परिवार दोषी है का राग अलापती रही है. वह मीडिया अब यह भी नहीं कह सकती कि कोविड के बचाव के निमयों को तोड़ने वालों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बंगाल दौरे की तस्वीरे गवाही दे रही हैं.
केंद्र के निर्देश से सच का गला भले ही मीडिया घोंट दे लेकिन मरने वालों के परिवार, आक्सीजन और बेड के लिए तड़प लोग जान गए हैं कि बड़ी बड़ी मन की बातों को करनेवाले इन आरोपों से बच नहीं सकते कि समय रहते उन लोगों ने वाटों की फसल उगाने में समय जाया किया न कि लोगों की जान बचाने के लिए परिश्रम किया. टाइम्स नॉव चैनल के कुछ पत्रकारों की जमीर खामोशी से समझौता नहीं कर सकी है. उन लोंगों ने एक खुला पत्र अपने संपादक मंडल के सदस्यों नाविका कुमार और राहुल शिवशंकर को लिख कर कहा है कि पत्रकारिता की नैतिकता से सौदेबाजी कबूल नहीं की जा सकती है. ये पत्रकार जानते हैं कि इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ सकती है. जिन पत्रकारों ने भी सच दिखाने का साहस किया है उनमें से अधिकांश को नौकरी गंवानी पड़ी है. कुछ ने समझौता करना ही बेहतर समझा है. लेकिन टाइम्स नाउ के पत्रकारों के सवाल इतने तल्ख हैं कि उन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है.
मीडिया जिस सिस्टम को अभी फैली अफरातफरी और बेचैनी का कारण बता रहा है. उसके बारे में जिस सरकार ने उन्हें पत्र दिया है उसके ही मुखिया नरेंद्र मोदी के क्या विचार रहे हैं. 2012 और 2013 केे उनके चार ट्वीट ऐसे हैं जो बताते हैं कि सिस्टम से नरेंद्र मोदी क्या समझते रहे हैं. 7 जुलाई 2013 को जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होने एक ट्वीट कर केंद्र पर हमला करते हुए लिखा: कोई भी सिस्टम,संसाधन या संविधान गुड गवर्नेस नहीं प्रदान कर सकता यदि इरादा ही संदिग्ध हो. यह इरादा से उनका मतलब डा. मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी थीं. साफ है नरेंद्र मोदी किसी भी सिस्टम के कारगर होने के लिए केंद्र सरकार को बुनियादी शर्त मानते हैं. 8 नवंबर 2013 को उनका एक और ट्व्ीट है जो डा. मनमोहन सिंह के उल्लेख के साथ है.
नरेंद्र मोदी इस ट्वीट में लिखते हैं: प्रधानमंत्री कहते हैं कि बीजेपी ने राजनीति का स्तर नीचे गिराया है, लेकिन पीएमओ और कैबिनेट सिस्टम के स्तर को किसने गिराया है. यह कांग्रेस पार्टी और उनके नेता है.एक तीसरा ट्वीट जो अप्रैल 2013 का है. इसमें नरेंद्र मोदी ने लिखा है: न्यूजइंडिया 18 के थिंकटैंक डायलोग जो दिल्ली में हुआ उसने मेरे विचारों को महत्व दिया है कि किस तरह मीनिमम गवमेंट और मेक्सिम गवर्नेस पूरे सिस्टम को बदल सकता है. एक और ट्वीट भी इसी आश्य का है जो 15 नवंबर 2013 का है. यह वही समय है जब नरेंद्र मोदी 2014 के चुनावों की तैयारी के लिए खुल कर अपना दावा पेश करने लगे थे. इसमें उन्होंने लिखा है: शहजादा कहते हैं कि सिस्टम को हमें बदलना है. लेकिन इसे बनाया किसने है? यह आपकी पार्टी और परिवार है जिसने 60 सालों पर देश में राज किया है और आप सिस्टम की बात कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी राहुल गांधी के लिए शहजादा शब्द का प्रयोग करते हैं.
ये चारों ट्वीट बताते हैं कि सिस्टम कुछ और नहीं होता बल्कि उसमें प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी और बुनियादी हिस्स्ेदारी होती है. मीडिया के सरकारी दिग्गज इस समय सिस्टम का उल्लेख कर नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार का नाम लेने से बच रहे है. इससे आपी नौकरी तो बच जाएगी लेकिन वास्तविकता नहीं छुपायी जा सकती है.