Ranchi/ Bermo : एक अजीब ही पशोपेश में वन विभाग, सीसीएल और कोल ट्रांसपोर्टर फंसे हुए हैं. मामला पाकुड़ जिले का है. पाकुड़ के रेंजर अनिल कुमार सिंह आज-कल सुर्खियों में हैं. झारखंड के पहले अधिकारी होंगे जिन्होंने सरकारी नौकरी करते हुए सरकार के खिलाफ ही हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है. मामला डीएफओ की पोस्टिंग से जुड़ा हुआ है. पाकुड़ जिले के तत्कालीन डीएफओ का तबादला हुए छह महीने से ज्यादा हो गए हैं. लेकिन विभाग की तरफ से वहां किसी डीएफओ की पोस्टिंग नहीं की गयी है.
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DFO के नहीं रहने से रुके कई विभागीय काम
लिहाजा कई विभागीय काम रुके हुए हैं. यहां तक कि अनिल कुपमार सिंह ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर सरकार से डीएफओ पोस्टिंग कराने की मांग की है. वहीं इस बीच पाकुड़ में कोल ट्रांसपोर्टरों के ट्रक पकड़ कर वनोपज ट्रांजिट शुल्क के नाम पर केस किया जा रहा है और केस के निबटारे के लिए वहां डीएफओ ही नहीं हैं.
CCL ने जमा किया है शुल्क, फिर भी रेंजर ने पकड़ ली गाड़ी
बेरमो कोयलांचल के सीसीएल गोविंदपुर परियोजना से 13 दिसंबर को ट्रक नंबर JH09 AF 1522 और JH02 AM 9529 लोकल सेल से कोयला लोड कर 15 दिसंबर को पाकुड़ के महेशपुर चेक नाका पहुंचे. पहुंचते ही चेकनाका पर अनिल कुमार ने दोनों ट्रकों को रोका और कागजातों की जांच की. जांच में ट्रांजिट पेपर नहीं होने के कारण उन दोनों ट्रकों को पकड़ लिया गया. लगातार न्यूज नेटवर्क से बात करते हुए रेंडर अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि झारखंड वनोपज नियमावली 2020 के तहत वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने कोयला समेत अन्य खनिजों और वनोपज (वन उत्पाद) के परिवहन पर टैक्स लिया जाना है. नियम के उल्लंघन किये जाने पर वन अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर कानूनी कार्रवाई भी किया जाना है. उक्त दोनों ट्रकों में लागू नियम पेपर नहीं हैं, लिहाजा ट्रकों को पकड़ा गया है. लेकिन इसके उल्टे सीसीएल सारा आरोप वन विभाग पर लगा रहा है. स्वांग-गोविंदपुर परियोजना के परियोजना पदाधिकारी परशुराम नायक का कहना है कि अधिनियम एक अक्टूबर, 2020 से लागू किया गया है. नियम के लागू होते ही बोकारो जिला वन विभाग में पैसा जमा करा दिया गया है. अब तक एक करोड़ 60 लाख रुपया जमा किये हैं, लेकिन बोकारो जिला वन पदाधिकारी ने समय पर ट्रांजिट रसीद उपलब्ध नहीं कराया. जिसके कारण ट्रकों को ट्रांजिट पेपर नहीं दिया जा सका. उन्होंने कहा कि यदि वन विभाग के अधिकारी समय पर पेपर उपलब्ध करा देते तो निश्चित रूप से ट्रकों को ट्रांजिट पेपर साथ में ही दे दिया जाता.
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क्या कहते हैं ट्रक मालिक
उक्त दोनों ट्रकों के मालिकों में मुकेश कुमार ने कहा कि बड़ी मुश्किल से लोन पर लेकर ट्रक खरीदा है. किसी तरह से परिवार का भरण पोषण कर रहे थे. पिछले एक साल से लोकल सेल बंद था, जिसके कारण आर्थिक स्थिति खराब है. हमारी कोई गलती नहीं है. इसके बाद भी ट्रकों को रोक लिया गया है. कोयला डीओ होल्डर से खरीदते हैं और दूसरे स्थानों में ले जाकर भेजते हैं. कहीं से भी हमारी कोई गलती नहीं है, तो फिर हमें क्यों सजा दी जा रही है.
नोटः इस मामले पर वन विभाग के सचिव एपी सिंह से बात करने की कोशिश की गयी. लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया. हालांकि उनके व्हाट्एसएप पर सारी जानकारी दे दी गयी. उनका ऑफिशियल वर्जन आने के बाद खबर अपडेट कर दी जाएगी.
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