Ranchi: तेज गर्मी से एक तरफ धरती का तापमान बढ़ रहा है तो दूसरी ओर जलस्तर भी घटता जा रहा है. अभी गर्मी शुरुआती दौर में है और जलसंकट शरु हो गया है. पहले कुछ इलाकों में पानी की कमी दिखती थी, लेकिन अब इसका दायरा बढ़ता जा रहा है. शहर हो या गांव या सुदूर इलाके सबकी स्थिति एक समान होती जा रही है. ग्रामीण इलाके पानी के मामले में कुछ बेहतर माने जाते थे, लेकिन वहां भी शहर जैसी ही स्थिति हो गयी. कई गांवों में कुएं सूखते जा रहे हैं तो कई जगह तालाब पानी के बिना मैदान बनते जा रहे हैं. वहीं शहरी क्षेत्र की स्थिति और दयनीय है. शहरी क्षेत्र में गर्मी बढ़ते ही लोगों की निर्भरता नगर निगम के टैंकर पर बढ़ती जा रही है तो गांवों में लोग चुआं और नदी-नालों की तरफ जाने लगे हैं, लेकिन वहां भी पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है. लंबी दूरी तय करने के बाद पेयजल नसीब होता है. प्रदेश में पेयजल का हाल जानने शुभम संदेश की टीम दौरे पर निकली और लोगों से बात कर पेयजल की स्थिति पर तैयार की रिपोर्ट.
आदित्यपुर :
नगर निगम के वार्ड 13 में है जल संकट, टैंकर की आस देखते हैं बस्ती के लोग
आदित्यपुर नगर निगम का वार्ड 13 का सालडीह बस्ती गर्मी शुरू होते ही भीषण जल संकट से जूझ रहा है. बस्तीवासियों ने बताया कि वे लोग पिछले 20 दिनों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. चूंकि कहीं पाइप लीकेज हो गया है, जिसपर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इस वजह से हमलोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल रहा है. वर्तमान समय में बस्ती के लोग टैंकर पर निर्भर हैं जो दिनभर में एक समय आता है. बस्ती में रहने वाली पार्षद नील पद्मा विश्वास ने कहा कि कई बार पीएचईडी के अधिकारी को लिखित रूप से सूचित कर चुके हैं, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो सका है. इस वजह से बस्ती के करीब ढाई हजार लोग परेशान हैं. पार्षद ने बताया कि गर्मी आते ही सालडीह बस्ती में पानी की समस्या शुरू हो जाती है. पाइप लाइन से आने वाली जलापूर्ति एकाएक कम हो जाती है. लोग रतजगा कर पानी आने का इंतजार करते हैंं.
जनवरी में इस डैम का जलस्तर 18 फीट था
आदित्यपुर के रिहायशी इलाकों को जलापूर्ति का लाभ देने वाला एकमात्र सीतारामपुर डैम का जलस्तर तेजी से घट रहा है. वर्तमान जलस्तर14 फीट जा पहुंचा है. जनवरी में डैम का जलस्तर 18 फीट था जो 4 महीने में 4 फीट घटकर 14 फीट पर आ पहुंचा है. मालूम हो कि सीतारामपुर डैम का कुल क्षमता 21 फीट का है. डैम में सात फीट गाद भरा हुआ है. जिसके लिए लीगल एंड एडवायजरी डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन ने हाईकोर्ट में पीआईएल दायर किया है.
सीतारामपुर डैम सात मीटर गाद से भरी है
बता दें कि आदित्यपुर के करीब 13 हजार परिवारों और करीब 1000 उद्योगों को जलापूर्ति सीतारामपुर डैम से ही जालापूर्ति होता है. पिछले दिनों डैम के घटते जलस्तर को देखते हुए नगर निगम के अपर आयुक्त गिरिजा शंकर प्रसाद ने डैम और फ़िल्टर प्लांट का निरीक्षण कर डैम के गाद की सफाई का प्रस्ताव पेयजल स्वच्छता विभाग के कार्यपालक अभियंता से मांगा था. बता दें कि डैम के निर्माण के बाद से ही इसकी कभी सफाई नहीं हुई है.
कोर्ट ने गाद हटाने का निर्देश दिया था
पूर्व में मीटर आधारित बिल लिया जाता था, जिसे विभाग को फिक्स करना पड़ा है. इन्हीं कारणों से वर्ष 2017 में झारखंड लीगल एडवाइजरी डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन ने जनहित याचिका दायर की थी. तब हाईकोर्ट ने सही समय पर डैम का गाद हटाने का आदेश विभाग को दिया था. विभाग के ईई ने 14 करोड़ 76 लाख 7 हजार 900 रुपये की स्कीम बनाकर प्रस्ताव बनाकर भेजा भी लेकिन वह ठंडे बस्ते में चला गया है. बता दें कि सीतारामपुर डैम का निर्माण 1963 में हुआ था. तब डैम से आसपास सिंचाई और जलापूर्ति करने का उद्देश्य बना था. लेकिन डैम आज जर्जर स्थिति में है. डैम का रखरखाव शून्य है. वर्ष 2018 में डैम का क्षतिग्रस्त स्पिलवे गेट भी जनहित याचिका दायर करने के बाद बनी. इससे आज डैम में पानी का स्टोरेज बढ़ा है नहीं तो जुलाई अगस्त तक डैम पानी देने की स्थिति में नहीं होता था.
साहिबगंज :
झरना का जमा गंदा पानी पीते हैं बिजुलियावासी
बोरियो प्रखंड मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बिजुलिया गांव में आजादी के 75 वर्ष बाद भी झरना का जमा गंदा पानी पीने को यहां के ग्रामीण मजबूर हैं. इस गांव में लगभग 300 परिवार रहते हैं जो बूंद बूंद पानी के लिए तरसने को मजबूर हैं.
ग्रामीण विनोद पहाड़िया ने बताया कि पानी की समस्या इतनी भयावाह है अक्सर आंखों से आंसू निकल आते हैं.
गांव के प्रधान सूरज पहाड़िया ने बताया कि गांव में कुल 35 घरों में लगभग 300 लोग रहते हैं. यहां एक भी चापाकल नहीं है कुंआ है भी तो इस भीषण गर्मी में कुंआ का पानी सूख जाता है. जिस कारण से हमलोग गांव से 2 किलोमीटर दूर झरना का गंदा पानी मजबूरन पीना पड़ता है. इस बार अप्रैल महीना में ही कुंआ व झरना का पानी लगभग सुख गया है. जिससे डर सताने लगा है कि पानी कहां से लायेंगे.
मंगला पहाड़िया ने बताया कि पानी की इतनी किल्लत है कि चिलचिलाती धूप और गर्मी में झरना के किनारे 3 फीट गड्ढा खोदकर उससे बूंद बूंद पानी निकालकर परिवार की प्यास बुझातें हैं.
बीजू पहाड़िया ने बताया कि मुखिया व अन्य जनप्रतिनिधियों ने बोरियो ब्लॉक को कई बार पानी की समस्या के लिए लिखित व मौखिक सूचना दिया है.पर समस्या का समाधान आज तक नहीं हो पाया है.
समसूर पहाड़िया ने बताया कि इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए.
जामताड़ा :
डोभा का पानी पीने को विवश हैं बोरवा के ग्रामीण
नारायणपुर प्रखंड के बोरवा गांव के आदिवासी बहुल महुवा टोला के ग्रामीण पेयजल संकट से जुझ रहे हैं. ग्रामीणों को पीने का पानी का खेत में बने डोभा से लाना पड़ता हैं. बोरवा पंचायत अंतर्गत पड़ने वाले बोरवा गांव के महुवा टोला में करीब 15 परिवार निवास करता हैं. टोला की आबादी 150 से अधिक है. विभाग द्वारा यहां तीन चापाकल लगाए गए हैं. जिसमें सभी चापाकल खराब रहने के कारण टोला के लोग इन दिनों टोला के बाहर खेत में बने एक डोभा का पानी पीकर अपना जीवन यापन करने को मजबूर है.
पानपती हेम्ब्रम ने कहा कि टोला में चापाकल खराब रहने के कारण ग्रामीण टोला के बाहर बहियार खेत स्थित डोभा से पानी भर कर लाते हैं. विभाग की ओर से चापाकल की मरम्मत को लेकर कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
लीलमुनी मरांडी ने कहा कि टोला में 3 चापाकल लगाए गए हैं, और तीनों चापाकल खराब पड़े हैं. जिसके कारण डोभा के पानी पर निर्भर रहना पड़ रहा है.
चपाई मुर्मू ने कहा कि टोला में एक सिचाई कूप है. लेकिन उसका पानी पीने लायक नहीं है. विभाग द्वारा लगाया गया चापाकल अरसे से खराब पड़ा है. इसलिए ग्रामीण डोभा का पानी पीने को मजबूर हैं.
अलोदी हांसदा ने कहा कि टोला में लगा चापाकल ठीक हो जाता तो हमलोगों को बहियार खेत स्थित डोभा से पानी लाकर पीना नहीं पड़ता. विभाग को ग्रामीणों की तकलीफ समझते हुए चापाकल की मरम्मत करवानी चाहिए.
रांची :
राज्य में 90 व्यक्ति पर 1 बोरिंग-हैंडपंप, 20 प्रतिशत हैं खराब
कौशल आनंद। झारखंड में राष्ट्रीय औसत से दोगुना बोरिंग-हैंडपप हैं, फिर ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के लिए हाहाकार जैसी स्थिति बनी हुई है. राष्ट्रीय औसत जहां 150 व्यक्ति पर एक हैंडपप है वहीं झारखंड में 90 व्यक्ति पर एक हैंडपप है. यानि की राष्ट्रीय औसत से करीब-करीब दोगुना है. मगर सही से ऑपरेशन-मेटेनेंस के अभाव में गर्मी के दिनों में ग्रामीण जनता पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. हालात अब इतने खराब हो चले हैं कि लोग 2 से 3 किमी पैदल चलकर कहीं से किसी भी तरह से पानी लाने को विवश हैं. विभाग के अनुसार इसमें करीब 8 प्रतिशत खराब-डेड हैं. मगर विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार झारखंड में करीब 20 प्रतिशत बोरिंग-हैंडपंप या तो डेड हो चुके हैं या खराब हो गए हैं. इसमें करीब 5 प्रतिशत ही ऐसे हैं जिसे मरम्मत करके चलाया जा सकता है. लेकिन इसे लेकर भी विभाग गंभीर नहीं है. इससे परेशानी है.
तय मानक के अनुसार प्रत्येक 150 लोगों पर एक हैंड पंप होना चाहिए
- एनआरडीडब्ल्यू के मुताबिक झारखंड में पेयजल के कुल 5,17,044 हैंड पंप हैं. इसमें निजी और विभागों द्वारा कराये गये बोरिंग शामिल हैं.
- ग्रामीण इलाकों में लोगों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के लिये कितने हैंड पंप होने चाहिये, भारत सरकार मानक तय कर रखा है.
- तय मानक के अनुसार प्रत्येक 150 लोगों की आबादी पर एक हैंड पंप होना चाहिए.
- झारखंड में 150 के बजाए 90 लोगों पर एक हैंड पंप है.
- झारखंड की आबादी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 3.19 करोड़ थी.
- वर्तमान में करीब 3.50 करोड़ होने का अनुमान है. इस तरह झारखंड के लोगों को पानी उपलब्ध कराने के लिए 2,33,333 हैंड-पंप चाहिए.
- राष्ट्रीय औसत के अनुसार झारखंड में हैंड पंप की उपलब्धता यहां पहले से ही 1,61,370 हैंड पंप अधिक है.
- झारखंड में 90 लोगों पर एक हैंड पंप है. यह राष्ट्रीय औसत से करीब-करीब दोगुना है.
- रांची नगर क्षेत्र में 2507 बोरिंग हैं, जिसमें से 190 डेड हो चुके हैं. 100 के करीब खराब हैं. इस वर्ष फिर से प्रति वार्ड तीन-तीन बोरिंग कराने हैं.
अधिक बोरिंग-हैंडपप होने के भी काफी नुकसान हैं
झारखंड में राष्ट्रीय औसत से अधिक बोरिंग हैंड पंप होने का नुकसान भी हम झेल रहे हैं. बोरिंग अधिक होने से ग्राउंड वाटर का दोहन अधिक हो रहा है. इससे ग्राउंड वाटर तेजी से नीचे जा रहा है. जिसका खामियाजा भी हम उठा रहे हैं. इस पर किसी का ध्यान नहीं है
ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो और भी अधिक खराब है
शहर में लोग निजी तौर पर भी बोरिंग कराकर काम चला लेते हैं. मगर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और खराब है. ग्रामीण क्षेत्रों में सरफेस वाटर (नदी, तालाब, कुआं, नहर, डोभा) सूख चुके हैं. बोरिंग अपेक्षानुसार पानी नहीं दे पा रहा है. इसके कारण ग्रामीण चुआं, नदी के बालू के नीचे गढ्ढा बनाकर किसी भी तरह पीने के लिए पानी जुटा पा रहे हैं. यही वास्तविक स्थिति है.
इस साल पेयजल विभाग कोई नया बोरिंग नहीं करा रहा है. जो वर्तमान में बोरिंग-हैंडपंप हैं, उसमें केवल 8 प्रतिशत ही खराब-डेड के श्रेणी में हैं. खराब चापानलों को डेली बेसिस पर मरम्मत कराए जा रहे हैं. क्योंकि यह रेगुलर बेसिस पर होता है. इसके अतिरिक्त मुख्यालय स्तर से लेकर प्रखंड स्तर तक कंट्रोल और शिकायत केंद्र बनाए हैं, जिसमें प्रतिदिन कंपलेन आते हैं. विभाग स्थिति पर नजर बनाए हुए है. ग्रामीण क्षेत्रों में जलसंकट उत्पन्न होने नहीं दिया जाएगा.
(रघुनंदन शर्मा, इंजीनियर इन चीफ, पीएचईडी)
लोहराकोचा में मिल रहा है पीला पानी
गर्मी बढ़ते ही रांची मे जलसंकट गहराने लगा है. रांची के कई मोहल्लों में जलस्तर नीचे जाने लगा है. तेज गर्मी के कारण शहर के प्रमुख क्षेत्रों मे भी पानी की समस्या होने लगी है. लालपुर स्थित वार्ड 18 के थड़पकना मे कई घरों के जलस्रोत सूख चुके हैं. यहां बड़ी तादाद में लोगों के घरों की बोरिंग सूख गई है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि लोहराकोचा में कई घर ऐसे हैं, जहां बोरिंग सूख चुके हैं. सप्लाई पानी हमेशा पीला आता है, जो कि पीने लायक नहीं होता है. जिन घरों मे बोरिंग में पानी आ रहा है वह भी बताते हैं कि उन्हें पानी भरने के लिए सुबह चार बजे उठना पड़ता है. दिन में बोरिंग से पानी निकलना बंद हो गया है. बोरिंग सूखने के कारण ये सारे लोग पानी के लिए नगर निगम पर आश्रित हैं. वार्ड 18 की वार्ड पार्षद आशा देवी बताती है कि इनके वार्ड में बीते तीन दिनों से पानी नहीं आ रहा है. कई बोरिंग कई सूखने के कागार पर हैं. टैंकर दिन भर 2 से 3 बार पानी पहुंचा पाता है. लेकिन इतनी बड़ी आबादी के लिए वह कम पड़ता है. बताया कि नारी सुविधा फंड से जल्द ही वार्ड में बोरिंग कराने वाली है.
तीन दिनों से सप्लाई वाटर का कर रहे है इंतजार : बबलू
लोहराकोचा निवासी बबलु लोहरा ने बताया कि उनके इलाके में बीते तीन दिन से पानी नहीं आया है. जब शहर का यह हाल तो ग्रामीण इलाकों की कैसी स्थिति होगी यह समझा जा सकता है. टैंकर से दिन में एक बार पानी आता है, जो सभी लोगों के लिए पर्याप्त नहीं है. बड़े बिल्डिंग वाले डिप बोरिंग करवाते हैं. जिसके कारण हर साल गर्मी आते ही हमारी बोरिंग सूख जाती है. नगर निगम भी मनचाहे तरीके से पानी देती है. हमलोग बूंद-बूंद के लिए तरस गए हैं. रोज सुबह उठते ही पानी के लिए भागना पड़ता है. अगर देर हो जाती है तो फिर पानी मिलना कठिन हो जाता है. वहां पर लोगों की काफी भीड़ भी जमा हो जाती है. कुल मिलाकर यहां के लोगों का बहुत बुरा हाल है.
अब तो यहां खाना बनाना भी मुश्किल है : सुमरी देवी
लोहरकोचा निवासी सुमरी देवी ने बताया कि हर साल गर्मी में उन्हें पानी की समस्या होती है. पिछले तीन दिनो से पानी नहीं आ रहा है. खाना बनाना भी मुश्किल हो गया है. रोज बाल्टी लेकर गली में घूमना पड़ता है कि कहीं से पानी का जुगाड़ हो सके. टैंकर को भी आए एक दिन से अधिक हो गया है. बिना पानी के कोई भी काम करने में काफी दिक्कत आ रही है. खाना बनाने से लेकर बर्तन धोने सब मे दिक्कत हो रही है. पानी को लेकर यहां बड़ी समस्या है. इसे लेकर हमलोग वार्ड पार्षद को रोज शिकायत कर रहे हैं, लेकिन उनसे भी कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है. अब घर में बच्चे पालने तक में दिक्कत है. कभी पानी तो कभी बिजली सबकी स्थिती खराब है. बहुत बुरा हाल है.
पानी के लिए रोज यहां-वहां भटकना पड़ता है: शाहनवाज
शहनवाज खान ने कहा कि रोज सुबह उन्हें पानी के लिए इधर-उधर जाना पड़ता है. बोरिंग लगभग सूख चुके हैं. कुछ जो बचे हैं उनसे बहुत कम पानी आ रहा है. पानी के लिए उन्हे टैंकर और सप्लाई वाटर पर निर्भर रहना पड़ता है. सप्लाई भी रोज नहीं मिलती है. टैंकर का पानी पूरे मोहल्ले के लिए पर्याप्त नही पड़ रहा है. पानी के बिना काम पर जाने में भी दिक्कत होने लगी है. घर की महिलाओं को पानी के बिना सबसे ज्यादा तकलीफ हो रही है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. समस्या की गंभीरता को समझकर समाधान करे.
जो पानी आता है, वह बहुत गंदा रहता है: रविन्द्र लोहरा
लोहराकोचा निवासी रविन्द्र लोहरा ने कहा कि बीते तीन दिनों से पानी का सप्लाई नहीं आया है. जो पानी आता है वह अधिकतर समय बहुत गंदा होता है. गर्मी में कभी-कभी पानी मे कीड़े चलते दिखाई देते हैं. साफ पानी तो कभी आता ही नहीं है. पानी हमेशा पीला होता है. बोरिंग सूखने के बाद नगर निगम का टैंकर भी कम पड़ रहा है. रोज पानी के चलते मोहल्ले की महिलाएं आपस में झगड़ा करती हैं. पानी के बिना काफी दिक्कत हो रही है. पानी के लिए हर साल हमे इसी तरह लड़ना पडता है. सरकार इसे गंभीरता से ले.
गर्मी शुरू होते ही पेयजल संकट शुरू हो गया है. पेयजल के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. जमशेदपुर में ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की काफी किल्लत है. लोग 3 बजे सुबह से लेकर रात दस बजे तक पानी के जुगाड़ में लगे रहते हैं. दो-दो किलोमीटर दूर से पानी लाकर अपनी आवश्यकताएं पूरी करते हैं. जमशेदपुर से सटे बागबेड़ा क्षेत्र के लोगों की पानी की किल्लत से जुड़ी दर्द भरी कहानी से समस्या को समझा जा सकता है.
6 घंटे की मशक्कत के बाद मिलता है पानी : मोहन राम
हरहरगुट्टू नया बस्ती कराने वाले मोहन राम लोधी ने बताया कि क्षेत्र में पानी की बहुत किल्लत है. वह सालों भर सार्वजनिक नल से पानी भरकर अपने घर की जरूरतों को पूरा करते हैं. उन्होंने कहा कि इलाके में पानी का लेयर काफी नीचे चला गया है. जिसके कारण लोग बोरिंग कराने से डर रहे हैं. बोरिंग में लाखों रुपए लगते हैं. उससे बचने के लिए लोग 2 किलोमीटर दूर से पानी लाने को विवश हैं. कहा कि उनके घर से 2 किलोमीटर दूर घाघीडीह चौक पर सार्वजनिक नल से पानी लाते हैं.
हमारी दैनिक जरूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं : कुंती बाई
बागबेड़ा हरहरगुट्टू की रहने वाली कुंती बाई ने बताया कि गर्मी का मौसम शुरू होते ही पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. पानी के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है. उन्होंने कहा कि इलाके में प्रत्येक घर में बोरिंग है. लेकिन गर्मी के सीजन में लेयर काफी नीचे चला जाता है. जिसके कारण लोगों को दूर से पानी लाना पड़ता है उन्होंने कहा कि घर के बोरिंग से दैनिक जरूरतें पूरी नहीं हो पाती है. जिसके कारण लोगों को काफी दिक्कत होती है. इसे दूर किया जाना चाहिए.
50 लीटर पानी के लिए 5 घंटे लाइन में लगते हैं : विपिन
बागबेड़ा के हरहरगुट्टू निवासी विपिन कुमार ने बताया कि उनके घर में 10 लोग रहते हैं. गर्मी के सीजन में पानी की जरूरत पूरी करने के लिए सभी लोगों को हमेशा सजग रहना पड़ता है. उन्होंने कहा कि हमारे घर में प्रत्येक दिन 50 लीटर पानी की खपत है. इसके लिए परिवार के दो सदस्यों को पानी लाने की जिम्मेवारी है. 5 घंटे लाइन लग कर 20 लीटर के गैलन में 5 गैलन पानी लाना पड़ता है. तब घर की जरूरतें पूरी होती हैं. हर दिन हमें पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है. आखिर कब तक इस तरह की परेशानी हमलोग झेलते रहेंगे.
दो किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है पेयजल : लखींद्र
घाघीडीह, हरहरगुट्टू के रहने वाले लखविंदर पात्रो ने बताया कि गर्मी के मौसम में पानी की काफी किल्लत हो जाती है. घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें 2 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि जिस दिन पानी नहीं आ पाता है. उस दिन परिवार के कुछ नहा नहीं पाते हैं. उन्होंने कहा कि गर्मी के सीजन में परिवार के सभी लोगों को पानी के लिए तत्पर रहना पड़ता है. हालांकि घर परिवार चलाने के लिए कुछ सदस्यों को रोजी रोजगार के लिए भी जाना पड़ता है. ऐसे में हमलोगों का काफी समय पानी लाने में जाता है.
पानी के लिए छोड़नी पड़ती है हमें पढ़ाई : निखिल वर्मा
बागबेड़ा हरहरगुट्टू के रहने वाले छात्र निखिल वर्मा ने बताया कि क्षेत्र में पानी की काफी किल्लत है. जल है तो जीवन है इसलिए उन्हें कभी-कभी अपना कॉलेज छोड़ना पड़ता है. तब जाकर घर की पानी की जरूरतें पूरी हो पाती उन्होंने कहा कि 2 किलोमीटर दूर से साइकिल से पानी लाकर अपने घर की जरूरतों को पूरी करते हैं. यह सिलसिला प्रतिदिन चलता है 7 वर्षों से बागबेड़ा ग्रामीण जलापूर्ति योजना आधार में पड़ी हुई है. करोड़ों रुपया सरकार का खर्च हो चुका है. लेकिन लोगों को अभी तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाया है. सरकार भी इसके लिए कुछ नहीं कर रही है.
गिरिडीह
दुलियाटिकर गांव के लोग इकलौते जर्जर कुएं पर निर्भर
जिले के तिसरी प्रखंड के गावों में गर्मी के दस्तक के साथ ही पेयजल संकट गहराने लगा है. जिला मुख्यालय से 70 और तिसरी प्रखंड मुख्यालय से दस किलोमीटर की दूरी पर बसा बेलवाना पंचायत के दुलियाटिकर गांव का हरिजन टोला पेयजल की समस्या से जूझ रहा है. डेढ़ सौ की आबादी वाले इस गांव के लोगो की प्यास एक पुराने और जर्जर कुएं से मिटती है. इसी एक कुंए पर हर रोज़ सुबह से ही लोगों की भीड़ लग जाती है. यहां के लोग बारी-बारी से बाल्टी, तसला, डेगची आदि बर्तनों में पूरे दिन के लिए पर्याप्त पानी भरकर माथे पर ढोते हुए अपने घरों में ले जाते हैं. यह सिलसिला चलता रहता है.
गांव में पेयजल की पूरी व्यवस्था नहीं है : मदन तुरी
गांव के मदन तुरी ने बताया कि इस गांव में आजादी के 70 वर्ष बाद भी पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं हो सकी है. गर्मी के दिनों में लोग पीने के पानी के लिए खासे परेशान रहते हैं. इस दिशा में विभाग के अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए.
चुनाव के समय नेता बड़े-बड़े वादे करते हैं : प्रकाश
ग्रामीण प्रकाश तुरी ने कहा कि गांव के लोग लंबे समय से पेयजल व्यवस्था दुरुस्त करने की मांग कर रहे हैं. चुनाव के समय नेता बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन बाद में कुछ भी नहीं होता है. जल नल योजना से लोगों को कुछ लाभ मिलने की उम्मीद है.
गांव की पेयजल समस्या दूर नहीं हो सकी : परवेज
ग्रामीण परवेज़ आलम ने कहा कि विभाग से ध्वस्त कूएं की मरम्मत और खराब पड़े चपाकल को दुरुस्त करवाने की मांग की है. पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद भी एक गांव की पेयजल समस्या दूर नहीं हो सकी है. इससे ग्रामीण में नाराजगी है.
योजना का काम शुरू नहीं हो सका : नजमा खातून
मुखिया नजमा खातून ने कहा कि इस पंचायत में जल नल योजना का काम शुरू नहीं हो सका है. इसे लेकर कई बार बीडीओ और पीएचडी विभाग के कनीय अभियंता से बात की गई हैं. दोनों अधिकारियों से योजना का काम शुरू होने का आश्वासन मिला है.
बेलवाना पंचायत को दूसरे फेज में रखा गया है : मणिकांत
पीएचईडी विभाग के कनीय अभियंता मणिकांत ने कहा कि तिसरी प्रखंड के बेलवाना पंचायत को दूसरे फेज में रखा गया है. पंचायत में एक सप्ताह के अंदर जल नल योजना का काम शुरू हो जाएगा. इस योजना के धरातल पर उतरने से इस गांव में पेयजल समस्या समाप्त हो जायेगी. इसके लिए जो हो सकता है विभाग द्वारा किया जाएगा. इसके लिए लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है. सरकार लोगों की परेशानी को समझती है. इसे देखते हुए ही पंचायत में जल योजना पर काम करने का प्रस्ताव लाया गया था. इससे संकट दूर हो जाएगा.
किरीबुरू
मेघाहातुबुरु में एक हजार बच्चे शुद्ध पेयजल से वंचित
किरीबुरू एवं मेघाहातुबुरु शहर की कई आवासीय एवं झुग्गी-झोपड़ियों वाले क्षेत्रों में गर्मी बढ़ने के साथ ही पेयजल संकट गहरा गया है. इसके अलावे केन्द्रीय विद्यालय मेघाहातुबुरु में पढ़ने वाले लगभग एक हजार बच्चे भी शुद्ध पेयजल से वंचित हो रहे हैं. इसकी मुख्य वजह इस विद्यालय में लगा तीन एक्वागार्ड वाटर प्यूरिफायर मशीन कुछ दिनों से खराब होना है. इन मशीनों को सेल प्रबंधन, महिला समिति एवं विद्यालय प्रबंधन द्वारा बच्चों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए लगाया गया था. स्कूल के बच्चों ने बताया कि गर्मी में अचानक वृद्धि होने की वजह से बच्चे अत्यधिक पानी का सेवन कर रहे हैं. वाटर प्यूरिफायर खराब होने से सीधे टंकी का पानी पीना पड़ रहा है.
पेयजल समस्या का समाधान नहीं हुआ है
दूसरी तरफ प्रोस्पेक्टिंग क्षेत्र के आवासीय व हाटिंग क्षेत्र, मेन मार्केट, मंगलाहाट, चर्च हाटिंग, बकल हाटिंग, गाड़ा हाटिंग आदि इलाकों के लोग भी लंबे समय से पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं. इसके स्थायी समाधान की मांग उपायुक्त, सेल प्रबंधन, सांसद, विधायक, जिप सदस्य, प्रमुख, मुखिया आदि से की गई. बावजूद इसके अब तक समाधान नहीं हो पाया. प्रोस्पेक्टिंग क्षेत्र में रहने वाले सेलकर्मियों और अन्य लोगों ने बताया कि उनके सेल आवासों में भी सप्लाई पानी ठीक से नहीं आ रहा है. मेन मार्केट और अन्य हाटिंग क्षेत्र का भी हाल और बुरा है. लोगों को अब भी उम्मीद है कि मुखिया मंगल सिंह गिलुवा अपने वायदे अनुसार पानी टैंकर उपलब्ध करायेंगे.
गांव के कुएं गर्मी में सूख जाते हैं : सरफराज अंसारी
सरफराज अंसारी कहते है कि रामगढ़ नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नंबर 18 और 19 चैनगड्ढा गांव में पानी की घोर किल्लत है. ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए परेशान होना पड़ता है ग्रामीण के कुंए इन दिनों सूख जाते हैं . गांव में कई चापाकल हैं, जो खराब पड़े हैं. इसे देखने वाला कोई नहीं. ग्रामीण 2 किलोमीटर दूर दामोदर नदी से पानी लाते हैं.
आज गांव के सभी चापाकल खराब हो चुके हैं : दीपक
दीपक मुंडा कहते है कि पतरातू प्रखंड का चैनगड्डा गांव गर्मी के दिनों में पानी की समस्या से जूझता है यही नहीं नगर परिषद क्षेत्र होने के बाद भी इस क्षेत्र में पानी की कोई व्यापक इंतजाम अब तक नही किया गया जिससे लोगों के घरों तक पानी पहुंचे. लोगों के घरों में कुएं सूख चुके हैं. पूरे गांव में लगभग 10-12 चापाकल है लेकिन खराब हैं.
पेयजल के लिए भटक रहे ग्रामीण : लखिंद्र कुंकल
मंझारी प्रखंड के ग्राम पंचायत मेरोम होनर के छोटा पुड़दा निवासी लखिंद्र कुंकल कहते हैं कि आसपास के गांव में भी पानी की समस्या अधिक है. लगातार पानी को लेकर ग्रामीण दर-दर भटक रहे हैं. मजबूर होकर नदी का पानी ग्रामीण पी रहे हैं. नदी का पानी गंदगी से भरा रहता है. यह किसी काम का नहीं है, फिर भी वही लेनाा पड़ता है.
पानी के लिए दर-दर भटकते हैं ग्रामीण : रामहरि
छोटा पुड़दा में गर्मी इस बार असहन है. लेकिन शासन प्रशासन की ओर से किसी तरह की सुविधा बहाल नहीं की गई है. आज भी मेरे गांव में लोग पानी के लिये दर-दर भटक रहे हैं. लेकिन सरकार इसे नजरअंदाज कर रही है. लगातार मांग होने के बाजवूद भी पानी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है जो एक दुर्भाग्यपूर्ण है. आखिर कब तक झेलते रहेंगे.
पानी के बिना अब जीना मुहाल हो गया है : नानिक
छोटा पुड़दा निवासी नानिक कुंकल कहती हैं कि खाना भले विलंब से मिले, लेकिन पानी के बिना लोगों का जीना मुहाल हो गया है. धरती आग उगल रही है और पानी की स्थिति भी गांव में खराब हो गयी है. प्रशासन की ओर से किसी तरह की सुविधा अब तक नहीं दी गई है. लोग इधर-उधर से व्यवस्था कर पानी ला रहे हैं. यह ठीक नहीं है.
अपने समय में तो प्याऊ की व्यवस्था की: पार्षद सुमन
वार्ड 36 की पूर्व पार्षद सुमन अग्रवाल का कहना है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने यूथ ब्रिगेड संस्थान की मदद से बाटा मोड़ चौक के समीप प्याऊ की व्यवस्था की थी, जो आज भी सुचारू रूप से चल रही है. पेयजल आपूर्ति से संबंधित हर योजना पर काम किया था और आगे भी जारी रहेगा. कोशिश होगी को लोगों को पानी मिले.
एक निश्चित दूरी पर प्याऊ खोलना चाहिए था: रौनक
लस्सी और शर्बत विक्रेता रौनक केशरी ने कहा कि अभी से भीषण गर्मी की तपिश से लोगों का बार-बार गला सूख रहा है. सिर्फ उनके ही नहीं, शहर की विभिन्न लस्सी और पेयजल की दुकानों पर ऐसी ही भीड़ है. राहगीरों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिले, इसके लिए जरूरी है कि हर क्षेत्र में एक निश्चित दूरी पर प्याऊ खोला जाए. तो लोगों को फायदा होगा.
प्याऊ और वाटर एटीएम है नदारद : आफताब आलम
स्थानीय आफताब आलम ने कहा कि भीषण गर्मी में दुकानों पर नाश्ता व भोजन आदि करने के बाद लोगों को पीने के लिए गर्म या सादा पानी ही दिया जाता है. इसके बाद ग्राहकों से कहा जाता है कि यदि ठंडा पानी चाहिए तो बोतल या पाउच खरीदो. प्याऊ व वाटर एटीएम नहीं रहने के कारण मजबूरन लोगों को पानी पाउच व बोतल खरीदना पड़ता है.
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