Faisal Anurag
अबेल मुताई ,जी.तांबेरी, मुताज इसा बर्शिम, सिमोन बाइल्स और इव्हान फर्नांडिस. ये चार नाम हैं, जिन्हें आधुनिक ओलंपिक के इतिहास में मील के पत्थर की तरह सदियों तक याद किया जायेगा.चारों एथलीट चार देशों के हैं, लेकिन इन चारों का एक ही संदेश है कि खेलों को गलाकाट अंधराष्ट्रवाद से हर हाल में बचाना चाहिए. चैंपियन होना तो महत्वपूर्ण है, लेकिन उससे भी ज्यादा मायने उस खेल भावना का है जो राष्ट्रों की सीमाओं से परे एक वैश्विक आधुनिक समाज के गढ़ने का स्वप्न पैदा करता है.
अमेरिकन जिमनास्ट ने तो खेलों के कॉरपोरेटीकरण और पूंजी के प्रभाव से चैंपियन होने के दबाव के मनोवैज्ञानिक असर का सवाल उठाया. उनका संदेश साफ है कि चैंपियन होने के दबाव में खेलों की खबसूरती और स्पर्धा के मानवीय सरोकार को ही प्रभावित कर दिया है. हर हाल में बेहतर देने के दबाव में खिलाड़ी न केवल तनाव में आता है, बल्कि उसे अपने देशों के अंधराष्ट्रवादी समूहों के आतंक का भी शिकार होना पड़ रहा है. बाइल्स स्वर्ण पदक के प्रबल दावेदार थीं. नाम वापसी के बाद फिर वापसी करना पड़ा, तो मेडल जीत ही लिया.
ओलंपिक के इतिहास का यह पहला ही अवसर है, जब इव्हान ने अपने सुनिश्चित गोल्ड को एक तरह से अपने प्रतिस्पर्धी के लिए त्याग दिया. कीनिया के सुप्रसिद्ध धावक अबेल मुताई ने फाइनल राउंड में दौडते वक्त अंतिम लाइन से कुछ मीटर ही दूर थे और उनके सभी प्रतिस्पर्धी पीछे थे. अबेल ने गोल्ड लगभग जीत ही लिया था. सभी दर्शक उनके नाम का जयघोष कर रहे थे, इतने में वे अंतिम रेखा समझकर एक मीटर पहले ही रुक गए. उनके पीछे आनेवाले स्पेन के इव्हान फर्नांडिस के यह ध्यान में आया कि अंतिम रेखा समझ में नहीं आने की वजह से वह पहले ही रुक गए है.इव्हान ने चिल्लाकर अबेल को आगे जाने के लिए कहा, लेकिन स्पेनिश नहीं समझने की वजह से वह नहीं हिला. आखिर में इव्हान ने उसे धकेलकर अंतिम रेखा तक पहुंचा दिया. इस कारण अबेल पहले और इव्हान दूसरे स्थान पर रहे.
पत्रकारों ने इव्हान से पूछा ” ऐसा क्यों किया ?मौका मिलने के बावजूद तुमने प्रथम क्रमांक क्यों गंवाया?” उसने कहा “मेरा सपना है कि हम एक दिन ऐसी मानव जाति बनाएंगे, जो एक दूसरे को मदद करेगी और मैंने प्रथम क्रमांक नहीं गंवाया.” पत्रकार ने फिर कहा “लेकिन तुमने कीनियन प्रतिस्पर्धी को धकेलकर आगे लाया.” इसपर इव्हान ने कहा “वह प्रथम था ही. यह प्रतियोगिता उसी की थी.” पत्रकार ने फिर कहा ” लेकिन तुम स्वर्ण पदक जीत सकते थे” “उस जीतने का क्या अर्थ होता. मेरे पदक को सम्मान मिलता? मेरी मां ने मुझे क्या कहा होता ?संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे जाते रहते हैं .मैने अगली पीढ़ी को क्या दिया होता ? दूसरों की दुर्बलता या अज्ञान का फायदा न उठाते हुए उनको मदद करने की सीख मेरी मां ने मुझे दी है.” वह दिन जरूर आएगा जब यह भावना ओलंपिक प्रतिस्पर्धाओं को अंधराष्ट्रवादी और प्रायोजकों के दबाव से बचाएगी.
तांबेरी और बर्शिम ने तो एक ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिससे दुनिया को सीख लेना चाहिए. बर्शिम कतर के हैं और तांबेरी इटली के. ऊंची कूद के फाइनल में दोनों ने 2.37 मीटर की छलांग लगायी. टाई होने के बाद दोनों को तीन-तीन मौके और दिए गए. इसमें भी टाई नहीं टूटा. लेकिन इसी बीच तांबेरी घायल हो गए. तब बर्शिम को एक और मौका दिया गया. लेकिन बर्शिम ने रेफरी से पूछा क्या गोल्ड मेडल साझा किया जा सकता है. नियमानुसार, ऐसा किया जा सकता है. तब बर्शिम ने अपने एक और मौके से अकेले गोल्ड लेने के बजाय पदक को इटली के साथ साझा कर लिया.
किसी भी देश के लिए ओलंपिक में गोल्ड के महत्व को समझा जा सकता हे. चीन,अमेरिका और जापान में गोल्ड से चुकने वालों को जब ट्रॉल किया जा रहा हो, बर्शिम ने एक आदर्श पेश किया है. प्रचीन ओलंपिक हो या आधुनिक ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है. ओलंपकि की शुरूआत ही “Citius, Altius, Fortius” (“Faster, Higher, Stronger”) के मोटो के साथ हुई थी. लेकिन ओलंपिक सद्भाव की जगह ऐसी प्रतिस्पर्धा में बदला जा रहा है, जहां देशों के बीच के पुराने जख्म हरे हो जा रहे हैं. टेबल टेनिस के मिक्सड डबल में चीन की जोड़ी जापान से हार कर गोल्ड मेडल गंवा दिया. पूरे चीन में जिस तरह की प्रतिक्रिया देखी जा रही है. अपने ही खिलाड़ियों के दोशद्रोही समझने का प्रचार सोशल मीडिया से किया जा रहा है. वह बताता है कि गोल्ड की चाह एक ऐसे अंध सुरंग में फंस गयी है, जो खिलाड़ी के तकनीक,कौश्ल और हुनर का महत्व को कम करता है. जीत चाहे जैसे भी यह मोटो बनता जा रहा है. जापान ने चीन में पिछली सदी में चीनियों का बहुत खून बहाया. लंबे चले युद्ध में जापान को चीनीयों ने खदेड़ दिया.
लेकिन यह जख्म 21वीं सदी में भी दोनों देशों के रिश्तों पर भारी है. ठीक उसी तरह जैसे फुटबॉल में इंग्लैंड और फ्रांस या इंग्लैड और जर्मनी की हार जीत या फिर एशेज में इंगलैंड और ऑस्ट्रेलिया. भारत और पाकिस्तान के बीच का तनाव तो खेलों के दौरान और बढ़ जाता है. जेवलिन थ्रो के फाइनल में भारत और पाकिस्तान दोनों के एथलीट फाइनल में पहुंचे हैं. भारतीय और पाकिस्तानी मीडिया में इसे भारत पाकिस्तान टकराव के रूप में पेश किया जा रहा है, जबकि जेवलिन थ्रो में तो दूसरे देशों की दावेदारी भी है.
ऐसे माहौल में तांबेरी,बर्शिम और इव्हान फर्नांडिस अबेल मुताई ने जो कुछ रचा है. वह मानवीय इतिहास का सबसे चमकदार पहलू है. आकाश के ये ऐसे सितारे हैं, जिनकी मद्धिम रौशनी से पृथ्वी भले ही रोशन नहीं हो, लेकिन देर सबेर वे खलों पर हावी होती गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दबाव से एथलीटों को राहत देंगे.